Hazrat malik bin dinar tajkiya nafs
हज़रत मालिक बिन दीनार तजकियानफ़्स
Hazrat malik bin dinar
Islamic stories
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Nafs ke liye Roje rakhna
Khurma khane ka waqya
Auliya Allah Ke Waqyat
हजरत मालिक बिन दीनार चालीस साल तक बसरे मे क़याम फरमा रहे लेकिन आपको खुरमा खाने की रगबत ना हुई जिस वक़्त उसके मुतालिक इस्तेफीसार किया जाता आप फरमाते एहले बसरा मेरा पेट खुरमा ना खाने से कुछ कम नहीं हो गया और ना ही खुरमा खाने से तुम्हारा पेट कुछ बढ़ गया जब चालीस साल गुजर गये तो एक रोज आपके नफ़्स मे खुरमा खाने की खुअहिश ऊद कर आई आप नफ़्स को समझाते कि मैं तेरी ये आरजू को पूरा ना करूँगा यहाँ तक कि एक रात आपने खुआब मे देखा जैसे कोई कह रहा हो खुरमा खाओ और अपने नफ़्स को ना दबाओ...
जब आपने अपने नफ़्स से कहा कि एक हफ्ता रोजा रख और दिन और रात को कुछ ना खा और तमाम रात क़याम कर उसके बाद मैं तेरी आरजू पूरी करूँगा नफ़्स ने इकरार किया और एक हफ्ता तक बा मुजिब इरशाद अमल किया मुद्दत खतम हो जाने के बाद आपने खुरमा ख़रीदा और मस्जिद मे आगये कि नॉश फरमा सके इतने मे एक लड़के ने अपने बाप को आवाज दी कि एक यहूदी ने खुरमा ख़रीदा है और उसे खाने के लिये मस्जिद मे गया है बाप ने कहा कि यहूदी का मस्जिद मे किया काम और एक लकड़ी उठाकर मस्जिद मे दाखिल हुआ और वहाँ जब हज़रत को देखा तो पाऊं पर गिर पड़ा और मुआफी तलब करते हुऐ बोला कि अये खुवाजा माफ़ करना हमारे मोहल्ले मे सिवाये यहूदयो के दिन को और कोई नहीं खाता हज़रत बहुत शर्मिंदा हुऐ और खुरमा ना खाया
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Thanks for reading: हज़रत मालिक बिन दीनार तजकियानफ़्स Hazrat malik bin dinar tajkiya nafs, Sorry, my Hindi is bad:)