फनाह के बाद भी बाकी है शाने रहबरी तेरी
हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां रूहानियत के
ताजदार हैं शहादत से पहले भी आपसे करामतों का जहूर होता था और
जामे शहादत नोश करने के बाद आज भी करामतों का जहूर होता है। और इन्शा अल्लाह तआला कयामत तक होता रहेगा।
करामतों का जहूर ज़ाहिरी ज़िन्दगी में भी हो सकता है और विसाल फराने के बाद भी उलमाए इकराम ने इस पे बहुत सी दलीलें दी हैं।
इमाम मौनवी ने अक्सामे ज़्यारत में फरमाया कि एक ज़्यारत हुसूले बरकत के लिए होती है यह मज़ाराते औलिया के लिए सुन्नत है। और उनके लिए बरज़ा में बेशुमार बरकात हैं।
अल्लामा नाबलिसी ने हदीकुल नदियां में फरमाया कि औलिया की करामतें इन्तेकाल के बाद भी बाकी हैं जो न माने वह जाहिल है। हठ धरम है।
फतावा रिजविया भाग 4 पृष्ठ संख्या 288
हजरत शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहे अलैह अशअतुल लमआत शरहे मिशकात में फरमाते हैं कि औलिया अल्लाह इस दारे फानी से दारे बका की तरफ मुन्तकिल हो जाते हैं और वह अपने परवरदिगार के पास ज़िन्दा है उन्हें रिज़्क दिया जाता है यह खुश खुर्रम हैं। लेकिन लोगों को इसका शऊर नहीं।
फतावा रिजविया भाग चार पृष्ठ संख्या 288
अशअतुल लमआत शरहे मिशकात बाबे जियारत कुबूर में फरमाते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गजाली रह० कि जिससे उसकी
जिन्दगी में मदद लेना जायज है उससे बाद वफात भी मदद तलब करना
जायज है। मशायखे एज़ाम में से एक ने फरमाया मैंने चार मशायख को
देखा कि वह अपनी कबरों में इस ताह तसरूफ करते हैं जिस तरह
अपनी जिन्दगी में तसरूफ (व्यवहार) करते थे ये उससे भी बढ़कर।
हजरत शेख मारूफ करखी हजरत शेख अब्दुल कादिर जीलानी और दो
बुजुर्ग और शुमार किए इन चारों में खिज मजकूर नहीं। जो कुछ उस
बुजुर्ग ने देखा और पाया उसको बयान कर दिया। अशअतुल लमआत उर्दू पृष्ठ संख्या 922-923,
इमाम अल्लामा तफताजानी ने शरहे मकासिद में अहले सुन्नत के नजदीक इल्मो इदराक मुताशला की तहकीक करके फरमाया कि औलिया की कों की ज्यारत और पाक रूहों से निस्बत नफा होती है। फतावा रिजविया भाग चार पृष्ठ संख्या 288.
रद्दल मुखतार में इमाम गजाली से मरवी है कि पाक रूहों और औलियाए इकराम का हाल बराबर नहीं, कल्कि जुदा जुदा है। वह अपने अपने दरजों और बुलन्द मर्तबों के मुताबिक अल्लाह के फजल से जायरीनों को नफा देते हैं। फतावा रिजविया भाग चार पृष्ठ संख्या 291,
औलियाए इकराम और सालिहीने इज़ाम का फैज़ बाद विसाल भी जारी रहता है तफसीर अजीजी पारा आम पृष्ठ 50 पर है। मजहरी साहब तफसील में बयान फरमाते हैं।
तर्जुमा अल्लाह तआला शहीदों की रूहों को, जिस्मों को कुव्वत देता है। वह जमीन व आसमान और जन्नत में जहां चाहें जाते हैं
घूमते फिरते हैं और अपने दोस्तों की इमदाद करते है और
दुश्मनों को हलाक करते हैं। जियाउल कुरआन जिल्द एक पृष्ठ संख्या 108
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Thanks for reading: फनाह के बाद भी बाकी है शाने रहबरी तेरी, Sorry, my Hindi is bad:)