हजरत इब्राहीम अधम की खास स्टोरीज sufi ibrahim adham ki stories

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हजरत इब्राहीम अधम की खास स्टोरीज sufi ibrahim adham ki stories

Sufi hazrat ibrahim bin adham ki stories

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हजरत इब्राहीम बिन अधम हर किसिम के दुनियावी लोभ लालच से बेनियाज थे एक मर्तबा किसी ने नजराने के तौर पर आपको एक हजार दिरहम पेश किये मगर आपने ये कहकर उस पेशकश को ठुकरा दिया कि मैं फकीरों से कुछ नहीं लेता दिरहम देने वाले ने अर्ज किया कि मैं तो बहुत अमीर हू इसपर हजरत इब्राहीम ने उससे दरियाफ्ट किया कि किया तुझे और दौलत की अरजू नहीं है जिस पर दिरहम देने वाले शख्स ने हाँ मे सर हिलाया आपने उससे कहा कि तू ये रकम ले जा कियोकि तू फकीरों का सरदार है,



हजरत इब्राहीम बिन अधम ने फरमाया कि एक मर्तबा मैं बया बानों की खाक छानता हुआ जब नवाहे इराक मे पहुंचा तो मैंने ऐसे 70 फुकरा को देखा जो राहे मौला मे अपनी जान निछावर कर चुके थे लेकिन उनमे एक ऐसा फर्द बाकी था जिसमे जिन्दगी के कुछ आसार बाकी थे और जब मैंने उस वाक़्या की नौयेत दरियाफ्ट की तो उसने कहा कि अये इब्राहीम बस मेहराब और पानी को जज वा हयात बनाकर आगे जाने की सई ना करो वर्ना महजूर हो जाओगे और कुर्बत का तसव्वार भी छोड़ दो वर्ना अजियत उठाओगे कियोकि किसी की ताब वा ताकत नहीं कि सलामत रवि की हालत मे गुस्ताखी का मूर्तकिब हो सके और उस दोस्त से भी डरते रहो जो हजाज को कुफ्फारे रौम की मानिन्द बजिरिये जंग त तेग कर देता है और हम उस बयान मे ये अहेद करके कि खुदा के सिवा किसी से सरोकार नहीं रखेंगे महज तवक्कल अलल्लाह के सहारे मुकीम हो गये और जब कता मुसाफत करते हुऐ बैतूल्लाह के करीब पहुचे तो हजरत खिज्र से सर्फ नियाज हासिल हो गया और हमने आपकी मुलाकात को मुबारक फाल तसव्वार करते हुऐ अपने सई के बार अवर होने पर खुदा का शुक्र अदा किया लेकिन उसी वक़्त निदा आई कि अये अहेद शिकनों, अये फरेब कारों, किया तुम्हारा यहि अहेद था की मुझको फरामोश करके दूसरों से राह वा रसम बढ़ाऊ सुनलो कि मैं तुमहे इस जुर्म की सजा मे मौत के घाट उतार दूंगा, चुनानचे अये इब्राहीम अधम ये तमाम फौत शुदह लोग उसी के कहर का शिकार हो गये और अगर तुम भी खैरियत चाहते होतो एक कदम भी आगे ना बढ़ाना और हजरत इब्राहीम ने उस शख्स से हैरत जदा होकर पूछा कि तुम कैसे जिन्दा बच गये जवाब दिया कि अभी नीम पुख्ता हू और अब उन्ही की तरह पुख्ता होकर जान देना चाहता हू ये कह कर वोह भी जान बाहक हो गया,


एक मर्तबा हजरत इब्राहीम बिन अधम ने कुवे से डोल निकाला तो डोल सोने से भरा हुआ था आपने उसे फेक कर फिर डोल डाला तो चाँदी से भरा हुआ निकला और तीसरी मर्तबा मोत्यो से उस वक़्त आपने कहा या अल्लाह मैं तो पाकीजगी हासिल करने के लिये पानी का खुवास्तगार हू मेरी निगाहों मे हीरे ज्वाहरात की कोई हकीकत नहीं,

किसी ने हजरत इब्राहीम अधम से दरियाफ्ट किया कि किया आपको कभी अपने मकसद मे कामयाबी हुई है हजरत इब्राहीम अधम ने फरमाया दो मर्तबा मुझे अपने मकसद मे कामयाबी हुई है एक उस वक़्त जब मैं एक कश्ती मे सफर कर रहा था और मुझे किसी ने सनाखत तक ना किया कियोकि मैंने फ़टे पुराने कपडे पहने हुऐ थे और बाल बढे हुऐ थे ऐसी हालत मे कश्ती के सारे मुसाफिर मेरा मजाक उड़ाते रहे कश्ती के मुसाफिरों मे एक मुस्खुरा भी था वोह उलटी सीधी हरकते करते हुऐ मेरे करीब अता और मेरे सर के बाल नोचता उखाड़ता और मेरे साथ बेहूदा मज़ाक करता उसके इस तरह करने से मेरी मुराद पुरी हुई और अपने बोसिदा कपडे से मुझे बे इन्तेहा खुशी हुई यहाँ तक कि मेरी खुशी इन्तेहा को पहुंच गई जब उस मुसखरे ने उठ कर मुझ पर पेशाब कर दिया और दूसरी बार उस वक़्त मुझे मकसद कामयाबी हुई जब मैं एक गाँव मे था और वहाँ बड़े जोर की बारिश हो रही थी मोसम सर्दी का था सर्दी से मेरा जिस्म ठीठर सा गया और मेरे जिस्म पर गदड़ी थी वोह भी भीग गई थी मैंने सर्दी और बारिश से बचने के लिये एक मस्जिद की तरफ रुख किया लेकिन मस्जिद मे मुझे ठहरने की इजाजत ना मिली फिर दूसरी मस्जिद की तरफ चला गया लेकिन वहाँ भी ठहर ने ना दिया गया इसके बाद मैं तीसरी मस्जिद मे गया और वहाँ भी मेरे साथ वही सुलूक हुआ मैं अजिज आगया और सर्दी मेरी बर्दास्त से बाहर हो गई आखिर कार तंग आकर मैं एक हमाम की भठी के आगे बैठ गया और अपना भीगा हुआ लिबास सुखाने के लिये आग के सामने कर दिया इस कोशिश मे आग और धुआँ मुझपर पड़ा जिससे मेरे कपडे और चेहरा सियाह हो गये उस रात भी मैंने अपनी मुराद पाली,


एक मर्तबा लोगों ने हज़रत इब्राहीम बिन अधम से दुआयें कबूल ना होने की शिकायत की तो फरमाया कि तुम खुदा को पहचानते हुऐ भी उसकी इताअत से गुरेजा हो और उसके क़ुरआन वा रसूल से वाकिफ होते हुऐ भी उनके एहकाम पर अमल पैरा नहीं होते और उसका रिज्क खाकर भी उसका शुक्र नहीं करते जन्नत मे जाने और जहन्नम से निजात पाने का इन्तेजाम नहीं करते माँ बाप को दफ़न करके भी इबरत हासिल नहीं करते इब्लीस को गनीम जानते हुऐ भी उसकी मुआन्दत नहीं करते अजल की आमद का यकीन रखते हुऐ भी उससे बे खबर हो और अपने ऐब से वाकिफ होते हुऐ भी दूसरों की ऐब जोई करते रहते हो फिर जरा खुद सोचो कि ऐसे लोगों की दुआयें भला कैसे कबूलियत हासिल कर सकती हैँ,

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Thanks for reading: हजरत इब्राहीम अधम की खास स्टोरीज sufi ibrahim adham ki stories, Sorry, my Hindi is bad:)

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