मस्जिद के जरिये करामत अली हेजवरी
लाहौर मे ठहरने के दौरान हजरत अली हेजवरी ने अपनी रहने की जघा पर एक मस्जिद बनवाई उस मस्जिद पर लोगों ने एतराज किया कि इसका रुख सही नहीं है आपने खामोशी से लोगों की शिकायत सुनली कुछ वक़्त के बाद जब नमाज का वक़्त हुआ तो आपने नमाज पढ़ाई और जब लोग नमाज से फ़ारिग हो गाये तो तमाम हजरात से फरमाया कि तुम लोग इस मस्जिद की क़िबला कर एतराज करते थे अब देखो कि क़िबला किस तरफ है जब उन्होंने नज़र उठाकर देखा तो क़िबला पश्चिम खुल्ला नज़र आया हजरत ने फरमाया बताओ क़िबला किधर है क़िबला को सीधे रुख पर देख कर सब लोग शर्मिंदा हुऐ और आपसे माफी चाही आपकी करामत के जरिया हर जघा शोहरत फैली और बेशुमार लोग आपकी बुजुर्गी और विलायत के कायल हुऐ,
असरदार बातें
हजरत अली हेजवरी का कहना है कि इराक मे रहने के दौरान मैंने बहुत खर्च करना शुरू कर दिया इसका नतीजा ये हुआ कि कि मैं कर्ज के बोझ तले दब गया, होता ये था कि जब किसी को कोई जरुरत लगती वोह मुझसे मदद मांगता था और मैं किसी ना किसी तरह उसकी मदद करता इस तरह लोगों की मांगे दिन बदिन बढ़ने लगे और कर्जदारों ने मुझे अलग तंग करना शुरू कर दिया इराक के एक सरदार ने जो मेरे इस हाल से वाकिफ था मुझे लिखा कि तूने जो तरीका इख़्तियार किया है उससे पैदा होने वाली परेशानिया इबादत और जिकरे इलाही मे माने हो जाएंगी ऐसे अंधा धुंध पैसा खर्चा करना अच्छा नहीं खुदा अपने बन्दों की जरुरीयात के लिये काफ़ी है और उसके सिवा किसी और मे ये कुदरत नहीं की वोह हर बन्दे की मदद देखभाल कर सके, मैंने उस नेक दिल सरदार की इसबात को गाठ बांध लिया और उस तंगी से छुटकारा हासिल किया
अल्लाह के बन्दों की खिदमत की वजा
हजरत अली हेजवरी बयान करते हैँ कि एक दिन मैंने अपने मुर्शिद हजरत अबू अल फजल अल खतली को वुजू करवा रहा था मेरे दिल मे ख्याल गुजरा कि जब हर काम हस्बे तकदीर सूरत पजीर होता है तो आजाद लोग कियों कर मुक्ति की उम्मीद पर पिरों के गुलाम बने रहते हैँ, आपने फरमाया अजीज मन मैं तेरे दिल की कैफियत समझ रहा हू तुझे मालूम होना चाहिए की हर चीज के लिये सबब दरकार है जब हक ताला चाहते हैँ कि किसी हाजिब जदा को तख़्त वा ताज से सरफराज करें तो उसे तौबा की तौफीक आता फरमाते हैँ और अपने किसी दोस्त की खिदमत उसके सुपुर्द करते हैँ ताकि ये खिदमत हुसुले करामत का सबब बन जाये ऐसे कई लतीफ रमूज आपसे हर रोज जाहिर होते थे
दो हिन्दुओं के बा ईमान होने का वाक़्या
हजरत सय्यद मीरा हुसैन जंजानी शुरू के दौर मे ये मामूल रहा कि घूम फिर कर तब्लीग किया करते थे एक दफा का वाक़्या है कि आप कई रोज तक दो हिन्दुओं को रोजआना दीन की दावत देते रहे एक दिन उन दोनों ने आपस मे कहा कि ये बुढ़ा मे रोजआना तंग करने आ जाता है और इसने नये दीन का किया ढोंग रचा रखा है वोह आपके सख्त मुख़ालिफ़ हो गये आखिर कार उन्होंने मंसूबा बनाया कि कियों ना इस बूढ़े दर्वेश का काम तमाम करदें ये सोच कर एक दिन आपके पीछे पीछे आपके रहने की जघा तक आ गये लेकिन अभी शाम होने वाली थी उन्होंने सोचा कि जरा रात हो जाये तो फिर आपको कतल कर देंगे इस नियत से आपकी झोपड़ी से दूर ही बैठे रहे जब अंधेरा छा गया और आप ईशा की नमाज अदा करने के बाद यादे इलाही मे बैठे हुऐ थे कि अचानक दोनों हिन्दू आपके कमरे मे आगये आपका दरवाजा खुला ही था और वोह आप पर हमला आवर होने लगे आप यादे इलाही मे गुम थे जैसे ही उन्होंने तेज छूरों से आप पर वार करना चाहा तो वोह दोनो अंधे हो गये चुनानचे अंधे होकर वापस लौटने लगे तो फिर ठीक हो गये जब ठीक हो गये तो दुबारा आपपर हमला आवर हुऐ लेकिन फिर अंधे हो गये इसी तरह जब तीसरी बार अंधे होकर दुरुस्त हुऐ तो उनका दिल बेदार हो गया कि ये तो कोई अल्लाह का नेक बन्दा है इसकी दावत सच्ची है हम ही झूठे हैँ आखिर आपके कदमों पर गिर गये और आपके हाथ पर ईमान लाये और फिर आखरी दम तक आपकी खिदमत मे हाजरी दिया करते थे,
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Thanks for reading: हजरत अली हेजवरी के वाक़्यात करामात , Sorry, my Hindi is bad:)