मुकामे अबु हनीफा Mukame Abu Hanifa
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हजरत अली हेजवरी का कहना है कि एक रोज मैं इलाका शाम मे सफर कर रहा था हजरत बिलाल रजि अल्लाहू ताला अन्हा के रोजे मुबारक पर पहुंचा जब मेरी आँख लग गई तो मैंने अपने आपको मक्का मुअज्जमा मे देखा इतने मे सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम बनी शेबा के दरवाजे पर तशरीफ़ फरमा हुऐ उस वक़्त आप एक सन रसीदा शख्स को इस तरह बगल मे लिये हुऐ थे जैसे कोई किसी बच्चे को लिये होता है मैं फरते मोहब्बत से बेक़रार होकर आपकी तरफ दौड़ा और आपके पाये मुबारक को बोसा दिया मैं बड़ा हैरान था कि ये बूढ़ा शख्स कौन है कि हुजूर (सा) ने कुव्वते बातनी से मेरे इस इस्तेजाब का हाल मालूम कर लिया और मुझे मुख़ातिब करके फरमाया कि ये तुम्हारे इमाम हैँ, इमाम अबु हनीफा. (रह)इससे मुझे ये बात मालूम हुई कि हजरत इमाम अबु हनीफा का शुमार उन लोगों मे है जिन के औसाफ सरह के कायम रहने वाले एहकाम की तरह कायम वा दायम हैँ यही वजा है कि हुजूर उनसे इस कदर मोहब्बत फरमाते हैँ और हुजूर को जो उनसे राबित वा मोहब्बत है इससे ये नतीजा निकलता है कि जिस तरह आपसे खता मुमकिन नहीं उसी तरह हजरत इमाम अबु हनीफा से भी खता का सदूर नहीं हो सकता ये एक नुकता लतीफ है जिसे सिर्फ वही लोग समझ सकते हैँ जो अल्लाह ताला से ताल्लुक रखते हैँ,
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Thanks for reading: मुकामे अबु हनीफा Mukame Abu Hanifa , Sorry, my Hindi is bad:)