हजरत मारूफ करखी का वाक़्या hazrat maruf karkhi
Islamic storyHazrat maroof karkhi
हजरत मारूफ करखी वजला के किनारे पर वुजू के लिये तशरीफ़ लें गये अपना कुरआन शरीफ और कपड़ा दरिया के किनारे पर रखा एक औरत आई कुरआन शरीफ और कपड़ा उठाकर ले चली हजरत भी उसके पीछे गये और एक तन्हा जघा पर उसे जा पकड़ा ताकि उसकी बेतुक ना हो और फरमाया तू मत डर अये औरत मैं मारूफ करखी हूँ अये बहन तेरा कोई बेटा है जो क़ुरआन पढ़े? उसने कहा नहीं हजरत ने दुबारा दरियाफ्ट फरमाया किया तेरा कोई खाविंद है? औरत ने जवाब दिया नहीं हजरत ने फरमाया किया तेरा कोई भाई है? उसने कहा नहीं हजरत ने फरमाया तो तू क़ुरआन शरीफ मुझे देदे और कपड़ा तेरा है तुझे हलाल है दुनिया वा आखिरत मे मेरी तरफ से तुझपर कोई ग्रिफ्ट नहीं इस बात से औरत बहुत शर्मिंदा हुई और कहा मैं अल्लाह ताला से तौबा करती हूँ फिर कभी ऐसा ना करुँगी हजरत उसकी तौबा से बहुत खुश हुऐ और उसके वास्ते दुआ फरमाइ और दोनो अपने अपने रास्ते पर रवाना हुऐ
भूक और सब्र का सिला bhookh aur sabr ka sila
हजरत मारूफ करखी से मर्वी है फरमाते कि हैँ मैंने जंगल मे एक खूबसूरत नौजवान देखा उनकी खूबसूरत जुल्फे थी और सर पर एक चादर ओढ़े हुऐ थे और बदन पर कतान का एक कुरता था और पाओं मे तस्मा दार जूता था मैं उसे देख कर मुताजुब हुआ ऐसे जंगल मे इसका ये लिबास था मैंने कहा अस्सलामु अलैकुम वा रहमातुल्लाह वा बरकातुह उसने कहा वालेकुम अस्सलाम वा रहमातुल्लाह वा बरकातुह चचा साहेब मैंने पूछा अये नौजवान तू कहाँ का रहने वाला है, कहा दमिस्क का रहने वाला हूँ, मैंने कहा कबसे वहाँ से निकले हो कहा आज ही चास्त के वक़्त मुझे ताज्जुब हुआ कियोकि उस जघा से जहाँ मैंने उसे देखा था दमिश्क़ कई मंजिल पर था मैंने कहा कहाँ जाओगे? कहा मक्का मुअज्जमा इंशाअल्लाह ताला मैं समझ गया, कि वोह उठा और जा रहा है और उसे रुखसत करके चला गया तीन साल तक मैंने उसे ना देखा एक दिन मैं अपने घर मे बैठा उस शख्स के मुआमले मे फ़िक्र करता था कि ना मालूम मेरे जुदा होने के बाद उसका किया हाल हुआ तो अचानक दरवाजे पर दस्तक देने की आवाज आई मैं निकल आया तो वही शख्स था मैंने सलाम किया और उसको घर ले आया उस वक़्त वोह शख्स नंगे सर और नंगे पाओं था और बदन पर मुकम्मल कुरता था मैंने पूछा किया खबर है? कहा अये उस्ताद मुझे अपने फाअल और मुआमले की अल्लाह ताला इत्तेला नहीं करते हैँ कभी मेरे साथ मुलातफत और नरमी है कभी मुझपर अपनी हैबत तारी करते हैँ कभी मुझको भूखा रखते हैँ कभी खिलाते हैँ,
काश मुझको अपने औलिया के इसरार पर मुत्तले फरमाते फिर जो चाहते करते और बहुत रोये हजरत मारूफ करखी फरमाते हैँ कि उसकी बातों से मुझे भी रोना आया और मैंने कहा कि मेरे बाद तुम पर किया माजरा गुजरा कुछ बयान करो कहा अफसोस उसे जाहिर करदूं वोह चाहता है कि पोशीदा रखु हाँ पहला काम मेरे साथ जो मेरे मौला मेरे मालिक ने किया वोह ये है कि मुझे 30 दिन तक भूखा रखा उसके बाद मैं एक खीरे के खेत पर एक गाँव मे पहुंचा देखा तो ख़राब खीरे खेत मे से चुन कर फैके गये थे मैं उन मेसे चुन चुन कर खा रहा था इतने मे खेत का मालिक आया और एक कोड़ा लेकर मेरी पुस्त पर मारने लगा और कहता जाता था अये चोर तेरे सिवा खेत को किसी ने खराब नहीं किया है मैं कई रोज से तेरे तलाश मे हूँ अब मैंने तुझे पकड़ लिया है वोह मुझे मार रहा था कि इतने मे एक सवार घोड़ा दौड़ाता हुआ उसके सर पर आ पहुंचा और कोड़ा उसके हाथ से छीन कर कहा कि औलिया अल्लाह पर हमला करता है और उन्हें मारकर उनकी इहानत करता है और उन्हें चोर कहता है जब खेत वाले ने ये हाल देखा तो मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गया और जितनी खातिर और इज्जत मुमकिन थी सब उसने मेरे साथ की और मुआफी चाही जबकि मैं उसके पास चोर से वली बन गया इतना जुमला कहने पाये थे कि दरवाजा के ठोकने की आवाज आई और वही खेत वाला आया अपना सारा माल फुकरा पर तक्सीम कर दिया वोह शख्स बड़ा मालदार था और उस जवान के साथ हो लिया दोनो हज को गये और जंगल मे दोने ने वफ़ात पाई
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Thanks for reading: हजरत मारूफ करखी का वाक़्या hazrat maruf karkhi, Sorry, my Hindi is bad:)