Hazrat malik bin dinar ki kramat
Hazrat malik bin dinar
Kashti ka safar
Wali allah
Machhliya aur dinar
एक मर्तबा हज़रत मालिक बिन दीनार एक कस्ती मे सफर कर रहे थे जब कस्ती ऐन मझदार मे पहुंच गई तो मलाह ने उनसे किरिया तलब किया बुजुर्ग ने फरमाया कि मेरे पास देने के लिये तुम्हे कुछ नहीं है अगर ऐसी ही बात थी तो मुझे कस्ती मे सवार होने से पहले ही कह दिया होता ताकी मैं सफर के लिये कोई और वसीला तलाश कर लेता...
उनकी बात सुनकर कस्ती का मालिक सख्त बद तमीज़ी और बद कलामी पर उतर आया उसने आपको इस कदर मारा कि आप पर गसी तारी हो गई कश्ती वाला कोई बहुत ही ज़ालिम और संग दिल इन्सान मालूम होता था उसने इसी पर इकतेफा ना किया बल्कि जब आपकी गसी दूर हुई तो उसने दुबारह आपसे किराया तलब करते हुऐ कहा कि अगर तुमने कश्ती मे सफर करने का किराया अदा ना किया तो मैं तुम्हे दरिया के तूफानी मौजों के सुपुर्द कर दूंगा...
अभी उस मलाह ने अपनी बात पूरी भी ना की थी कि अचानक कुछ मछलियां मुँह मे एक एक दीनार दबाये पानी के ऊपर कश्ती के पास आई और आपने एक मछली के मुँह से दीनार लेकर किराया अदा कर दिया उधर मलाह ये सारी सुरते हाल देखकर थर थर काँपने लगा और फ़ौरन आपके कदमो मे गिर कर मुआफी तलब करने लगा मगर आप कश्ती मेसे दरिया मे उतर गये और पानी पर चलते हुऐ नज़रों से ओझल हो गये
Sufi muslim
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Thanks for reading: हज़रत मालिक बिन दीनार की करामत Hazrat malik bin dinar ki kramat, Sorry, my Hindi is bad:)