गाजी सरकार के पहले मुकाबले का कारण
सबसे अहम बात यह है कि फारसी की ये कहावत सादिक आई अर्थात सत्यता प्रतीत करती है कि तंग आमद बजंग आमद अर्थात लंग व्यक्ति जंग पर आमादा हो जाता है सैय्यद मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां के मिशन इज्जत व हिम्मत ने इस बात की इजाज़त न दी कि राजाओं की धमकी से डरकर यहां से चले जाते बल्कि अपनी ओर से उन्हें सुलह की
बात रखी जिसमें दानों पक्षों की भलाई और लड़ाई से बचने का रास्ता मिलता था किन्तू जब उनकी यह बात न मानी गई तो चले जाने पर लड़ाई की ओर बुजदिली पर मौत को वरीयता दी यदि हिन्दु खुददार सूरमा इस हालत पर होते तो शायद वो भी नहीं करते। इतिहास में इसकी तमाम उदाहरण मिलते हैं कोई ऐतराज कर सकता है कि सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां ने पहले हमला करके जारेहाना कार्यवाही की न की अपना बचाव किया मगर यह सोचना गलत होगा। क्योंकि युद्ध में कई मर्तबा बजाय शत्रु के आक्रमण का इन्तिजार करने के उसकी दिशा और मौके का लिहाज़ करके उसके आक्रमण को रोकने की ग्ररण से पहले चढ़ाई कर दी जाती है। अतः पहली लड़ाई का नतीजा भी यही साबित करता है कि सैय्यद सालार मसऊद गाजी की यह कार्यवाई सही साबित हुई । पहला मुकाबला कहां हुआ अनास तां शेरबानी लिखते हैं- अब प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान भुगोल और नक्शे के अनुसार लड़ाई किस स्थान पर हुई कथला नदी, भक्ला नदी से ही निकलती है। अर्थात उसकी शाख बनकर आगे वह चली जो आजकल तहसील नानपारा जिला बहराइच प्रातर पश्चिम काने में जंगल में चौदह, पन्द्रह मील बहकर राप्ती नदी में मिल जाता है। मिराते मसऊदी के हठीले वाले नुस्खे में हमको इस जंगल का नाम तारामणी मिला किन्तु किसी ओर पुस्तक में ये नाम नहीं पाया। वर्तमान काल में इस नाम का कोई जंगल बहराइच के जंगलों में से नहीं है। मगर ये ज़रूर है कि बहराइच और नेपालकी सीमा से उत्तर चश्चिम में पच्चीस तीस मील की दूरी पर जंगल में एक स्थान तारामल प्रसिद्ध है। हो सकता है कि उस ज़माने में कोई हिन्दु बुज़र्ग फकीर तारामुनी हो जो यहि अपना स्थान जमाये हुए हो यह जंगल का नाम तारावन है। और पुस्तक की गल्ती से तारामुनी को गया हो। भक्ला नदी वर्तमान पर्गना चर्दा तहसील नानपारा में एक तालाब से मिलता है।
जिसको बुजबुजा कहते हैं। प्राचीन गांव चर्चा बहराइच से छब्बीस मील दूर से डाक्टर फुहरर की द्वितीय पुस्तक पेज संख्या दो सौ तिरान्नये के अनुसार चरदा में राजा शहर देव या सुहेलदेव एक किला बनवाया था और ये वही राजा है। जिसका वर्णन आगे आएगा। और जो इसके बाद की लड़ाइयों में सैय्यद सालार मसऊद गाजी से युद्ध किया दूरी के अनुसार रात भर सफर के अनुसार भक्ला नदी के अनुसार यही ख्याल पैदा होता है। कि पहला युद्ध पर्गना चरदा में कथला नदी से दक्षिण में हुआ। यह कहना मुश्किल है कि उस समय खुली जगह जो युद्ध के लिए उपयुक्त थी। कहां कहां थी और जंगल किन-किन स्थानों पे थे। इसकी इतनी विस्तार से जानकारी हजारों वर्ष पश्चात हो जाना क्या कम आश्चर्य हैं।
जुमला पर्वत के आस-पास के राजाओं का आप की आधीनता स्वीकार करना
मुठठी भर परदेशी मुसलमानों ने जब पहली लड़ाई जीत ली तो चारो ओर उनकी बहादुरी और वीरता की धाक जम गई। और जो राजा इस युद्ध में शरीक नहीं थे वो भी उनसे डरने लगे जैसे कि जमला पर्वत के राजाओं जोगी दास और गोविन्द दास ने एक एलची के द्वारा सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां की खिदमत में कुछ तोहफे और उनसे मिलने की इच्छा प्रकट की आप ने दोनों राजाओं को उनके एलची के द्वारा कहला भेजा कि आप लोग हमसे कोई खतरा महसूस करें यदि आप ने आधीनता स्वीकार कर ली है तो निश्चिन्त रहिऐ और रही मिलने की बात तो आप लोग जब चाहें वे खटक यहां आ जा सकते हैं। और हमसे मिल सकते हैं किन्तु आवश्यक तकलीफ उठाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप लोग अपने देश पर काबिज रहें।
जमला पर्वत के राजा के एलची के आने का कारण ये भी हो सकता है कि उस काल के भूई नस्ल के लोग अपने धर्म में इतने पक्के हिन्दू न थे जैसे कि कोह घाटी के और मैदानी क्षेत्रों के जमला पर्वत एक समय में तिब्बत का ही एक भू भाग था और यहां के मूई जाति के लोग तिब्बत के बुद्ध धर्म और हिन्दुस्तान के हिन्दू धर्म के प्रभाव के अन्तर्गत आते थे। वो गोरखों की विजय से महफूज़ रहे अर्थात बचे रहे और इसी कारण से कुमाइयूं गढ़वाल की तरह यहां पर हिन्दू धर्म पूरी तरह से न पनप सका। मिराते मसऊदी ने लिखा है कि सहर देव राजा गोण्डा और उन राजाओं का परिवार एक ही था मगर इससे यह नतीजा अवश्य निकलता है कि पहले युद्ध में पासा पलट जाने पर यत प्रभाव ज़रूर दिखा कि सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां का सिक्का लोगों के दिलों में बैठने लगा वरना इस खुसामद की क्या आवश्यकता थी ।
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Thanks for reading: गाजी सरकार के पहले मुकाबले का कारण, Sorry, my Hindi is bad:)