इश्के इलाही का असर Ishke Ilahi Ka Asar Poem Hindi
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हजरत अबु बकर शिबली ने एक मर्तबा मजलिश मे कई बार अल्लाह अल्लाह कहा लेकिन उसी मजलिश मे एक देर्वेश ने ऐतराज किया कि आप ला इलाहा इल्लल्लाह कियों नहीं कहते, आपने एक जर्ब लगा कर फरमाया कि मुझे ये खतरा रहता है कि मैं ला कहुँ(यानि नफी करदूं) और (सायद) मेरी रूह निकल जाये आपके इस कौल से वोह देर्वेश लर्जा बर अनदाम हो गया और उसी वक़्त उसका दम निकल गया और जब उसके ऐजा आपको कातिल कह कर दरबारे खिलाफत मे ले गये तो आपके ऊपर वजदानी कैफियत तारी थी और दरबार मे हाजरी के बाद जब आपसे सफाई पेश करने के लिये कहा गया तो आपने फरमाया कि इस देर्वेश की जान तो इश्के इलाही से ख़ारिज होकर पहले ही बकाये जलाल बारी मे फना होने वाली थी और इसकी रूह अलाइके दुनिया से राबित खतम कर चुकि थी इस लिये इसको मेरे कौल की समाअत की ताकत ना रही और बरके मुशाहदा जमाल की चमक से इसकी रूह मुर्गे बिस्मिल की तरह परवाज कर गई लेहाजा इसमे मेरा कोई कसूर नहीं ये बयान सुनकर खलीफा ने हुकुम दिया कि आपको बाहर ले जाओ कियोकि अगर कुछ देर मैं भी इनकी गुफ्तगू सुन लूंगा तो मैं भी बेहोश हो जाऊंगा,
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हजरत शैख अबु बकर शिब्ली के मुरीद आपकी खानकाह मे हाजिर रहते आप उनसे मुख्तलिफ़ तरीकों से नफ़्स कशी कराते एक मर्तबा आपकी खानकाह मे चालिस मुरीद मौजूद थे आप उनके दरमियान तशरीफ़ लाये और फरमाया दोस्तों हक ताला अपने बन्दों के रिज्क का खुद कफील है और फरमाता है, तर्जुमा अल क़ुरआन(जो परहेज गारी के साथ अल्लाह की तरफ रुजु करे वोह उसके लिये गुजर बसर के जरिये खोलता और वहाँ से रिज्क देता है जहाँ से मिलने का उसे ख्याल भी ना था और जो अल्लाह पर भरोसा करे तो वही उसके लिये काफी है) आपका इरशाद सुनकर सब मुरीदों ने त्वक्कल इख़्तियार कर लिया और निहायत इखलास के साथ इबादत मे मशगूल हो गये इस तरह उनको तीन दिन गुजर गये और खाने को कुछ ना मिला तीसरे दिन शैख शिबली फिर उनके पास तशरीफ़ ले गये और फरमाया दोस्तों हक ताला ने सबब को बन्दों के लिये जायज करार दिया है और फरमाया है, अल क़ुरआन( वही अल्लाह है जिसने जमीन को तुम्हारे सामने अजिज वा जलील बना दिया पस उसके रास्तों मे चलो और उसके रिज्क को खाओ)
इसलिये अब मुनासिब है कि तुम मेसे एक सबसे जियादा नेक नियत शख्स इस गोशा उजलत से निकले और रिज्क तलाश करे ताकि उसे खाकर तुम कुछ कुव्वत हासिल करो आपकी हिदायत सुनकर सबने एक शख्स को मुन्तखब किया और उसे तलाशे मुआश के लिये रवाना किया वोह बगदाग के सारे मोहल्लों मे घुमा मगर कुछ हाथ ना आया पहले ही तीन दिन का भूखा था इस दौड़ धूप से और निढाल हो गया और टांगे चलने फिरने से जवाब दे गई करीब ही एक नसरानी तबीब का मतब नजर आया मजबूर होकर उसमे जाकर बैठ गया वहाँ बहुत से मरीज जमा थे और हकीम साहब उनको बारी बारी देख कर दवा तजवीज करते जाते थे जब भीड़ कम हुई तो हकीम साहब की नजर उस खस्ता हाल डरवेश पर पड़ी उसको अपने पास बुलाकर नरमी से पूछा तुम्हे किया शिकायत है? दर्वेश शैख शिब्ली की सोहबत मे रह कर मांगने की आदत तर्क कर चुका था ये तो ना कह सका कि रोटी की तलाश मे हूँ बे इख़्तियारी मे अपना हाथ तबीब के हाथ मे दे दिया उसने नब्ज देखी और समझ गया कि यह बेचारा भूक का मरीज है उस्से कहा जरा सब्र करो तुम्हारी बीमारी का इलाज अभी हो जाता है फिर उसने अपने मुलाजिम को बुलाकर हिदायत की कि बाजार जाकर एक रतिल रोटी एक रतिल हलवा और एक रतिल भुना हुआ गोश्त लाओ जब मुलाजिम सारी चीजें ले आया तो तबीब ने उन्हें दर्वेश के सामने रख दिया और कहा कि तुम्हारे मर्ज का यही इलाज है दर्वेश ने कहा आपकी तशखीस तो बिल्कुल सहीं है लेकिन मैं तन्हा इस मर्ज मे मुबतिला नहीं हूँ हम ऐसे चालिस मरीज हैँ,
फ्राख हौसला तबीब ने फ़ौरन मुलाजिम को भेज कर ये तमाम चीजें चालिस चालिस रतिल की मिकदार मे मगाई और उन सब को एक खुवान मे लगा कर एक मजदूर के सर पर लदाये और कहा कि ये शख्स जहाँ ले जाये उन चीजों को साथ ले जाकर पहुंचा दे चुनानचे वोह दर्वेश अल्लाह ताला की तहमीद करता हुआ उन नियामतों को लिये हुऐ अपने साथियों के पास खानकाह मे पहुंचा जहाँ वोह सब शैख शिबली के हमराह जिकरे इलाही मे मशरूफ थे शैख ने ये खुवाने नियामत देखा तो फरमाया इस खाने का अजीब भेद है फिर उस मुरीद से सारा वाक़्या सुना और फरमाया दोस्तों किया तुम्हे ये पसंद है कि एक नसरानी का खाना खाओ और उसका कुछ मुआवजा अदा ना करो सब ने अर्ज किया कि अये शैख इसका मुआवजा किया है फरमाया इसके हक मे दुआये खैर करो उसी वक़्त सबने दुआ के लिये हाथ उठा दिये और निहायत खुशू वा खुजू के साथ उस नसरानी तबीब के लिये हिदायत और खैरो बरकत की दुआ करने लगे हुस्ने इत्तेफाक देखिए कि वोह नसरानी तबीब भी भूखे उन चालिस मरीजों को देखने के लिये उस दर्वेश के पीछे चला आया था उन लोगों का त्वक्कल देखा तो बेहद मुताषिर हुआ और जब उन्होंने उसके हक मे सच्चे दिल के साथ दुआये खैर करना शुरू की तो वोह बेताब हो गया और फैरन खानकाह के दरवाजे पर जाकर दस्तक देने लगा जब दरवाजा खुला तो दौड़ कर शैख शिब्ली के क़दमों पर जा गिरा और मुशर्रफ बा सलाम होकर आपके हल्का इरादत मे शामिल हो गया इस तरह उसको अपनी नेकी का मुआवजा हिदायत की सूरत मे मिल गया,
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Thanks for reading: इश्के इलाही का असर Ishke Ilahi Ka Asar Poem Hindi, Sorry, my Hindi is bad:)