हजरत इब्राहिम बिन अधम की करामत ibrahim bin adham ki kramat

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ibrahim bin adham ki Kramat

हजरत इब्राहिम बिन अधम की करामत 


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हजरत मोहम्मद मुबारक सूफी कहते हैँ कि एक मर्तबा मैंने हजरत इब्राहिम बिन अधम के हमराह बैतुल मुकद्दस के सफर मे दुपहर के वक़्त एक अनार के द्रख्त के नीचे नमाज अदा की उस वक़्त द्रख्त मेसे निदा आई कि मेरा फल खाकर इज्जत अफजाइ की जाये चुनानचे आपने दो अनार तोड़ कर एक मुझे दिया और एक खुद खाया लेकिन उसवक़्त वोह द्रख्त भी छोटा था और अनार भी तर्स थे मगर जब हम बैतुल मुकद्दस से वापस हुऐ तो वोह काफी बड़ा हो चुका था और अनार भी काफी हो चुके थे और साल मे दो मर्तबा फल देता था इसी करामत की बिना पर इस द्रख्त को रमान अल अब्देन के नाम से मौसुम कर दिया गया,


हजरत इब्राहीम बिन अधम का एक रास्ते से गुजर हुआ जहाँ एक शराबी को बेहोश पड़े देखा उसके मुँह से झाग निकल रही थी हजरत इब्राहीम बिन अधम ने उसकी जुबान धोई और फरमाने लगे कैसी जुबान को ये आफत पहुंची जो अल्लाह का जिक्र करती थी जब उसे होश आया तो लोगों ने इब्राहीम बिन अधम के सुलूक का जिक्र किया तो वोह शख्स बहुत शर्मिंदा हुआ और तोबा की हजरत इब्राहीम बिन अधम को खुवाब मे बसारत हुई कि तूने हमारे वास्ते उसकी जुबान पाक की हमने तेरी वजा से उसका कल्ब पाक किया,


हजरत इब्राहीम बिन अधम जब सल्तनत छोड़ कर जब इता आते इलाही मे मशगूल हो गये तो हजरत के एक साहेब जादे ने आपको बहुत तलाश किया आखिर मे एक दफा देखा कि हजरत दरिया के किनारे द्रख्त के साये मे बैठे हुऐ अपना कुरता सी राहे थे साज जादे ने सलाम के बाद अर्ज किया ये कैसी जिन्दगी आपने इख़्तियार कर रखी है इस तन्हाई और वहसत से किया हासिल हजरत इब्राहीम अधम खामोश रहे और कोई जवाब ना दिया जब सहजादे ने देखा कि आप खामोश रहे और कोई जवाब ना दिया तो उसने गुस्से से सुई हजरत के हाथ से लेकर दरिया मे फेक दी और कहा या तो आप मुझे सुई निकाल कर दिखाए या घर चल कर सल्तनत संभाले हजरत ने फरमाया बेटा सुई अब किस तरह निकल सकती है लेकिन जब सेहजादा किसी तरह राजी ना हुआ तो हजरत ने मछलीयों को सुई लाने का हुकुम दिया सहजादे ने देखा कि मछलीयों मुँह मे हजारों सुईया लेकर हाजिर हो गई तो उसने कहा मैं तो वही सुई चाहता हू जो मैंने फैकी है इतने मे एक बहुत बड़ी मछली ने नमुदार होकर कहा कि मैं उस सुई को हजरत खिज्र के लिये बतौरे ताबर्रुक लिये जा रही थी हजरत के एहतेराम मे वापिस लाई हू सहजादा इस वाक्या से बहुत मुतासिर हुआ और अर्ज किया कि मैंने अल्लाह और उसके रसूल की मोहब्बत मे हायल होने की कोशिश की थी मुझे माफ़ कीजिये और अपने क़दमों मे रहने की इजाजत दी जिये हजरत शैख ने फरमाया कि बेटा तुम वापिस जाओ जो अपने परवर्दिगारे आलम की याद मे महू हो किसी किसी चीज से सरोकार नहीं होता,



हजरत इब्राहीम बिन अधम का एक वाक्या है कि एक मर्तबा किसी इरादत मंद ने आपसे दरखास्त की कोई नसीहत कीजिये इसपर आपने फरमाया कि 6 आदत अपना लो पहला ये कि जब तुम इरतेकाब मइसत करते होतो खुदा के रिज्क को मत इस्तेमाल करो दूसरा अगर मइसत का इरादा होतो खुदा की मिल्कियत मेसे निकल जाओ तीसरा ऐसी जघा जाकर गुनाह करो जहाँ खुदा ना देख रहा हो उसपर जब लोगों ने ऐतराज किया कि वोह कोनसी जघा है जहाँ खुदा नहीं देख सकता जबकि वोह इसरार वा कल्ब तक से आगाह है तो फरमाया कि ये किया इन्साफ है कि उसका रिज्क इस्तेमाल करो उसी के मुल्क मे रहो और उसी के सामने गुनाह भी करो फिर आपने चौथी नसीहत ये की कि फरिश्ता अजल से तौबा का वक़्त तलब करो पांचवा मुनकर नकीर को क़ब्र मे मत आने दो और छट्टी नसीहत आपने ये की कि जब जहन्नम मे जाने का हुकुम मिले तो इंकार करदो आपकी ये नसीहते सुनकर सायल ने अर्ज किया कि ये तमाम चीजें तो ना मुमकिनात मे से हैँ किसी इन्सान के लिये इनपर कारबंद रहना मुमकिन नहीं इसपर आपने फरमाया कि अगर ये तमाम चीजें ना मुमकिनात मेसे हैँ तो कबीरा गुनाह मत करो रीवायत है कि ये सुनते हि वोह शख्स ताइब होकर उसी वक़्त आपके सामने इस जहाँ फानी से कूच कर गया,

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Thanks for reading: हजरत इब्राहिम बिन अधम की करामत ibrahim bin adham ki kramat, Sorry, my Hindi is bad:)

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