हजरत बशर हाफी और एक ताजिर का वाक़्या hazrat bashar hafi story
बगदाद मे एक ताजिर रहता था जो हमेशा बुजुर्गाने दीन की बुराई करता था एक शैख फरमाते हैँ कुछ अरसा बाद मैंने उसे बुगुरगाने दीन की सोहबत मे बैठे देखा उस ताजिर ने अपना सारा माल वा मता उन बुजुर्गाने दीन की खिदमत मे खर्च कर दिया था मैंने उससे पूछा तुम तो बुजुर्गाने दीन सुफिया कराम से नफरत रखते थे फिर ये इंकलाब कैसा? ताजिर ने जवाब दिया मैं जो कुछ उन लोगों के बारे मे सोचा करता था वोह गलत था शैख ने पूछा तुमने ये कैसे जाना ताजिर ने जवाब दिया मैंनें एक दिन जुमा की नमाज पढ़ी मैंने बशर को देखा कि सरअत के साथ जामा मस्जिद से निकल कर जा रहे थे मैंने अपने जी मे कहा कि देखो इस शख्स को जो बहुत बड़ा सुफी मशहूर है और एक लहज़ मस्जिद मे नहीं ठहरता ये कहाँ जाता है?
उसने बाजार मे ना नबाई से नरम नरम रोटियां खरीदी मैंने अपने दिल मे कहा कि ये सुफी हैँ और नरम नरम रोटियां खरीदते हैँ फिर कबाबी से एक दिरहम के कबाब ख़रीदे मेरा गुस्सा और जियादा हुआ वहाँ से वोह हलवाई के दुकान पर आया और एक दिरहम का फालूदा ख़रीदा मैंने सोचा कि जब ये खाने बैठेगा तो उसपर ऐश तल्ख कर दूंगा उसने जंगल का रास्ता लिया मुझे ख्याल आया कि उसे सबजा जार की तलाश है वहाँ बैठ कर खायेगा चुनानचे मैं भी उसके पीछे पीछे हो लिया वोह असर तक चलता रहा असर के वक़्त एक गाँव मे पहुंचा और एक मस्जिद मे दाखिल हुआ,
मस्जिद मे एक मरीज था उसके सरहाने बैठ कर उसे बड़ी मुरव्वत से खिलाने लगा मैं गाँव देखने के इरादे से मस्जिद से बाहर निकला और थोड़ी देर के बाद वापस लौटा तो उन्हें ना पाया मैंने उस मरीज से पूछा कि बसर कहाँ हैँ उसने कहा कि वोह बगदाद लौट गये मैंने दरियाफ्ट किया कि बगदाद का यहाँ से कितना फासला है उसने कहा चालिस फरसक यानि 5मंजिल मैंने कहा मैंने अपने ऊपर ये किया मुसीबत डाल ली ना मेरे पास इतने पैसे हैँ कि कोई सवारी किराया पर करुँ ना इतनी ताकत है कि इतनी दूर चल सकूँ,
उस मरीज ने कहा की उनके वापस आने तक यहीं रुको चुनानचे आइंदा जुमा तक वहीँ पड़ा रहा बशर अइन उसी वक़्त पहुचे और उनके पास मरीज के लिये उसी तरह की खुराक थी जब मरीज को खाना खिला चुके तो उसने कहा कि अये अबु नसर ये शख्स तुम्हारे साथ पिछले जुमा आया था और हफ्ते भरसे यहाँ है इसे ठिकाने पर पहुंचा दो सौदागर कहता है कि उन्होंने मुझे गुस्से से घूरा और कहा तू कियों मेरे साथ आया था मैंने कहा गलती हो गई उन्होंने फरमाया उठो चलो मैं उनके पीछे मगरिब तक चला जब हम शहर के करीब पहुचे तो उन्होंने फरमाया कि तेरा मोहल्ला कोनसा है? मैंने कहा फलां मोहल्ला है इसपर कहा अच्छा जाओ फिर कभी ऐसा ना करना जबसे मैंने तोबा की और उनकी सोहबत इख़्तियार की,
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Thanks for reading: हजरत बशर हाफी और एक ताजिर का वाक़्या hazrat bashar hafi story, Sorry, my Hindi is bad:)