Hazrat imam jafar sadiq aur shafik balkhi
Ahle bait
Hazrat imam jafar sadiq ki kramat
Hazrat imam jafar
Ahle bait
Kramat wali allah
हज़रत सफीक बलखी फरमाते है मैं 149हिजरी मे ब्रादह हज घर से चला कादसिया मे उतरा मैं लोगों की जीनत और उनकी कसरत देख रहा था कि एक जवान खूबरू पर नज़र पड़ी नफीस लिबास पहने था ऊपर से ऊनी चादर ओढ़े हुऐ पाओ मे जुटी लोगों से अलग बैठा था मैंने अपने दिल मे कहा ये जवान सूफ़ी है लोगों मे यार होगा मैं उसके पास जरूर जाऊ और उसे धमकाऊ मैं उसके करीब गया जब उसने मुझे मुत्वज्जा पाया कहा अये सफीक गुमान करने से बचो बाज गुमान गुनाह हैँ और मुझे छोड़ कर चल दिया...
मैंने अपने जी मे कहा ये बुरा काम है उसने जों मेरे जी मे था कह दिया और मेरा नाम लिया ये तो कोई मर्दे सोलेह मालूम होता है मैं उससे जरूर मिलूंगा और मैं उससे बद गुमानी की मुआफी करवाउँगा मैं उसके पीछे जल्दी करके चला मगर ना पाया और मेरी नज़र से गायब हो गया जब हम मुकामे वाक़सा मे उतरे उसको नमाज़ मे पाया उसके आजा कांप रहे थे और आंसू जारी थे मैंने कहा ये तो वही मेरा दोस्त है इससे मिलकर मैं अपना कुसूर बद गुमानी की मुआफी करवाऊंगा मैंने कुछ देर इंतजार किया और वोह फ़ारिग हो कर बैठा मैं उसकी तरफ मुत्वज्जा हुआ जब मुझे आते देखा कहा अये सफ़ीक़ ये आयेत पढ़. जों कोई तोबा करें और ईमान लाये और अच्छे अमल करें और राह पाये तो मैं उसके गुनाह बख्स देता हु...
फिर मुझे छोड़ कर चले मैंने कहा ये शख्स जरूर अबदाल है मेरे दिल की बात दो मर्तबा बयान करदी जब हम मता मे उतरे मैंने उसी जवान को देखा हाथ मे कोजा लिये पानी के वास्ते कुएँ पर खड़ा है उसके हाथ से कोजा कुवे मे गिर पड़ा मैं उसको देख रहा था उस जवान ने आसमान की तरफ नज़र उठाई और कहा खुदा वन्द अये मेरे मालिक तू खूब जानता है मेरे पास सिवाये इसके और कुछ नहीं मुझसे ये गुम ना करना शफीक फरमाते हैँ खुदा की कसम मैंने देखा कि कुवे का पानी ऊपर तक उबल आया....
उस जवान ने अपना कोजा लेकर पानी से भरा और वजू करके नमाज के लिये खड़ा हुआ बाद अदाये नमाज एक रेत की टीले की तरफ गया और बालू उठाकर कोजे मे भरता था और हिला हिला कर बर बर पीता था मैं उसके पास गया और सलाम किया उसने जवाब दिया मैंने कहा अपना झूठा मुझे इनायत कीजिये कहा अये शफीक खुदा की नियमते जाहरी वा बातनी हमेशा हमारे साथ हैँ अपने परवरदिगार के साथ नेक गुमान रखो....
फिर मुझको कोजा दिया मैंने उस मेसे पिया सत्तू और सक्कर उस मे घुले हुऐ थे खुदा की कसम उससे लजीज और खुशबू दार कभी कोई चीज मैंने ना पी होगी मेरी भूक पियास जाती रही और कई दिन तक वहा ठहरा रहा खाने पीने की खुअहिश ना हुई फिर राह मे मुझे वोह जवान ना मिला यहाँ तक कि वोह काफला मक्का मुआज्जमा मे दाखिल हुआ एक रात मैंने किसी को नमाज पढ़ते देखा निहायत आजजी से नमाज पढ़ रहा था रोने की आवाज सुनी जाती उसी हालत मे तमाम रात गुजर गई जब सुबह हुई अपने मुसाल्ले पर बैठा तस्बीह पढ़ रहा था फिर खड़े होकर नमाज़े फजर अदा कि और सलाम फेर कर खाना काबा की तवाफ अदा की हुए हरम से बाहेर निकला मैं उसके साथ हुआ उसके ख़ादिम वा गुलाम नज़र आये असनाये राह मे जैसा था माहौल यहाँ बिलकुल अलग पाया लोग गिर्द जमा हो गये और सलाम करते थे मैंने एक शख्स से जों उसके करीब था दरयाफ्ट किया ये जवान कौन है कहा हज़रत इमाम जफ़र सादिक हैँ मुझे शख्त ताज्जुब हुआ कि बेशक़ ये अजीब वा गरीब करामात ऐसे ही सय्यद के हैँ....
Ahle bait
Sufi muslim
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Thanks for reading: हज़रत इमाम जफ़र सादिक और शफीक बलखी imam jafar sadiq aur shafik balkhi , Sorry, my Hindi is bad:)