यह वह दर है जहां अन्धे को आंख मिलती है दास्ताने बीबी जोहरा
बयान किया जाता है कि शुरू के उन्हीं दिनों में खानदाने सादात से ताअल्लुक (सम्बन्ध) रखने वाले दो बुजुर्ग सैय्यद रुकमुद्दीन व सैय्यद जमालुद्दीन अपना वतन छोड़ कर कस्बा रुदौली जिला बाराबंकी में सुकूनत अख्तियार कर लिया था। सैय्यद रूकमुद्दीन के दो साहब जादे थे और सैय्यद जमालुद्दीन साहब के यहां केवल एक लड़की थी जिसकी उम्र 12 साल हो चुकी थी। उसका नाम जोहरा था। वह बे पनाह खूबसूरत थी लेकिन नाबीना थी। उसे खुद भी अन्धी होने का गम सताता रहता और घर वालों को भी बड़ा रन्जो मालाल रहता खुदा का दिया हुआ घर में बहुत कुछ था दुनियाबी आरामों आशाईस में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी। जोहरा एक होनहार लड़की थी घर के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे। मुहब्बत व शफकत से पेश आते थे। उसकी छोटी से छोटी तकलीफ भी किसी को गवारा न थी। हमेशा उसका नाज उठाने के लिए तैयार रहते लेकिन जब वाल्दैन और खानदान के लोगों को उसकी माजूरी और मजबूरी का एहसास होता तो सारे ऐश आराम वे माना होकर रह जाते दिल तड़प उठता। दुनिया के तरीके इलाज से जोहरा को बीनाई मिलनी मुमकिन न थी। सिर्फ अल्लाह की बारगाह से उम्मीद वारसता थी। हुस्ने इत्तेफाक कि उन्हीं दिनों कुछ जायरीन आस्ताने गाजी अलैहिर्रहमा पे हाजिरी देकर खुशी खुशी लौट रहे थे कि उन लोगों ने जोहरा के वाल्दैन और घर वालों से हजरत गाजी अलैहिर्रहमा की रूहानियत फयूजो बरकात वा करामात के तजकिरे बड़े ही वालिहाना अन्दाज में किये। जिससे उनके दिलों में हजरत गाजी अलैहिर्रहमा की अकीदत व मुहब्बत बैठ गई। और उन्होंने दिल ही दिल में यह नियत कर ली कि हजरत गाजी अलैहिर्रहम करम फरमा दें। और दुआ कर दें कि अल्लाह तआला हमारी बच्ची को बीनाई अता कर दें तो हम भी उनके आस्ताने पर हाज़िर होकर नजर पेश करेंगे और उनके रौजे की तामीर कराएंगे। घर के अन्दर सुबह शाम हजरत गाजी अलैहिर्रहमां का तजकिरा चलता। बीबी जोहरा भी सुनतीं और दिल ही दिल में खुश होतीं उसने भी मन्नत मानी और नीयत करली कि अगर हजरत गाजी अलैहिर्रहमां का का करम हो जाए और मैं आंखो से देखने लगूं तो अपनी तमााम उम्र हजरत गाजी के आस्ताने पर झाडू बहारू करके उम्र गुजार लूंगी इसी उम्मीद पर बीबी जोहरा को हजरत गाजी अलैहिर्रहमां से गायबाना अकीदत और सच्ची मोहब्बत पैदा हो गई। धीरे-धीरे इस मोहब्बत ने इश्के कामिल का रंग अख्तियार कर लिया। अब बीबी जोहरा रात दिन ख्याले महबूब और यादे जाना में महू रहती और यार के दीदार की हसरत लिए गोशए तन्हाई में बैठी रहतीं अपने यूसुफ की चाह मे जुलेखा की तरह रोती थीं ।
दिल ढूंढता है वही फुरसत के रात दिन बैठी रहूं तसव्वुरे जानां किए हुए।
आखिर एक दिन तसव्वुरे जानां किए हुए तन्हाई में बैठी थीं कि उन्हें ऐसा लगा कि हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी सामने खड़े हैं और कह रहे हैं कि जोहरा देखती क्यों नहीं।
गाजी की आवाज उनके कानों में गूंज उठी लेकिन आंखों में रौशनी कहां कि वह गाजी के चेहरा अनवर को देख सके बेचैन हो गई आंखों से आंसू गिरने लगे खुदा से इलतिजा करने लगी कि ऐ मेरे खालिक व मालिक तू रहीम और करीम है अगर मैं मुहब्बते गाजी में सच्ची हूं तो तू मुझे मेरी आंखों में रौशनी अता फरमा दे ताकि मैं गाजी का दीदार कर सकुं वरना मुझे मौत देदे। दीदारे यार से महरूमी का गम अब सहा नहीं जाता इतना कहते ही उनकी आंखों में रौशनी आ गई।
(इश्क सच्चा हो तो फिर अरमान क्यों न पूरा हो) आंख उठाया तो देखा कि वाकई हजरत सैय्यद सालार गाजी अलैहिर्रहमां तमाम तर रानाइयों के साथ खड़े हैं और उनका चेहरा आफताब व महताब की तरह रौशन है।
काम आखिर जज़्बए अख्तियार आ ही गया) (
दिल कुछ इस सूरत से तड़पा, उनको प्यार आ ही गया। बीबी जोहरा उनकी तरफ तेजी से आगे बढ़ीं मगर फौरन ही हजरत गाजी का जलवए ज़ेबा नज़रों से ओझल हो गया सारा सुकून व करार जाता रहा। मुहब्बत की आग और भड़क उठी आंखों को रौशनी मिलने के बाद भी निगाहों में कैफ समा छा गया जारो कतार रोने लगीं जबानें हाल से कहने लगीं
क्यों रूख को छुपा बैठे, करके मुझे दीवाना । बीबी जोहरा को बीनाई मिलने के बाद घर के सारे लोग बहुत खुश हुए एक बड़ी फिक्र और गम से निजात मिल गई। लेकिन बीबी जोहरा के दिल पे गम की घटा छा गई। हजरत गाजी का जलवए ज़ेबा देखने के बाद उनके दिल पर एक हंगामा बपा हो चुका था। लज्जते नज़ारा याद करके और तड़प जाती एक रात आपके ख्यालों में गुम थीं और आंख लग गई ख्वाब में हजरत गाजी तशरीफ लाए और कह रहे हैं जोहरा अगर तुम मेरी मुहब्बत में सच्ची हो तो बहराइच आ जाओ ख्वाब से बेदार हुई तो बहराइच पहुंचने के लिए बेकरार हो गईं माता पिता से अपना ख्वाब बयान किया रौजे की तामीर और मन्नत याद दिलाई बहराइच जाने की इजाजत मांगी। इजाजत मिल गई। सैय्यद जमाल उद्दीन ने खुशी खुशी पूरे इंतिजाम के साथ बीबी जोहरा को अपने भाई के लड़के और उनके मामू के साथ बहराइच भेज दिया।
बीबी जोहरा बढ़ी अकीदतो अहतराम के साथ गाजी अलैहिर्रहमां के आस्ताने पर हाजिर हुई मजारे पाक का बोसा लिया अकीदत व मुहब्बत के हार व फूल पेश किए। साहबे आस्ताना ने भी उनकी हाजरी को कुबूल फरमाकर अपने फैजान से मालामाल कर दिया जियारत के बाद बीबी जोहरा ने अपनी मन्नत पूरी करने की गरज से तामीरात का काम शुरू किया पहले हजरत गाजी का रौजा तामीर कराया उसके बाद हजरत सैफउद्दीन सुरखुरू सालार का मकबरा और फिर मकबरए गंजे शहीदा तामीर कराया। हजरत गाजी की मजार शरीफ के करीब में पश्चिम जानिब एक मकबरा बनवाकर वसीयत की कि मेरी आखरी आराम गाह यही है मेरे मरने के बाद मुझे इसी में दफन किया जाए। बीबी जोहरा ने अपनी जिन्दगी के दिन पूरे करने के बाद 18 साल की उम्र में 14 रजब बरोज इतवार हिन्दी तारीख के हिसाब से जेठ की पहली तारीख को इस दुनिया से रेहलत फरमाया और वसीयत के मुताबिक अपने बनाए हुए मकबरे के अन्दर दफन की गई। हजरत गाजी अलैहिर्रहमां की जात से सच्ची मुहब्बत और गहरी वाबस्तगी का ही नतीजा है कि जिस तारीख दिन और महीने में आपकी शहादत हुई उसी तारीख दिन और मीहीनें में बीबी जोहरा ने भी विसाल (इन्तेकाल) फरमाया। आपके चचा जात भाई और मामू ने भी दरे गाजी पे मरना पसन्द किया। आपकी मजार के पश्चिम जानिब दफन किए गए।
बड़े बड़े सुलतानों बादशाहों ने दरे गाजी पे हाजरी के दौरान यह तमन्ना और ख्वाहिश जाहिर की कि पुराने गुम्बद को तोड़कर नया और बड़ा गुम्बद आपके शायाने शान तामीर कर दिया जाए मगर जिसने भी ऐसी नियत की उसे खुवाब मे आगाह कर दिया गया कि खबर दार मेरे लिये मेरी जहरा का बनवाया हुआ मकबरा ही काफ़ी है उन्हें बातनी इशारे से रोक दिया क्योंकि इसे बीबी जोहरा ने तामीर कराया था। हजरत गाजी अलैहिर्रहमां को बीबी जोहरा का बनवाया गया गुम्बद महबूब है। दौलत का सहारा लेकर आलीशान इमारत तो बनवाई जा सकती है लेकिन बीबी जोहरा की मुहब्बत और खूलूस का जवाब मुमकिन नहीं।
सरकार गाजी की बारगाह मे शादी की रसम
हज़रत बीबी जहरा की वफात के बाद उनके वाल्देन अजीज वकारिब के साथ हर साल रदौली से बहराइच फातिहा पढ़ने के लिये जाते थे और गलबा शौख मे कहते थे कि हम बीबी जहरा की शादी के लिये जा रहे हैँ हजरत जहरा के माता पिता इन्तेहाई शान वा शौकत के साथ मुकर्ररा वक़्त पर हजरत सालार मसूद और जहरा के नाम की बारात सजा कर महफिले उरुसी रचा कर इस रसम को अदा करते रहे चुकी माँ बाप अपनी बेटी को मोहब्बत मे बेखुद हो गये थे इस लिये ये तरीका निकला था जो 430 हिजरी से अबतक जारी है और इंशाअल्लाह कयामत तक जारी रहेगा मिराते मसूदी के मुनस्सिफ हजरत सुफी अब्दुर्रहमान चिस्ती तहरीर फरमाते हैँ कि मेरे इतिकाद मे ये शादी महज खुवाज मजकुरा का नतीजा है जो सालार मसूद गाजी ने अपनी ज़िन्दगी मे देखा था कि उनके वाल्देन अकद करने के लिये बुला रहे हैँ यकीन कामिल है कि शहीदों की शादियाँ तो हूरों के साथ बहिस्त मे होती हैँ बारात लाने वालों का बयान है कि हम लोग हजारों रुपया खर्च करके इस रसम को अदा करते हैँ और इसके बदले मे बरगाहे गाजी से जो कुछ मांगते हैँ उससे सवा मिलता है
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Thanks for reading: यह वोह दर है जहां अन्धे को आंख मिलती है दास्ताने बीबी जोहरा, Sorry, my Hindi is bad:)