हज़रत जुलनून मिश्री का तकवा hazrat Julnoon mishri ka takwa
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हजरत जुलनून मिश्री रहमातुल्लाहअलै औलिया अल्लाह में बहुत बुलंद मकाम पाया है आपका तरीका इबादत और मुजाहिदे नफ़्स अकले बसरी से बाला तर था इसलिए अहले मिश्र आपको जनदीक कहते थे और आपकी विलायत के कायल ना थे दरबार खिलाफत में हजरत के हालात की शिकायत की गई और खलीफा मुत्वअक्कल अब्बासी के हुकुम से आप पाबजूला मिश्र से बगदाद ले गए असनाये राह में आपको एक औरत ने हिदायत की जुलनून खबरदार हुकूमत के जुल्म से ना डरना खलीफा भी तेरी ही तरह खुदा का एक आजिज बंदा है और बन्दा का बंदे से डरना क्या माना? बंदा हर वक्त मजबूर है वोह कुछ नहीं कर सकता,
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आप दरबारे खिलाफत में पेश किए गए तो खलीफा ने आपको जेल खाने में भेजने का हुक्म दिया 40 रोज आप जेल खाने में रहे उस दौरान में हजरत बसर हाफी कि हमशरह हर रोज आपको एक रोटी ले जाकर पेश करती रही जिस दिन आपको बाहर निकाला गया तो जेल के मुहाफिजो ने वोह 40 रोटियां आपके हुकुम से गरीबों फुकरा में तक्सीम की जिस वक्त यह खबर हजरत बशर हाफी की बहन को पहुंची कि हजरत जुलनून मिश्री ने मेरी दावते मसनून को रद्द कर दिया और एक दिन भी वोह रोटी नहीं खाई तो उन्हें बहुत सदमा हुआ दिल शिकस्ता और अजर्दा खातिर हाजरे खिदमत हुई और फरमाया हजरत आपको इल्म है कि ये रोटियां कस्बे हलाल की थी और खुदा गवाह है कि उसके जरिए आप पर कोई एहसान करना मकसूद ना था फिर आपने उन्हें क्यों कबूल नहीं किया हजरत जुलनून मिश्री ने फरमाया वोह रोटियां बेशक हलाल थी मैं जानता हूं मगर वोह दरोगा जेल के नापाक हाथों से आई थी इसलिये मेरे लिये हलाल ना थी ये था औलिया अल्लाह का तकवा,
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बसरी हैसियत से 40 रोज तक कुछ ना खाने से कमजोरी वा नातवानी इस दर्जा बढ़ गई थी कि जब आपको जेल से निकाला गया तो आप कमजोरी की वजह से जमीन पर गिर पड़े सर फट गया मगर अल्लाह ताला की कुदरत का इस तरह इजहार हुआ कि हजरत जुलनून के कपड़ों पर कोई खून की छीट भी ना थी इसी तरह जमीन पर भी खून का कोई कतरा नजर ना आता था जितना भी खून पेशानी से निकला कुदरत ने अपने दामने रहमत में जजब कर लिया हजरत जुलनून को खलीफा के सामने पेश किया गया तो दरबारे आम में खलीफा ने आपसे चंद सवालात किये अपने निहायत फसाहत वा खताबत और जुर्रत वा दिलेरी से खलीफा बगदाद के सवालात का जवाब दिया और इस तरह खलीफा और दरबारी लोगों पर रक्त तारी हो गई खलीफा मुतवाक्कल अब्बासी ने उसी वक्त आपके दस्ते अकदस पर बैत की और निहायत एजाज व इकराम के साथ आपको मिश्र वापिस भेज दिया गया,
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सच फरमाया गया है, जो अल्लाह का हो जाता है अल्लाह उसका हो जाता है, एक तरफ तो दुश्मनाने हक अल्लाह ताला के वली को तकलीफ दे रहे हैं और तोहीन कर रहे हैं और हसद जलन के सिफली जज्बात से मजबूर होकर हुकूमत से शिकायत करते हैं और सजा दिला कर आतसे हसद को ठंडा करते हैं और दूसरी तरफ अल्लाह ताला की शान ऐ करीमी ये है कि अपने वली की आजमाइश तहामुल वा तवक्कल के बाद ये इज्जत अफजाई फरमाई गई है कि हुकूमत के मुकतदरे आला को हजरत जुलनून मिश्री के कदमों पर झुका देती है
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Thanks for reading: हज़रत जुलनून मिश्री का तकवा सुफी मुस्लिम hazrat Julnoon mishri ka takwa sufi muslim, Sorry, my Hindi is bad:)