रूहानी मुकाम - हजरत सालार मसऊद गाजी रहमतउल्लह अलैह
हज़रत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां कमाले ज़ाहिर व बातिन का दिलकश इन्सानी नमूना थे एक ओर यदि वह दिन में युद्ध रन में रहते थे तो सारी सारी रात ईश्वर की इबादत में लगे रहते थे। आप रात के समय एकान्त में बैठ कर खुदा की इबादत में लीन हो जाते जिससे पैरों में वरम आ जाते थे। अल्लाह की राह में शहीद हो कर रूहानियत के बुलन्द मुकाम पर फायज़ हो गए।
रूतबा शहीदे इश्क अगर जान जाइए।
कुरबान होने वाले पे, कुरबान जाइए।।
आपकी रूहानी अजमत को कुछ वही लोग जान समझ सकते हैं जिन्हें खुदाए ताला ने चशमे बसीरत और दिले बीना अता फरमाया है।
लतायफे अशरफी मुतरजिम जिल्द सोम पृष्ठ संख्या 28 पर लिखा है। हजरत मखदूम असरफ जहांगीर समनानी रहमुतल्ला अलैह फरमाते हैं।
इत्तेफाक्न हज़रत सालार मसऊद के मज़ारे मुबारक की जियारत के लिए बहराइच जाने का इत्तेफाक हुआ शरफे जियारत के बाद हज़रत सैय्यद सालार (अमीर माह) की खिदमत में हाज़िर हुआ। ये फकीर और सैय्यद मजकूर तफरीह के तौर पर मैदान से गुज़र रहे थे कि हज़रत खिज्र से मुलाकात हो गई हम आपस में कुछ दीनी मालूमात की बातें कर रहे थे अचानक इजराईल जाहिर हुए और हमसे मुसाफा किया और कुछ वाकयात बयान किए। एक पहर के करीब इस माजरे में गुज़रा था कि हजरत खिज्र कभी बूढ़े की सूरत में कभी जवान की सूरत में और कभी बच्चे की सूरत में दिखाई पड़े।
सय्यद मौसूफ अशरफुल अशरफ अल-जिलानी हयाते गौसुल आलम सैय्यद अशरफ जहांगीर रहमतुल्लाह अलैह पृष्ठ संख्या 164 पर लिखते हैं
हजरत गौसुल आलम बहराइच भी तशरीफ ले गये। एक मर्तबा हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रहतुल्लाह अलैह के आस्ताने पर तशरीफ फरमा थे। एक दिन में 70 बार हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम से मुलाकात हुई। हजरत अकसर फरमाया करते थे कि खिज्र अलैहिस्सलाम से जितनी मुलाकातें बहराइच में हुई हैं रूए जमीन पर कहीं नहीं हुई है। इसके बाद आप सैय्यद जाफर (अमीर माह) की खिदमत में गये और उनसे मुलाकात फरमायी सूफी अब्दुल रहमान चिश्ती अलैहिर्रहमां दरे पाजी पे सुल्तान फिरोज़ शाह की हाज़री का वाक्या लिखने के बाद तहरीर फरमाते हैं पस जानना चाहिये कि जाहिरी बदन के इन्तेकाल के बाद हिदायत देना और खुसूसन बादशाहों के दिलों पर तसरूफ (राज़ करना) सुल्तानुस शोहदा के कमालात में ये है (मिरातुल असरार पृष्ठ सुख्या 459) आगे लिखते हैं।
इसके अलावा शेख मुर्तजा हजरत मीर सैय्यद सुल्तान के मल्यूज़ात में लिखते हैं कि मीर सैय्यद सुल्तान बहुत सफर करने के बाद हजरत शेख अलाउद्दीन चिश्ती मश्कूर की इजाजत से 12 साल तक हजरत ख्वाजा कुतुबुददीन बखतियार काकी के मज़ार से मिले हुए पुराने कब्रिस्तान में रियाजत व मुजाहिदात में मश्गूल रहे लेकिन कामयाबी न हुई। एक दिन वो हैरान व परेशान कब्र के पास बैठे थे एक आदमी को जो कोढ़ के मर्ज़ में मुबतिला था जाते देखा।
अचानक एक खूबसूरत नौजवान तेज घोड़े पर सवार जाहिर हुआ उस सवार ने चन्द चाबुक मारे जिससे वह गिर गया लेकिन वह बदस्तूर उसे चाबुक मारता रहा यहाँ तक की उसकी खराब कोढ़ से खराब सुदा खाल निकल गयी और दूसरी नई खाल निकल आई। ऐसा मालूम होता था कि गोया वो बीमार ही नही था। मीर सैय्यद सुल्तान इस वाक्ये से बहुत हैरान हुए और जवान के पास जाकर सारा माजरा पूछा तो उन्होंने फरमाया कि इस मरीज़ ने हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बखतियार काकी के मजार पर जाकर सेहत के लिए दुआ की थी और आं हजरत ने मुझे हुक्म फरमाया कि इसका काम कर दो। चुनांन्चे मैने आकर इसे बीमारी से निजात दिलायी। उन्होंनें पूछा कि आप कहां से तशरीफ लाये है फरमाया मैं वो हूं कि हर एक की विलायत को मेरी विलायत से हिस्सा मिलता है और मुझे सालार मसऊद कहते हैं और मेरा मुकाम बहराइच है ये कहकर वो गायब हो गये। इसके बाद मीर सैय्यद सुल्तान आपकी मज़ार पर हाज़री के लिए बहराइच रवाना हुए और एक लम्बे समय तक आपके आस्थाने पर ठहरे। और उनकी सारी मुरादें पूरी हो गई आगे और लिखते हैं कि मैंने गुतुबुल विलायत मीर सैय्यद अली कयाम के मल्फूज़ात में लिखा देखा है कि आपने अपने अकमल खुलफा मिस्ल शाह मूसा वगैरह को वसीयत की कि खुदा की बारगाह में कुर्बत के लिए सालार मसऊद की रूहानियत की तरफ तवज्जोह करना चाहिए क्योंकि उनकी रूहे पाक (सूरज) की तरह आरेफीन पर चमकती है और ये कौम (सूफी-सन्त) उनसे फैज हासिल करती है।
मिरातुल असरार पृष्ठ संख्या 460
अक्सर अहले बसीरत पर मुत्तफिक (एक मत) हैं कि आपकी शहादत के बाद मुल्के हिन्दुस्तान में जो कोई शहादत से सरफराज़ होता है आपकी मुताबियत पर मामूर हो जाता है।
मिरातुल असरार पृष्ठ संख्या 440
तारीखे मीराते सिकन्दरी में लिखा है कि हजरत शाह महबूब आलम गुजराती फरमाते हैं कि जब अक्सर लोग अपनी हाजतें (जरूरते) कुत्बुल औलिया हजरत ख्वाजा मोइनुददीन चिश्ती अजमेरी की खिदमत में पेश करते हैं तो हजरत ख्वाजा उनको सालार मसऊद की रुहानियत के हवाले करके खुद आजाद हो जाते हैं। मिरातुल असरार पृरूठ संख्या 440
नकल किया जाता है कि हजरत शेख शरफुददीन यहया मुनीरी रहमतुल्लाह अलैह का एक मुरीद था उसने पूछा कि ये क्या रस्म है कि हर मुल्क और हर शहर में लोग सालार मसऊद गाजी की कब्र बनाते हैं। हजरत शेख साहब ने फरमाया कि हक तआला ने सालार मसऊद गाजी को कमाल अता किया है कि तमाम आदमी दुनिया के हर घर में उनकी कब्र बना ले तो अपने तसरूफ विलायत से सब जगह हाज़िर हों और फैज़ पहुंचाएं।
मिराते मसऊदी फारसी पृष्ठ संख्या (74)
मोलवी इनायत हुसैन बलग्रामी हजरत सरकार गाजी अलैहिर्रहमां की रूहानियत पर रोशनी डालते हुए लिखते है कि सुलतानुश शोहदा जामे मुशाहिदाए इलाही से सरशार कौनों मका से बखबर एहकामे इलाही से खबरदार जो हुक्मे खुदा पाते अमल में ताते। आप हजरत यूसुफ अलैहिर्रहमां की तरह खूबसूरत और फरिश्ता सिफत इन्सान थे। आपकी अक्लो खिरद को देखकर लोगों की अक्लें हैरान थी। अल्लाह तआला आपकी जाते बाबरकत को औसाफे बातिन से आरास्ता फरमाया था। शारेह बुखारी अल्लामा अलहाज़ मुफती मोहम्मद शरीफुल हक अमजदी अलैहिर्रहमां तज़किरए गाजी के मुकददमे में तहरीर फरमाते हैं। फातेहीन ने सर खम कराए उरका ने दिल जीते यूं इस्लाम फैला मगर इस्लाम की इशाजत करने वालों में कुछ ऐसे भी मर्दाने खुदा का तजकिरा मिलता (वर्णन) है जो एक साथ दोनों हथियारों से लैस थे। तलवार की काट ऐसी थी कि जो उसकी जद पर आया दो टुकड़े हुआ निगाह ऐसी पुरतासीर थी कि जिस पर पड़ी वो उनका गुलाम बन गया उन्होंने तलवारों की धार से सरों को झुकाया और निगाहों की कशिश से दिलों को मोम किया। उन्हीं पाक जात अफराद में हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां भी हैं।
अदीबे शहीर हजरत अल्लामा बदरुल कादरी लिखते हैं कि हजरत गाजी मियां अलैहिर्रहमां सर जमीने हिन्द पर इस्लाम के मुबल्लिग बनकर आए। वो शुजाअत और बहादरी के साथ-साथ रूहानियत व विलायत के भी ताजदार थे।
Masud gazi ka ruhani mukam
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Thanks for reading: रूहानी मुकाम हजरत सालार मसऊद गाजी, Sorry, my Hindi is bad:)