अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक abdullah ibn mubarak
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हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने अपनी जिन्दगी मे ही तमाम माल दौलत दर्वेशो को तक्सीम कर दिया था एक दिन आपके पास एक मेहमान अया आपके पास जो कुछ भी था उसको खर्च कर दिया और कहा मेहमान हक ताला का भेजा हुआ है जहाँ तक हो सके उसकी खिदमत करनी चाहये आपकी अहलिया इस बारे मे आपसे झगड़ने लगी आपने फरमाया ऐसी औरत जो नेक काम मे झगड़ा करे उसे घरमे ना रहना चाहिये आपने उसके हक मुहर का इन्तेजाम करके उसे तलाक देदी हक ताला का करना ऐसा हुआ कि एक सरदार की लड़की आपकी मजलिस मे आई उसको आपकी बातें ऐसी अच्छी मालूम हुई कि घर आकर उसने अपने माँ बाप से कहा कि मेरा निकाह कर दिया जाये बाप ने अपनी बेटी को पचास हजार दीनार देकर उसका निकाह आपसे कर दिया फिर आपने खुवाब देखा हक ताला ने फरमाया कि तुमने औरत को हमारे लिये तलाक दी अब ये औरत तुझको उसके ऑज मे अता की गई है ताकि तू जाने कि किसी को हमारे साथ मुआमला करने मे ज्यां नहीं होता,
हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक का वक़्त करीब पहुंचा तो आपने अपना तमाम माल दर्वेसों मे तक्सीम कर दिया एक मुरीद आपके सरहाने था उसने कहा अये शैख आपकी तीन बेटियां हैँ और आप दुनिया से आँखे बन्द कर रहे हैँ इनके लिये भी कुछ छोड़ दी जिये उनकी तदबीर आपने किया फरमाइ है आपने इरशाद फरमाया मैंने उनसे ये कह दिया है, अहले सलाह का कार साज वही है पस जब किसी का कार साज अल्लाह हो वहाँ अब्दुल्लाह की किया जरुरत है,
हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक के इबतेदाई हालात जिन्दगी मे मजकूर रहे कि आप एक औरत पर इस दर्जा आशिक थे कि किसी पहलू चैन ना अता था सर्दी का मोसम था एक रात मेहबूबा के मकान की दिवार के साथ सुबह तक लगे खड़े रहे जब सुबह की अजान हुई तो आपने ख्याल किया कि इशा की अजान हुई है लेकिन फ़ौरन ही आदमियों की आमद वा रफ्त और रोशनी नमुदार होने पर मालूम हुआ कि मैं सारी रात मेहबूबा की दिवार से लगा खड़ा रहा हू और मुफ्त मे एक मखलूक का इस कद्र इन्तेजार करता रहा फिर अपने आप से कहने लगे मुबारक के बेटे शरम कर हवाये नफशानी के खातिर तूने सारी रात गुजारी अगर नमाज मे सारी रात खड़ा रहता तो कितना अच्छा होता फ़ौरन तौबा की और इबादते इलाही मे मशगूल हो गये और यहाँ तक दर्जा हासिल कर लिया कि एक रोज आपकी वालदा ने देखा कि आप एक द्रख्त के नीचे सो रहे हैँ और एक सांप नरगिस की साख मुँह मे लिये हुऐ मग्स राफी कर रहा है,
हजरत सहल पेसतर आपके पास तसरीफ लाया करते थे एक मर्तबा चलते हुऐ कहने लगे कि अब मैं कभी आपके पास नहीं आऊंगा इसलिये कि आज छत परसे आपकी कनीज मुझे अये सहल अये सहल कहकर आवाज दे रही थी और ये बात मेरे लिये बार खातिर हो गई ये सुनकर हजरत अब्दुल्लाह ने कहा कि आओ सहल की नमाजे जनाजा अदा करें चुनानचे उसी दिन उनका इन्तेकाल हो गया और तजहेज वा कफन के बाद जब लोगों ने सवाल किया कि मौत से पहले ही आपको उनके मौत का इल्म हो गया था फरमाया कि उन्होंने ये कहा था कि तेरी छत पर से कनिजे मुझे अये सहल कहकर आवाज दे रही थी हालांकि मेरे यहाँ कोई लौंडी नहीं है और वोह यक़ीनन हूरे थी जो आवाज दे रही थी इसी वजा से मैंने उनकी मौत का यकीन कर लिया,
हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक फरमाते थे कि मैं एक मर्तबा हज के लिये रवाना हुआ लेकिन रास्ते मे इतनी ताखीर हो गई कि सिर्फ चार दिन हज के लिये बाकी रह गये और मुझे यकीन हो गया कि अब मैं हज से मेहरूम रह जाऊंगा लेहाजा किया शक्ल इख़्तियार करनी चाहिये उसी फिराक मे एक बुढ़िया ने आकर मुझसे कहा कि मेरे साथ चल मैं तुझे अरफ़ात तक पहुचाये देती हू चुनानचे मैं चल पड़ा और जब राह मे कोई दरिया आजाता तो वोह कहती की आँखे बन्द करलो और जब मैं इसपर अमल करता तो ऐसा महसूस होता कि मैं सिर्फ कमर कमर तक पानी मे चल रहा हू और जब दरिया पर कर लेता तो वोह कहती आँखे खोल लौ गर्ज कि उसी तरह उसने मुझे अरफ़ात तक पहुंचा दिया और हज से फारिग होने के बाद बुढ़िया ने कहा कि चलो मैं अपने बेटे से तुम्हारी मुलाकात करवाऊ और जब मैं वहाँ पहुंचा तो देखा कि एक बहुत ही कमजोर सा नौजवान नूरानी सूरत का बैठा हुआ है और माँ को देखते ही क़दमों पर गिर कर कहने लगा कि मुझे मालूम हो चुका है कि तुम दोनो को अल्लाह ताला ने मेरी तजहेज वा तकफीन के लिये भेजा है कियोकि मेरे मौत का वक़्त बहुत करीब है ये कहते ही वोह फौत हो गया और मैंने ग़ुस्ल देकर उसे क़ब्र मे उतार दिया लेकिन बुढ़िया ने मुझसे कहा कि अब तुम रुखसत हो जाओ कियोकि मैं अपनी जिन्दगी को बेटे की क़ब्र पर गुजारना चाहती हू और आइंदा साल जब तुम आओगे तो मैं तुम्हे ना मिल सकुगी लेकिन मेरे लिये हमेशा दुआये खैर करते रहना,
एक मर्तबा आप हज से फारिग होने के बाद बैतूल्लाह मे सो गये और खुवाब देखा कि दो फ़रिश्ते आपस मे बातें कर रहे हैँ और एक ने दूसरे से सवाल किया कि इस साल कितने लोग हज मे शरीक हुऐ और कितने लोगों का हज कबूल हुआ दूसरे ने जवाब दिया 6लाख आदमियों ने हज अदा किया लेकिन एक फर्द का भी हज कबूल नहीं हुआ मगर दमिस्क का एक मोची जो हज मे तो शरीक नहीं हुआ लेकिन खुदा ने उसका हज कबूल फरमा कर उसके तुफेल मे सब का हज कबूल कर लिया ये खुवाब देखकर बेदारी के बाद मोची से मुलाकात करने दमिस्क पहुचे और मुलाकात के बाद जब उसका नाम वा नस्ब दरियाफ्ट करके हज का वाक़्या दरियाफ्ट किया तो उसने अपना नाम पेशया बयान करने के बाद जब आपका नाम पूछा तो आपने बता दिया कि मैं अब्दुल्लाह बिन मुबारक हू ये सुनते ही वोह चीख मारकर बेहोश हो गया और होश मे आने के बाद इसतरह अपना वाक़्या बयान किया कि बहुत अरसा से मेरे कल्ब मे हज की तमन्ना थी और मैंने इस नियत से 300दिरहम भी जमा कर लिये थे लेकिन एक दिन मेरे पडोसी के यहाँ से खाना पकने की खुशबू आई तो मेरी बीवी ने कहा कि उसके यहाँ से तुमभी मांग लाओ ताकि हम भी खाले चुनानचे मैंने उससे जाकर कहा कि आज आपने जो कुछ पकाया है हमें भी इनायत करें लेकिन उसने कहा कि वोह खाना आपके खाने का नहीं है कियोकि 7दिन से मैं और मेरे अहल वा अयाल फाका कसी मे मुबतिला थे तो मैंने मुर्दा गधे का गोस्त पका लिया है ये सुनकर मैं खौफे खुदा वंदी से लरज गया और अपनी तमाम जमा सुदह रकम उसके हवाले करके ये तसव्वर कर लिया कि एक मुसलमान की इमदाद मेरे लिये हज के बराबर है हजरत अब्दुल्लाह ने ये वाक़्या सुनकर फरमाया कि फरिश्तों ने खुवाब मे वाक़ई सच्ची बात कही थी और अल्लाह दरहकीकत कजा वा कद्र का मालिक है,
हजरत अब्दुल्लाह बिन मुबारक का वाक़्या है कि आप एक मर्तबा कहीं तसरीफ ले जा रहे थे कि रास्ता मे कुछ लोगों ने एक नाबीना से कहा कि अब्दुल्लाह बिन मुबारक तशरीफ़ ला रहे हैँ जो कुछ तलब करना चाहे तलब कर लें चुनानचे उसने आप को ठहरा कर ये दुआ करने की दरखास्त की कि मेरी बसारत वापिस आजाये और जब आपने दुआ फरमाइ तो फ़ौरन ही उसकी बसारत वापिस आगई,
abdullah ibn mubarak
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Thanks for reading: अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक abdullah ibn mubarak, Sorry, my Hindi is bad:)