सच्चाई की जीत फतेह मूसली Sachai Ki Jeet Sufi Poem
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एक दफा का वाक्या है कि एक जल्लाद को कोतवाल ने हुकुम दिया कि हजरत सिर्री सकती को सजाये मौत दी जाये अइन उस वक़्त जब जल्लाद हजरत सिर्री सकती का सर कलम करने लगा तो उसने देखा कि एक बड़े ही जलीलुल कद्र बुजुर्ग खड़े हैँ और उनकी उंगली के इशारे से हजरत सिर्री सकती की गर्दन जफी करने से मना फरमा रहे हैँ कोतवाल शहर पर हैबत सी तारी हो गई वहाँ पर काजी वक़्त भी तशरीफ़ फरमा थे उन्होंने जब सारी सूरते हाल का जाइजा लिया तो कोतवाले शहर से पूछा कि इस शख्स को किस बिना पर सजाये मौत दी जा रही है? कोतवाल ने काजी को बताया कि ये शख्स कातिल है इसके खिलाफ गवाह और सबूत मौजूद हैँ और इन्ही गवाहों और सबूतों की रोशनी मे इसके कतल का फैसला किया गया है काजी ने हजरत सिर्री सकती के कतल का फैसला मौकूफ कर दिया और हुकुम दिया कि मुल्ज़िम और गवाहों को मेरी अदालत मे पेश किया जाये मैं सारे बयानात और शहादते खुद सुनुँगा और फिर फैसला करूँगा,
अगले रोज हजरत सिर्री सकती और गवाह अदालत मे पेश हुऐ काजी ने पहले जनाब सिर्री सकती से पूछा, आप पर जो इल्जामात लगाये गये हैँ आप उनके मुतालिक अपनी सफाई पेश करें हजरत सिर्री सकती ने अर्ज की मैं बिल्कुल बेगुनाह हूँ एक रात मैं अपने मुरीदों के हलके मे बैठा हुआ था कि हजरत फतेह मूसली का जिक्र चल निकला मेरे मुरीदों का ख्याल था कि मौसूफ पर हर वक़्त जजब वा सुक्र तारी रहता है उनको अपनी खबर तक नहीं है और जिसको अपनी खबर ना हो वोह ज़माने की खबर किया रख सकता है लेहाजा ऐसे बे खबर को बुजुर्ग नहीं समझा जा सकता मैं अपने मुरीदों को समझा रहा था कि हजरत फतेह मूसली ऐसे दरवेश हैँ जिनकी जात मे सहू और सुक्र को एक्जा करदिया गया है वोह जजब वा सुक्र के बावजूद सहूँ वा सुलूक मे रहते हैँ और उन्हें हर चीज का फ़िक्र वा ख्याल रहता है मेरे मुरीदों मे एक मुरीद इस बात पर बजद था कि हजरत फतेह मूसली बुजुर्ग वा दरवेश नहीं बल्कि दिमागी तौर पर मुखतिल और दीवाने हैँ
मैंने अपने उस मुरीद को कहा कि तुम अभी मेरे साथ चल कर आजमा लो कि मौसूफ बुजुर्ग तुम्हारे ख्याल के मुताबिक हैँ या मेरे ख्याल के मुताबिक मेरे मुरीद ने रात का वक़्त होने की वजा से हजरत फतेह मूसली के पास जाने से ऐतराज किया कियोकि रात को गस्ती पोलिस किसी भी शुबे मे पकड़ सकती है लेकिन मैंने उसी वक़्त अपने मुरीद को हजरत फतेह मूसली की खिदमत मे ले जाने का फैसला किया हम दोनो अभी जियादा फासला तय ना कर पाये थे कि कश्ती पोलिस हमें दूसरी तरफ से आती हुई दिखाई दी मेरा मुरीद तो पोलिस के खौफ से भाग गया जबकि मैं वहीं खड़ा रहा,
पोलिस वालों ने मुझसे पूछा तुम कौन हो और इस वक़्त बाजारों मे कियों फिर रहे हो? मैंने उन्हें जवाब दिया मैं वक़्त का मशहूर सूफी सिर्री सकती हूँ और हजरत फतेह मूसली की मुलाकात को जा रहा हूँ मगर पोलिस वालों ने मेरी एक ना सुनी और मुझे चोर कहना शुरू कर दिया मैंने उन्हें बहुत समझाया मगर बे सूद उन्होंने मुझे ग्रिफ्तार करके हवालात मे बन्द कर दिया और अगले रोज दो झूठे गवाह बुलाकर मुझपर चोर और कातिल का इल्जाम लगवा कर गवाही साबित करदी और मुझे सजाये मौत दिये जाने के एहकाम जारी कर दिये गये लेकिन जब जल्लाद तलवार चलाने लगा तो उससे तलवार ना चलाई गई कियोकि जब भी जल्लाद तलवार चलाने लगता हजरत फतेह मूसली उसको तलवार चलाने मे मजाहम हो जाते जिस मजमा मे मुझपर तलवार आजाई हो रही थी वहाँ मेरा वोह मुरीद भी खड़ा था जो हजरत फतेह मूसली की करामत का मुनकर था उसने अपनी आँखों से देखा कि हजरत फतेह मूसली अपने प्रस्तारों और अकीदत मंदो की तरफ से हर वक़्त आगाह रहते हैँ और यूँ इतनी दूर से आकर मुझे तलवार की काट से बचाने के लिये आना उनकी करामत मे शामिल था लेहाजा मैं जिस मकसद के लिये अपने मुरीद को हजरत फतेह मूसली के पास ले जाना चाहता था वोह यहां पर ही पूरा हो गया,
ये बयान सुनने के बाद काजी साहब ने दोनो गवाहों से पूछा, तुम बताओ कि इस शख्स को तुम कैसे कातिल वा सारिक साबित करते हो? दोनों ने दस्त बस्ता काजी साहब से अर्ज की जनाब हम बे कसूर हैँ हमने पोलिस के ऐत्माद वा खुशनुदी के लिये हजरत सिर्री सकती के खिलाफ झूठी गवाही दी है काजी साहब ने पोलिस के अहेलकारों और कोतवाल शहर को मुआत्तल कर दिया और उन दोनों झूठे गवाहों को जिन्दान मे भेज दिया और हजरत सिर्री सकती को बा इज्जत बरी कर दिया सिर्री सकती के मुरीद ने उनसे मुआफी मांगी और अर्ज की हजरत मैंने आपके साथ जियादती की और ना फरमानी का मूर्तकिब हुआ आप मुझे मुआफ़ फरमा दें हजरत ने जवाब दिया तुमने मेरे साथ कौनसा जुल्म किया है जो मैं तुम्हे मुआफ़ करता फिरू तुमने जिस बात से इंकार किया था अल्लाह ताला ने तुम्हारे जीते जागते इस हकीकत को तुम्हारे सामने साबित कर दिया कि हजरत फतेह मूसली सिर्फ सुक्र वा जजब मे ही नहीं रहते बल्कि सहू वा सुलूक मे भी होते हैँ यूँ इतनी दूर से मुझे कतल होने से बचाने के लिये आना उनका सहू वा सुलूक मे होना साबित हो गया इस तरह ये भी साबित हो गया कि हजरत मौसूफ अपने अजीजो दोस्तों और असनाओं से कभी गाफिल नहीं रहते थे जब भी उनके दोस्तों अजीजों पर कोई कठिन वक़्त पड़ा वोह इमदाद बन कर सामने आये मुरीद भी अपने मुर्शिद की बात और ख्याल पर मुत्तफिक हो गया और हजरत फतेह मूसली की बुजुर्गी का कायल हो गया,
बरी होने के बाद हजरत सिर्री सकती अपने मुरीद को लेकर हजरत फतेह मूसली की खिदमत मे हाजिर हुऐ हजरत फतेह मूसली उस वक़्त शदीद सिक्र वा जजब की कैफियत मे थे काफी देर के बाद उन्होंने हजरत सकती से पूछा आप कौन हैँ और किस लिये आये हैँ?
आपने अर्ज की हजरत मैं वक़्त का सूफी सिर्री सकती हूँ कमाल है आपने मुझे पहचाना नहीं और अभी थोड़ी देर पहले आप मुझे जल्लाद की तलवार से रिहा करवाकर लाये हैँ हजरत मूसली मुस्कुराये और फरमाया भाई मैं तुम्हे किस तरह तलवार से आज़ाद करवा सकता था कियोकि मैं तो अपने हुजरे से बाहर निकला ही नहीं फिर तुम्हारी मदद मैंने कियों कर की हजरत सिर्री सकती अपनी बात पर डटे रहे जबकि हजरत मूसली बार बार ये कहते रहे कि वोह मैं ना था अलबत्ता इतना जरूर है कि उसकी शकल मेरे साथ मिलती होगी मगर सिर्री सकती अपनी बात पर अड़े रहे और अर्ज की हजरत आप पर जजब वा सिक्र और सहू वा सुलूक की कैफियत तारी रहती है इस वक़्त आप पर जजब वा सिक्र तारी है जबकि मुक्तिल मे आप पर सहू वा सलूक की कैफियत थी हजरत फतेह मूसली ने जब ये बात सुनी तो मुस्कुरादीये हजरत सिर्री सकती का मुरीद हजरत मूसली की बुजुर्गी फहेम वा अदराक और विलायत मे बुलंद मुकाम का ता दिल से कायल हो गया और हजरत सिर्री सकती का यही मक़सूद का मतलूब था,
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Thanks for reading: सच्चाई की जीत फतेह मूसली Sachai Ki Jeet Sufi Poem, Sorry, my Hindi is bad:)