गाजी सरकार और बहराइच के राजाओं का दूसरा मुकाबला

गाजी सरकार और बहराइच के राजाओं का दूसरा मुकाबला Gazi Sarkar Aur Behraich Ki Jung Hindi Story
Sakoonedil

 गाजी सरकार और बहराइच के राजाओं का दूसरा मुकाबला


पहले युद्ध में हारने के कारण हिन्दू राजाओं को बड़ा अपमान सहन करना पड़ा क्योंकि मुठठी भर मुसलमान एक बड़ी हिन्दू सेना को हराने में कामयाब हो गए थे अतः हिन्दू राजाओं ने मुसलमानों से बदला लेने के लिए देश भर के अनेक हिन्दू राजा महाराजाओं को पत्र लिखे कि यदि समय रहते हमारी सहायता न की गयी तो पूरा देश गुलाम बन कर रह जाएगा।


मिराते मसऊदी अपनी फारसी की एक पुस्तक में लिखते हैं जिसका हिन्दी अनुवाद यह है


वह राजा महाराजा जो युद्ध में हार चुके थे उन्होंने अपमानित हो कर अपने तमाम राजाओं को पत्र लिखा कि यह देश हमारे तुम्हारे बाप-दादाओं का है इस लड़के ने बल पूर्वक इस पर अधिकार कर लिया है निवेदन है कि जितनी जल्दी हो सके हमारी सहायता करो वरना यह देश हमारे हाथों से निकल जाएगा। इस पर तमाम हिन्दू राजाओं ने एक होकर कहा कि हम बहुत जल्द तुम्हारी सहायता के लिए पहुंच रहे हैं। तुम लोग भी युद्ध की तैयारी बनाए रखो राय सहर देव सुजौली से और बहर देव सुमबलोन से एक बड़ी सेना के साथ दूसरों से पहले ही हिन्दू सेना से आ. मिले।-


सुल्तान सुबकतगीन और सुल्तान महमूद गजनवी की बहादुरी और भारत में उनकी विजयों से प्रभावित हो कर यहां के राजाओं के दिलों पर एक डर छाया हुआ था इसी कारण भारत के तमाम राजाओं ने


मिल कर बहराइच के राजाओं के पत्र पर उनकी सहायता के लिए विचार करने के लिए इकटठा हुए और यह सोच कर उनकी सहायता का यकीन दिलाया कि सैय्यद सालार मसऊद गाज़ी तो एक कमसिन नौजवान है किन्तु वीरता और बहादुरी में अपना जवाब नहीं रखते।


बड़ी से बड़ी ताकत के सामने वह सर झुकाने पर मौत को तरजीह देने का हौसला रखता है। यदि हमने उसको प्रथम चरण में अपनी पूरी शक्ति से उसके हौसले व हिम्मत पर चोट नहीं की तो यह हमारे लिए एक बड़ा संकट पैदा कर देगा और उसे पार करना मुश्किल हो जाएगा और कोई बात बनाए न बनेगी इसी विचार से तमाम हिन्दू राजा बहराइच के एक प्लेटफार्म पर जमा हुए उन राजाओं में तीन राजा ऐसे हैं जो भारत के इतिहास में प्रसिद्ध थे।


(1)गंग देव (2) करण देव (अर्जुन)


राय गंग और राय करण को स्थानीय राजा नहीं थे बल्कि गंग देव काला छुरी राज्य छेदी का राजा था और करण देव उसका बेटा अगरचे गंग देव के काल में थोड़ा बहुत अन्तर पाया जाता है मगर उसके और उसके पुत्र के आलेखों के द्वारा गंग देव का काल ग्यारहवीं शताब्दी के पहली रबी से लेकर तीसरी रबी तक माना गया है। इतिहासकार विन्सेट के अनुसार गंग देव ने 1015 ई0 से 1080 तक राज्य किया किन्तु ए० पी० ग्रेफिया इण्डिका पुस्तक के भाग दो पृष्ठ संख्या, 297, तथा 304 के करण देव का शासन 1042 से 1080 ई0 तक था बहरहाल इन दोनों की रूह से गंग देव और सिपाह सालार मसऊद गाजी का जमाना एक ही समय था। इनके अतिरिक्त इतिहासकार देहकी के अनुसार पृष्ठ 494 से 497 ई0 तक बनारस जिसे आजकल वाराणसी कहते हैं। राजा गंग देव के राज्य में शामिल था जबकि महमूद गजनवी के जनरल अहमद न्याल तगीन ने बनारस पर हमला किया यह हमला 1033 ई० में हुआ। गंग देव का वर्णन अबुल रेहान अलबरूनी ने भी अपनी पुस्तक तहकीके अलहिन्द में किया है। करण देव के लेखों से यह बात साबित है और इस सबूत की बिना पर इतिहासकार वेदप्पा ने अपनी एतिहासिक


पुस्तक तीसरा भाग के पृष्ठ 129 ला 188 पर लिखा है कि गंग देव और करण देव दोनों तुर्कों से लड़े राजा अर्जुन बकौल प्रोफेसर कील हार्न (ए०पी०ग्रेफिया इण्डिका जिल्द 8. पृष्ठ) (248) के महमूद गजनवी के जमाने में कछुवाहा राजपूत ग्वालियर का राजा था। और उसने सुल्तान महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली थी। जब मध्य भारत और कन्नौज के राजा सुबकतगीन और महमूद गजनवी से लड़ने के लिए पेशावर तक पहुंचे। तो बनारस से गंग देव और करणदेव का बहराइच पहुंचना क्या आश्चर्य की बात है। विशेषकर ऐसी दशा में जबकि करणदेव मुल्के केरा (कांगड़ा पंजाब) तक गया। कुतबा अनुवाद (लेख) ए० वी ग्रफिया इण्डिका दूसरा भाग पृष्ठ 297 से तीन सौ पांच तक इतिहास ने अपने आप को दोहराया अभी महमूद गजनवी की याद ताजा थी इसलिए बहराइच में मुसलमानों के कदम न जमने देने की कोशिश हिन्दू राजाओं के लिए एक स्वभाविक प्रयास था।


बहराइच पहुंचने वाले राजाओं में सबसे पहले राजा सहरदेव सुजौली से और राय बहर देव सुम्बलोना से बहराइच पहुंचे पहले युद्ध के परिणाम को सामने रखते हुए आपस में विचार विमर्श किया उस युद्ध में हारने पर जो शर्मिन्दगी उठानी पड़ी उसके उपायों पर बात करते हुए शहर देव ने कहा युद्ध केवल सैनिक शक्ति से नहीं जीते जाते इसके लिए बड़ी होशियारी चालाकी और बुद्धि से काम लेना होगा और कोई ऐसी जंगी चाल चले बिना कि जिससे शत्रु को अधिक से अधिक हानि पहुंचाकर परेशान न किया जा सके युद्ध में विजय प्राप्त करना आसान न होगा। इसलिए जंगी चालों के तौर पर मेरा यह मश्विरा है कि शत्रु के मुकाबले में आने से पहले जहर में बुझायी हुई लोहे की कीलें पूरे मैदान में गाड़ दी जायें क्योंकि तुर्की लोग अपने घोड़े बे तहाशा दौड़ाते हैं जब यह लोग अपने घोड़े दौड़ाते हुए मैदा आएँगे और जहरीली कीलें घोड़ों के पैरों में चुभेगीं वह लड़खडाऐंगे सवार धरती पर आ गिरेंगे इस प्रकार हम उनका आसानी से काम तमाम कर देंगे। इसके अतिरिक्त बारूदीगोले भी काफी संख्या में तैयार किए जाएं। इन बारूदी गोलों से भी हम तुर्की को काफी नुक्सान पहुंचा सकते हैं। जंग और ईश्क में सब कुछ जायज़ है।


इस फारमूले को अपनाते हुए राजाओं ने अपनी जंगी तैयारियां मुकम्मल कर लेने के बाद एक बहुत बड़ी सेना लेकर भकला नदी के किनारे डेरे जमाए। और अपना एक एलची सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां के पास भेजा। एलची ने आकर कहा कि तुम्हें खबरदार किया जाता है। कि तुम अपनी और अपने लोगों की खैर चाहत हो तो सरयू नदी पार कर चले जाओ और बहराइच का क्षेत्र खाली कर दो इसी में तुम्हारी जान की सलामती है। सैय्यद सालार मसऊद गाजी ने वहीपहला जवाब दिया। और एलची द्वारा कहला भेजा कि मुल्क खुदा का है जिसको चाहता है उसको देता है एलची ने वापस जाकर हजरत सैय्यद सालार मराऊद गाजी की वीरता से ओत-प्रोत विस्तृत जानकारी राजाओं को दी सारे राजा उनके इस उत्तर से हैरत में पड़ गये और कहने लगे कि ये नौजवान तो बड़ा बेबाक और निडर है जवाब देने में ज़रा भी नहीं दबता है।


एलची के वहां से जाने के बाद आपने समझ लिया कि अब बिना युद्ध के छुटकारा नहीं।


अतः आपने मलिक हैदर से फरमाया कि सैफुददीन अमीर नसरुल्लाह अमीर खिज्र अमीर सैय्यद इब्राहीम नजमुल मलिक सरफुल मलिक जहीरूल मलिक रैनुल मलिक सरफूल मलिक निजामुल मलिक कयामुल मलिक वा नसीरूल मलिक व मलिक रजब को जलद जमा करो। जब सब जमा हो गये तो आपस में सुलह मश्विरा के बाद ये तय हुआ कि शत्रुओं का यहां चढ़कर आना ठीक नहीं बल्कि हम आगे बड़कर चढ़ाई करें इन्शा अल्लाह फतह हमारी होगी। और दूसरे दिन हमले की तैयारियां हो रही थीं कि उसी समय खबर मिली कि शत्रु हमारे लश्कर के जानवर खोलकर ले गये हैं। इस खबर ने जख्म पर नमक का काम किया हजरत मसऊद गाजी शेर की तरह बिफरे और


जोश में आकर जंग का नक्कारा बजवा दिया खुद हथियारों से लैस होकर सवार हुए फौजों का सुसज्जित करके फौरन चढ़ाई के लिए कूच कर दिया। जब दोनों ओर की फौजें आमने सामने हुई तो घमासान का युद्ध छिड़ गया मुसलमान पूरे जोश व खरोश के साथ लड़ रहे थे हजरत गाजी अलैहिर्रहमां खैबर सिकन हजरत अली शेरे खुदा रजी० की वीरता और बहादुरी के सच्चे वारिस और अमीन थे बहादुरी उन्हें विरासत में मिली थी बड़ी दिलेरी के साथ शत्रु सेना में घुसकर अपनी तलवारे हैदरी से ऐसा वार करते थे कि शत्रु पक्ष पर बिजली सी गिरती मालूम होती थी। शत्रु घबरा घबराकर भाग रहे थे। जबकि युद्ध के मैदान में जहरीली कीलें जड़ी हुई थीं और बारूदी गोलों का भी सामना करना पड़ रहा था जिससे मुसलमानों की भी भारी जानी क्षति उठानी पड़ रही थी फिर भी मुजाहिदीने इस्लाम (इस्लामी लड़ाके) हिम्मत नहीं हारे और पूरी शक्ति को समेट कर शत्रु पक्ष पर आक्रमण करते रहे जिसके कारण दुश्मनों के टिड्डी दल फौज को मैदान छोड़कर भागना पड़ा शत्रुओं की सारी योजनाएँ और जंगी चाल खाक में मिल गयी सफलता मुसलमानों के हाथ लगी। शत्रुओं से मैदान खाली हो चुका था हजरत गाजी अलैहिर्रहमां मैदान में ही रहे और दूसरे अमिरों ने दूर तक दुश्मनों का पीछा किया। जब मुसलिम लड़ाके पीछा करके वापस आये तो आपने मैदान से चलकर भकला के किनारे डेरा उलवाया और लश्कर के शहीदों की गिन्ती करने का हुकम दिया। गिन्ती से मालूम हुआ कि कुल सैनिकों का एक तिहाई भाग शहीद हो गया और तिहाई सैनिक बाकी बचे आपने तीन दिन वहीं ठहर कर शहीदों की तदफीन की। शहीदों को दफन करने के बाद चौथे दिन आप बहराइच वापस आए।


मिराते मसऊदी हस्त लिखित पुस्तक पृष्ठ संख्या 50 पर है


अपने प्रिय साथियों के बिछड़ने का गम


अब तक के तमाम युद्धों में मुसलमान अपनी वीरता और बहादुरी के कारण सफलता प्राप्त करते रहे। सालार मसऊद गाजी की कमान में जो लश्कर गजनी से चलकर भारत पहुंचा था फिर बहराइच पहुंचने तक उसे कई युद्धों का सामना करना पड़ा। और उनकी संख्या चाहे जितनी रही हो कुछ न कुछ मुजाहिद अपने सर धड़ की बाजी लगाकर जामे शहादत नौश फरमाते रहे। विशेषकर बहराइच के उन दो युद्धो में उनके बहुत से अपने करीबी दोस्त अहबाब व अन्य मुस्लिम लड़ाके शहीद हो गये थे। जिसका बहुत अधिक प्रभाव हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां पर हुआ। ऐसे प्रिय साथियों मित्रों दोस्त अहबाब जिन्होंने कदम कदम पर आपका साथ दिया और समय आने पर अपनी जानें भी खुदा की राह में कुर्बान कर दीं। और संसार में हजरत गाजी से अपनी वफादारी की जिन्दा मिसाल छोड़ गये। ऐसे प्रिय जानिसारों की जुदाई का गम होना ऐ फितरी बात थी।


दिल ही तो है न संग व खस्त दर्द से भर न आए क्यों साहब मिराते मसऊदी लिखते हैं जिसका उर्दू अनुवाद इस प्रकार है


चूंकि अधिकांश पुराने मित्र इस युद्ध में शहीद हो गये थे हजरत सालार गाजी गम से निढाल रहते थे अपना रन्जो गम दूर करने के वास्ते अक्सर सवार होकर बाग देखने जाते थे क्यारियां और रास्ते बनाये जाते थे। कभी आप स्वंय अपने हाथ वृक्ष लगाते थे महुवे के वृक्ष के नीचे चबूतरा था आप वहीं बैठते थे और ये महुवे का वृक्ष सूरज कुण्ड के निकट ही लगा था बालार्क की मूर्ती तालाब के किनारे थी अक्सर गैर मुस्लिम सूरज कुण्ड में स्नान करके इस मूर्ती को पूजते थे और जिस समय सालार की दृष्टि इस मूर्ती और सूर्य कुण्ड पर पड़ती तो आप कुछ सोच में पड़ जाते ।


मलिक रजब बड़े सोख और मिज़ाज सनास थे कयास से उसने अपने मलिक का मिजाज समझकर के अर्ज किया आका अब इस स्थान पर बाग तैयार हो गया है और अक्सर सैर व तफरीह के लिए आया करते हैं और स्थान पर नमाजें भी अदा फरमाते हैं। ये स्थान दारूल स्लाम हो चुका है अगर आज्ञा हो तो इस मूर्ती का नाम व निशान मिटा दूं। इस पर आपने फरमाया कि तुम्हें नहीं मालूम मुझको खुदा से एक राज है जिसको कहा नहीं जा सकता यह स्थान मुझको कुछ दूसरी तरह से दिखलाया गया है जैसा कि ज़ाहिर होगा चन्द ही दिनों में खुदा के हुक्म से फरिश्ते इस शान से कुफ का अंधकार दूर करेंगे। और यहां इस्लाम की रौशनी फैलेगी और देखा जाए तो कुफ्र और शिर्क यहां से दूर भी हो चुका है मुझे खुदा की तरफ से जितना हुक्म होता है उतना प्रयास करता हूं मेरा ध्यान केश्वरवाद की ओर है यहां से अनेक केश्वरवाद की बू आती है लोग बुतों की पूजा की ओर आकर्षित हैं जो मेरे मिज़ाज के मुआफिक नहीं इसके बाद हज़रत सालार मसऊद ग्राज़ी के चेहरे का रंग बदलने लगा और आप पर हालाते जब छाने लगा। मलिक रजब ये देखकर बहुत घबराए और पयोमां होकर प्राथना की कि मैंने अपने समझ के अनुसार प्राथना की थी किन्तु आप जैसी आज्ञा दे वही मुनासिब हो गा। थोड़े समय के बाद जब आपको सुकून हुआ तो घोड़े पर सवार होकर अपने स्थान पर आये और तीन महीने तक अल्लाह की याद और ज़िक्र में लगे रहे कोई विशेष वाकिया पेश नहीं आया।


मलिक रजब


कुछ लोगों ने मलिक रजब को हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाज़ी को भांजा बताया गया है जब कि अब्दुल रहमान चिश्ती ने इसकी तरदीद (इन्कार) करते हुए लिखा है कि आम लोग मलिक रजब के हक में उनकी शहादत के बाद कुछ नामुनासिब बातें करते हैं और कहते हैं कि मलिक रजब सालार के भांजे थे ये सब गलत है और कुछ लोगों ने उनका नाम बदल दिया है कि रजब सुल्तान फिरोज शाह के बाप का नाम है और ये


वहीं रजब है यह भी सरासर गलत है मलिक रजब हजरत सालार के अदना खदिमों में से थे ये बड़े नेक दिल थे और लोगों से कम मिलते और बातें भी कम करते उनका कोई विशेष महत्व न था।


Rate This Article

Thanks for reading: गाजी सरकार और बहराइच के राजाओं का दूसरा मुकाबला, Sorry, my Hindi is bad:)

Getting Info...

एक टिप्पणी भेजें

Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.