धुंधगढ़ के किले में घिरे हुए दोस्त मोहम्मद की मदद

धुंधगढ़ के किले में घिरे हुए दोस्त मोहम्मद की मदद Dhundh Gadh Kila jung Hazrat Sayyad Salar Masud Gazi hindi Stories
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 धुंधगढ़ के किले में घिरे हुए दोस्त मोहम्मद की मदद

Hazrat gazi miya
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एक दिन सतरिख में मुजफफर खां नायब अजमेर के भेजे हुए एलची मियां अब्दुल्लाह इस बात की प्रार्थना लेकर पहुंचे कि रांय दीन दयालजयपाल और अजमेर के आस पास के अनेक राजाओं ने उपद्रव मचा रखा है और सरकशी कर रहे हैं। सेनापति दोस्त मोहम्मद को धुंधगढ़ के किले में घेर रखा है। चारों तरफ मुकाबले के लिए सेनाएँ जमा हो रही है इसलिए आपसे विनती है कि मदद फरमाई जाये।


हजरत सैयद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां पीड़ित लोगों की सहायता के लिए सदैव तैयार रहते थे और किसी प्रकार की जुल्म व ज्यादती को ब्रदाश्त न करते थे। भारत में आपके आने का उददेश्य भी यही था कि जहां भी इन्सानियत पर जुलम व ज्यादती हो रही है उससे उनको निजात दिलाई जाये दीने इस्लाम जो अमन व शान्ति का मजहब है जो न बराबरी और भेदभाव को मिटाकर सबको बराबरी का हक देता है उस दीने रहमत की शिक्षाओं का खूब प्रचार प्रसार किया जाए।


इसलिए ज्योंहि अपने मजलूम भाई मुजफफर खां व दोस्त मोहम्मद पर आक्रमणों की खबर मिली आपने फौरन मुजाहिद साथियों की एक मीटिंग बुलाई और सुलह मश्विरा किया। जिसमें हजरत सैयद इब्राहीम बारह हजारी और अपके दूसरे रिशते दारों के साथ साथ मीर हाशिम व नजमुल मलिक व आयना उल मलिक मियां रजब सालार वगैरह शरीक हुए। आपस में सलह व मश्विरह के बाद यह तय हुआ कि सैयद इब्राहीम जो अजमेर के इलाके से अच्छी तरह परिचित हैं अपनी कमान में एक फौजी टुकडी लेकर वहां जल्द पहुंचे और उन तमाम सरकश राजाओं को उनके किए की सजा दें। सैयद इब्राहीम बारह हजारी बारह हजार की सुसज्जित फौज की टुकड़ी के साथ सैयद बदीउददीन सैयद महमूद अहमद व सैयद हमीद को साथ लेकर अजमेर



व धुंधकण के राजाओं की सरकूबी (दमन) के लिए रवाना हुऐ यह इस्लामिक लश्कर बडी तेजी के साथ अपना रास्ता तय कर रहा था कि रास्ते में हलविया सना के स्थान पर बड़ी चालाकी और होशियारी से शत्रु की बीस हजार सेना ने इस्लामी लश्कर को घेरे में ले लिया। शत्रुओं ने यह सोचा कि धंघगढ़ के किले तक पहुंचने से पहले ही रास्ते ही में इस्लामी लश्कर की कमर तोड़ दी जाए ताकि यह अजमेर पहुंचने की हिम्मत न कर सकें लेकिन उन्हें क्या मालूम कि गाजियाने इस्लाम है जो अपना सर हथेली पर रखकर जिहाद के लिए निकलते हैं और मौत को जिन्दगी पर तरजीह देते हैं उन्हें बड़ा से बड़ा लश्कर और बड़ी से बड़ी शक्ति उन्हें अपने मकसद से रोक नहीं सकती किसी कवि ने ठीक कहा है।


काफिर है तो शमसीर पर करता है भरोसा

गोमिन है तो ये तेग भी लड़ता है लड़ाई


 हजरत सैयद इब्राहीम और शेर दिल मुजाहिददीन शत्रुओं के उस भारी टिडडी दल लश्कर को खातिर में न लाते हुए जम कर मुकाबला किया और इस जोर से हमला किया कि शत्रु की फौज मैदान से भाग खड़ी हुई। बहुत से लोग मारे गये और कुछ लोग पैदान छोड़ कर भाग निकले इस्लामी सेना के भी कुछ लोग शहीद हुए और कुछ लोग जख्मी हुए। शहीद होने वालों में मियां दजीजुददीन भी थे। उनको जलेसर में दफन किया गया।


सैयद इब्राहीन बारह हजारी ने जलेसर से अमीर बाजैद जाफर जो देहली में ठहरे हुए थे उनसे फौजी मदद का मुतालबा करते हुए एक खत लिखा अमीर मौसूफ ने खत पाते ही फौरन दो हजार जांबाज मुसल्लह सवारों का दस्ता आपकी सेवा में भेज दिया अभी आप जलेसर में हुछ आगे ही बढ़े थे कि अमीर बाजेद की भेजी हुई कमक आपसे आ मिली मुसलमानों के हौसले बढ़ गये। लश्करे इस्लाम तेजी से आगे बढ़ता हुआ धुंधगढ़ के करीब जा पहुंचा और एक मुनासिब मुकाम पर पड़ाव डाला।


सैयद इब्राहीम बारह हजारी ने नायब ए अजमेर मुजफफर खां को अपनी और लश्करे इस्लाम की पहुंचने की सूचना दी और लश्कर चूंकि सफर की मुसीबतों को झेलने की वजह से थका हारा था इसलिए उसे रात भर आराम करने का मौका दिया और खुद एक गोशे में बैठकर रात भर इबादतें इलाही में मश्गूल रहे। सुबह को नमाजे फजिर अदा करने के बाद लश्करे इस्लाम को तरतीब देकर दुश्मन के मुकाबबले में उतारा शत्रुओं की दो लाख फौज किले को चारों ओर से घेरे हुए थी। लश्करे इस्लाम ने एक जोरदार हमला किया शाम तक घमासान की जंग होती रही घोड़ों की टापों और बहादुरों की हा & हू ने कयामत का माहौल पैदा कर रखा था तलवारों की टक्कर जख्मियों की चीख पुकार से पूरा मैदान गूंज रहा था। सर घर की बाजी लग रही थी मुजाहिदाने इस्लाम ने अपनी ईमानी ताकत और फौलादी बाजुओं से दुश्मन के टिड्डे दल लश्कर के होश व हवास गुम कर दिए थे तलवार की काट ऐसी थी कि जो जद में आया वह दो टुकड़े हो गया पूरा मैदान दुश्मनों की लाश से भर गया। दीनदयाल और अजयपाल ने जब अपने लश्कर को गाजर मूली की तरह कटते हुए देखा तो उनकी हिम्मत जवाब दे गयी और वह सब मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए। उन्हें बुरी तरह हार का मुंह देखना पढ़ा और लस्कर-ए-इस्लाम को अज़ीम फतह नसीब हुई। सैय्यद इब्राहीन बारह हज़ारी बड़ी शान के साथ किले में दाखिल हुए और शेख दोस्त मोहम्मद जो घिरे हुए थे उनसे मुलाकात की। उनके तमाम मुलाज़मीन को तसल्ली दी और अपने रब की बारगाह में दो रकात नमाज़ शुकराना अदा की। एक हफ्ते तक किले में क्याम फरमाया, दीन दयाल जो बुरी तरह हार कर भागा था। चैन से नहीं बैठा फिर एक ताज़ा दम लश्कर लेकर मैदान में आ डटा। सैय्यद इब्राहीम भी किले से बाहर निकलकर पूरब की ओर मैदान में एक ऐसे तालाब के किनारे जो दोनो फौजों के बीच में था फौजें अपनी सजाई दोनो फौजों में बड़ी जोरदार जंग हुई मैदान में लाशें बिछी पड़ी थीं। इस खूनी जंग में दो हज़ार मुसलमान शहीद हुए और दुश्मनों के दस हज़ार आदमी मारे गए और शेष ने भाग कर तेजपाल के साथ दीन दयाल के किले में जा घुसे और किले के बुर्जों पर तोपें लगा कर युद्ध करने लगे इधर सैय्यद इब्राहीम भी अपने सैनिकों को समेट कर किले को घेरे में ले लिया ।


किले में रसद का सामान बिल्कुल नहीं था और बाहर से भी रसद पहुंचने की कोई सूरत नहीं थी तीन दिन तक सख्त घेरा रहा जिससे शत्रु तंग आ चुके थे मजबूरन चौथे दिन सुबह को तेजपाल बीस हज़ार फौज के साथ किले से निकल कर मुकाबले के लिए आ डटा। यह मुकाबला पहली जंगों की अपेक्षा इतना सा था कि मुसलमानों के अपने सर धड़ की बाज़ी लगानी पड़ी। सुबह से दोपहर तक दस हज़ार मुसलमान शहीद हो चुके थे लेकिन दुश्मनों को भी भारी कीमत चुकानी पड़ी कि उनके अकसर फौजी मौत के घाट उतार दिए गए केवल तेजपाल और चन्द हजार फौजी अपनी जान बचा कर भागने में सफल हुए। मुसलमान शोहदा में सैय्यद महमूद बदीउददीन और उनके कुछ साथी भी शामिल थे। जो जहां शहीद हुआ था उसे वहीं दफन भी कर दिया गया किले के चारों तरफ की ज़मीन गंजे शहीदों बन गयी। गाज़ियान-ए- इस्लाम ने किले की इंट से ईंट बजा दी और दुनिया से उनका नाम-व- निशान तक मिटा डाला गाजियान -ए- इस्लाम ने किले के पश्चिमी दिशा पर तालाब के किनारे डेरा डाला। तालाब का नाम मीर सरोवर रखा और उसके ऊपर एक दमदमा बनाकर हज़रत सैय्यद इब्राहीम की इबादत के लिए एक खेमा नसब किया गया आप जब उस दमदमे में दाखिल हुए तो बहुत खुश हुए और फरमाया इससे मुझे मुहब्बत की खुशबू महसूस हो रही है तबीयत को इतमिनान व सुकून मिल रहा है आज मैं बडे इतमिनान के साथ अपने मालिक की इबादत में मशरूफ रहूंगा। कोई हमारे डेरे के अन्दर आने की हिम्मत न करे फौज के सारे लोग आराम करें। दिन के थके हारे मुजाहिदीन आराम करने लगे ऐसी गहरी नींद सोए की दुनिया की सुध न रही और उधर सैय्यद इब्राहीम अपने खुदा की इबादत में मशगूल हो गए। किसी को क्या खबर कि दुश्मन घात में है राय तेजपाल जो लोमड़ी की चाल चलना खूब जानता था रात के समय एक हजार फौज के साथ सोए हुए निहत्थे मुजाहिदीन पर अचानक हमला कर दिया। तेजपाल का भाई करनपाल दबे पांव हज़रत के इबादत खाने में दाखिल हुआ आप इबादते इलाही में मशगूल थे। सजदे की हालत में आप पर तलवार का धार करके शहीद कर दिया और मौका पाकर आप के बिरादरे हकीकी सैयाद इस्माईल को भी शहीद कर दिया यह हादसा सत्तरह सव्यालुल मुकर्रम 420 हिजरी को पेश आया ।


सैय्यद इब्राहीम और सैय्यद इस्माईल अलैहिर्रहमां की


शहादत से ईस्लामी फौज में एक शोर और कोहराम बरपा हो गया गम


व गुस्से से सभी भर गये। तूफानी जोश-व- खराश के साथ मुसल्लह


होकर ये तहाशा बिफरे हुए शेर की तरह काफिरों को काटना शुरू कर


दिया। करनपाल जो हज़रत का कातिल था उसे भी मौत के घाट उतार


दिया। तेजपाल जान बचा कर भाग निकला इधर भी चन्द सवार और


मियां अलाउददीन शहीद हो गए।


हज़रत के खाला जाद भाई हज़रत हमीद-उददीन और नाना शेख दोस्त मो० और इस्लामी फौज के बाकी माँदा सवारों ने शोहदा की तजहीज़-तकफीन यानी आखरी रस्म अदा करने के बाद तेजपाल का सुराग लगाते हुए तुज़्ज़ारा पहुंचे जहां तेजपाल और उसके साथी छुपे हुए थे मुसलमानों ने मौजा तुज़्ज़ारा को घेरे में ले लिया। मौजा वाले अन्जाम से बे खबर हो कर तेजपाल की हिमायत में मुसलमानों से युद्ध करने लगे मगर जज़्बे शहादत से सरशार मौत को ज़िन्दगी पर तरजीह देने वाले मुसलमानों के सामने बातिल परस्त कब तक टिकते बोड़ी ही देर में मुकाबले के बाद मौजे के लोग जेर हो गये और तेजपाल मुसलमानों के हाथों गिरफ्तार हुआ। इस लड़ाई में चार मुसलमान सवार शहीद हुऐ ।


सैय्यद हमीदउददीन के हुलकूम (गला) मुबारक पर एक तीर लगा जिससे गहरा जख्म आया। गाज़ियाने इस्लाम और शेख मोहम्मद सैय्यद हमीदउददीन को ज़ख्मी हालत में लेकर तेजपाल को भी साथ लेकर रवाना हुए । सैय्यद हमीद उददीन जख्म की ताब न ला सके रास्ते में ही इन्तिकाल हो गया। वही कोट कासिम में आप को दपन किया गया फिर यह लश्कर-ए-इस्लाम शोगवार हालत में राय तेजपाल को लेकर हज़त सैय्यद इब्राहीम बारह हज़ारी रह० के आस्ताने पर हाज़िर हुआ। यहां शेख दोस्त मोहम्मद ने तेजपाल को सख्त से सख्त सजाएँ देकर उसे उसकी सरकशी का मजा चखाना चाहा मगर उसने उसी वक़्त इस्लाम कुबूल कर लिया तो आपने आईने इस्लाम के पेशे नज़र उसके तमाम जुर्मों को माफ कर दिया, और उसका इस्लामी नाम जलाल खा खानाजाद रखा इस्लाम कुबूल कर लेने के बाद जलाल खां ने निकाह किया और पूरी जिन्दगी उस ज़िले की जमीदारी पर कायम रहे। कहा जाता है कि रेवाड़ी के अकसर मेवाती जलाल खां की औलाद में हैं। शेख दोस्त मोहम्मद अपनी अहिलिया (पानी) अपनी एक बेटी और सैय्यद इब्राहीम बारह हज़ारी रहमा तुल्लाह की वालिदा मोहतरमा के साथ सैय्यद इब्राहीम रहमा तुल्लाह अलैह के मज़ारे अक्दस पर सुकूनत अखतियार की और यहां के हालात शुरू से आखिर तक लिख कर हजरत सैय्यद सालार मसूद गाजी अलैहिर्रहमां के पास सतरिख भेजा। यह खत हज़रत गाजी अलैहिर्रहमां के पास उस वक्त पहुंचा जब आप इबादते इलाही में मसरूफ थे उसी हालत में दिले गिरफ्तार होकर जारो कतार रो रहे थे तमाम सरदार और खादिमान आपकी यह हालत देखकर हैरान व परेशान हो गये। तश्वीश में पड़ गये कि इलाही यह क्या मामला है ज्योंहि आप की नज़र खत के लिफाफे पर पड़ी अपने जांनिसारों से मुखातिब हो कर फरमाया इस मकतूब में खैर नहीं मालूम होती, क्योंकि मैनेख्वाब देखा है कि सैय्यद इब्राहीम रहमा तुल्लाह अलैह एक तख्त पर बैठे हैं और मेरा इन्तेजार कर रहें हैं। खत पढ़ा गया, इसमें सैय्यद इब्राहीम रहमा तुल्लाह अलैह और आप के साथ शहीद होने वाले तमाम शोहदा की शहादत की पूरी कहानी लिखी थी। हज़रत गाजी अलैहिर्रहमां और तमाम हाजरीन को बड़ा गहरा सदमा हुआ। सब्र से काम लेते हुऐ अल्लाह का शुक्र अदा किया।

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Thanks for reading: धुंधगढ़ के किले में घिरे हुए दोस्त मोहम्मद की मदद, Sorry, my Hindi is bad:)

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