मसूद गाजी के दर पर सुलतानों व बादशाहों सवाली बनकर आना

मसूद गाजी के दर पर सुलतानों व बादशाहों सवाली बनकर आना gazi sarkar ki shan badshah ho ya fakir sab hajiri dete hain
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 अनेक भारतीय सुलतानों व बादशाहों का आपके दर पे सवाली बनकर आना

 मसूद गाजी के दर पर सुलतानों व बादशाहों सवाली बनकर आना 

मसूद गाजी के दर पर सुलतानों व बादशाहों सवाली बनकर आना


सुल्तानुश शोहदा हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रहमातुल्लाह अलैह का रूहानी मुकाम इतना बुलन्द था कि हुकूमत व सल्तनत के ताजदार और रूहानियत व विलायत के आलम बरदार अकीदत व मुहब्बत के साथ हाजिर होकर फैज़ हासिल करते चले आ रहे हैं।


सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने भी दर पर हाजरी की गरज से बहराइच का सफर किया आपके दर पर हाजरी के बाद उसने आपके दरगाह के चारों तरफ एक किले चुना दीवारें तामीर करवायी और आपकी मजार के गुम्बद के चारों तरफ संगे मरमर की दीवारें और जालियां जो देखने में बड़ी खूबसूरत मालूम होती है तामीर कराई।


धानकाह इनायत अली शाह तकिया कलां जो उर्फ आम में बड़ी तकिया के नाम से मशहूर है और उसमें तकरीबन पचास साठ सालों से एक दीनी मदरसा जामिया गाजिया सय्यदुल उलूम बड़ी शान व शौकत से अपनी दीनी तालीमी फरायज अंजाम दे रहा है कायम है। जिसके प्रिंसपल हजरत मौलाना इम्तियाज़ अहमद आजमी साहब हैं उनकी निजामत में यह मदरसा तरक्की की राह पर ग्रामजन है। इस खानकाह की इमारत भी मोहम्मद तुगलक ने तामीर करायी थी इस खानकाह में एक आलीशान बावली कुआं भी मोहम्मद तुगलक ने तामीर कराया जिसकी मिसाल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में मिलना मुश्किल है।


बतूता और मोहम्मद शाह तुगलक


दुनिया के महान सय्याह इब्ने बतूता ने अपने मशहूर सफर नामे में लिखा है कि बादशाह मोहम्मद शाह तुगलक ने बहराइच जाने का इरादा किया। ये एक खूबसूरत शहर है और दरियाए सरयू के किनारे बसा हुआ है। सरयू एक बड़ी नदी है बादशाह ने सालार मसऊद की कब्र की जियारत के लिए नदी पार की सालार मसऊद ने वहां के अकसर इलाकों को फतह कर लिया था। और उनके संम्बन्ध में अजीब व गरीब बातें मशहूर ह लोगों के नदी पार करते समय बड़ी भीड़ हुई अतः एक बड़ी कश्ती जिसमें तीन सौ आदमी सवार थे डूब गई और उनमें से एक अरब जो अमीर गिजा उनके साथ था। हम एक छोटी कश्ती में थे इस वजह से अल्लाह ने हमें बचा लिया। उस अरब का नाम जो डूबने से बच गया था सलाम था और यह अजीब इत्तेफाक था उसका इरादा था कि हमारे साथ कश्ती में बैठे लेकिन हमारी कश्ती ज़रा आगे बढ़ आई थी इस वजह से वो बड़ी कश्ती में बैठ गया था जो डूब गयी जब वो नदी से निकला तो लागों ने यह सोचा कि वह हमारी कश्ती में था इसलिए हमारे साथियों में शोर मच गया सब लोगों ने ख्याल किया कि हम भी डूब गये लेकिन जब उन्होंने हमें सही सालिम देखा तो हमको मुबारक बाद दी फिर हमने सैय्यद सालार मसऊद की कब्र की जियारत की उनका मजार एक बुर्ज में है वहां भीड़ इतनी थी कि मैं अन्दर दाखिल न हो सका फिर उस नवाह में हम बांस के जंगल में दाखिल हुए तो हमने गेंडा देखा लोगों ने उसको मारा और उसका सर लाए वो हाथी से छोटा था लेकिन उसका सर हाथी के सर से कुछ बड़ा था। सफरनामा इब्ने बतूता मुतरज़िम पृष्ठ संख्या 191


सुल्तान फिरोज शाह तुगलक दरे गाजी पे


वाजेह हो कि सुल्तान फिरोज शाह तुगलक हजरत शैखुल इस्लाम अलाउददीन नबसा हजरत शेख फरीदुददीन अजोधनी रहमातुल्लाह अलैह का मुरीद था। बादशाह ने अपने तमाम ओहदे हुकूमत में औलियाए इकराम की पैरवी और उनके मजारों की जियारत की चालीस साल तक उन्ही बुजुर्गानें दीन की पैरवी में हुकूमत की फिरोज़शाह हर सफर से पहले औलियाओं और बुजुर्गों की खिदमत में हाज़िर होता था। उसने 776 हिजरी में बहराइच का सफर किया और शहर में पहुंचकर सालार मसऊद के आस्ताने पर हाजिर होकर फातिहा पढ़ी।


बादशाह ने बहराइच में कुछ दिन कयाम किया। एक रात ख्वाब में सालार मसऊद रहमातुल्लाह अलैह की जियारत नसीब हुई सैय्यद सालार ने फिरोजशाह को देखकर अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा जो इस बात का इशारा था कि अब बुढ़ापा आ गया। और बेहतर है कि अब आखिरत का सामान किया जाए और अपनी हस्तन को याद रखा जाए सुबह को बादशाह ने हलक किया और तमाम साथियों ने भी सर मुडाया।


 आस्ताने गाजी पे फिरोजशाह व अमीर माह रहमतुल्लाह अलैह की एक साथ हाजिरी


आस्ताने गाजी अलैहिर्रहमां पे फिरोजशाह की हाजिरी के सम्बन्ध में साहब मिराते मसऊदी एक वाक्या लिखते हैं।


जिन दिनों फिरोजशाह तठ की जंगी मुहिम में मसरूफ था उसी दौरान एक रोज उसकी वालिदा अपने मकान की छत पर खड़ी थी कि उसकी नज़र एक ऐसे जुलूस पर पड़ी जिसमें लोग नेजे और रंगे बिरंगे झण्डे व निशान व आलम लिए हुए उछलते कूदते गाते बजाते जा रहे थे। इस धूम धाम को देखकर फिरोज़शाह की वालिदा को बड़ी हैरत हुई पूछा इतने जौक व शौक के साथ जुलूस लेकर लोग कहां जा रहे हैं। उन्हें बताया गया कि उन्हें रूहानियत के ताजदार सुलतानुश शोहदा सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां के आस्ताने पर हाजिरी की गरज से बहराइच जा रहे हैं जहां से लोगों की मुरादें पूरी होती हैं वे इतने बड़े ब करामत फी सबीलिल्लाह है। कि उनके तबस्सुल से अल्लाह तआला बड़ी बड़ी मुसीबतों और मुश्किलों से निजात फरमाता है।


मशहूर हैं कि उनके आस्ताने से अन्धों को आंखें कोड़ियों और जुजामियों को शिफा मिलती है। ये बात सुनकर फिरोज़शाह की वालिदा के दिल में हजरत गाजी अलैहिर्रहमां की मुहब्बत व अकीदत पैदा हो गई और उससे ख्यााल पैदा हुआ कि जब वो इतने बड़े खुदा के मुकर्रब बन्दे शहीदे राहे मौला और रूहानियत के मर्कज़ हैं तो क्यों न अपने बेटे की कामयाबी और फतेह के लिए उनकी तरफ रूजू किया जाए।



अतः उसने सरकारे गाजी अलैहिर्रहमां की दुहाई देते हुए दिल में यह नीयत कर ली कि अगर मेरा बेटा फतह मन्द होकर आएगा तो उसे ज़रूर आपके आस्ताने पर हाजिरी के लिए बहराइच भेजूंगी। उधर बादशाह की फौज के पैर उखड़ने ही वाले थे कि किसी गैबी ताकत ने सहारा देकर कामयाब व कामरान बना दिया। फतह व नुसरत ने आदशाह के कदम चूमे। बादशाह विजयी होकर घर लौटा तो उसकी वालिदा ने कहा कि बेटे आज तुम एक बहुत मुश्किल जंगी महाज से फतह होकर लौटे हो मेरे ख्याल में तुम्हारी तमाम तर कामयाबी और फज़ले खुदावन्दी सरकार गाजी अलैहिर्रहमां की रूहानी ताईद की बदौलत है इसलिए जल्द से जल्द उनकी बारगाह में हाजिर होकर खिराजे अकीदत पेश करके अपनी नियाज़मन्दी का सुबूत दो।


फिरोजशाह को पहले ही से अल्लाह वालों से अकीदतो मुहब्बत थी वालिदा मोहतरमा का हुक्म पाकर उसके दिल में भी हजरत गाजी अलैहिर्रहमां के आस्ताने पर हाजरी का शौक पैदा हुआ अतः दिल्ली से सफर करके बहराइच पहुंचा तो कुछ बद बख्तों ने सुलतान को बदगुमां कर दिया कि इस मकबरे में हजरत गाजी अलैहिर्रहमां का जस्ये अतहर (जिस्म या शरीर) मदकून नहीं है। बल्कि ये कही नामालूम मुकाम पर है यहां उनकी असली कब्र नहीं है सुलतान कशमकश और तशवीश में मुबतिला हो गया कि आखिर वास्तविक कब्र कहां है। ख्याल पैदा हुआ कि अगर कोई आरिफ कामिल साहिबे बातिन मिल जाता तो वो अपने नूरे बातिन और कश्फ के जरिए हमारी सही रहनुमाई कर सकता है।


बहुत पता करने पर मालूम हुआ कि उस समय बहराइच में एक बहुत बड़े वली कामिल बुजुर्ग हजरत सैय्यद अफज़लुददीन अबू जाफर अमीर माह रहमतुल्लाह अलैह हैं उनसे मुलाकात की जाए तो यकीनन ये सही रहनुमाई और निशान दहि कर सकते हैं। तो सुल्तान स्वंय हजरत अमीर माह रहमतुललाह की खिदतम में हाज़िर हुआ और अपना सारा हाल ब्यान किया। हजरत अमीर माह रहमतुल्लाह अलैह ने इस बात की तसदीक की कि हजतरत गाजी अलैहिर्रहमां की असली मज़ार वहीं है जिसकी लोग जियारत करते हैं क्योंकि उसी मज़ार से निकलकर तुम्हारी मदद के लिए फलां तारीख और फलां तठ की तरफ तशरीफ ले गये थे। और फिर मुहिम सर होने के बाद वापस हुए तो हमने देखा कि इसी मज़ार में दाखिल हुए। सुल्तान ने जब शाही रोज नामचां देखा तो वास्तव में जंग की वही तारीख दर्ज थी जो अमीर माह रहमतुल्लाह अलैह ने बताई थी सुलतान को पूरा यकीन हो गया कि हजरत गाजी अलैहिर्रहमा की कब्र जहां मशहूर है वहीं है फिर बादशाह ने अमीर माह रहमातुल्लाह अलैह के साथ गाजी के आस्ताने पर हाजिरी की ईच्छा ज़ाहिर की तो हजरत अमीर माह रहमातुल्लाह अलैह फिरोजशाह को साथ में लेकर चल पड़े।


हजरत अमीर माह रहमतुल्लाह अलैह के हालात में मिलता है कि जब आप बहराइच में चलते तो उंगलियों के बल चलते पूरा कदम न रखते जब बादशाह अमीर माह रहमातुल्लाह अलै के साथ गाजी के आस्ताने पर पहुंचे और फातिहा पढ़ी। फातिहा पढ़ने के बाद बादलाह ने अमीरमाह रह० से कहा कि आप की कुछ करामतें बताये इस पर हजरत अमीर रमाह रह० ने फरगाया कि इससें बड़ी करामत और क्या होगी कि मुझसा फकीर और तुमसा बादशाह दोनों इनके दर पे हाथ बांधे खड़े हैं और दरबानी कर रहे हैं। इस जवाब से बादशाह बहुत प्रभावित हुए और फैज पाने की गरज से कुछ दिनों आस्ताने गाजी पे कयाम किया।


दरे गाजी पर औरंगजेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह की हाजरी


1088 हिजरी 1658 ई० 1118 हिजरी 1707 ई० के बीच के ज़माने में औरंगज़ेब आलमगीर रह० दिल्ली से बहराइच आए। किला दरगाह शरीफ से बाहर पश्चिम कोने पर मस्जिद आलमगीरी के नाम से तामीर कराई जो उनकी यादगार है। अलतमस का बेटा नसीरूददीन महमूद दिल्ली सलतनत का पहला शहजादा था जिसने बहराइच में अकामत (ठहरना) अख्तियार की उसके सूबेदारी के ज़माने में बहराइच के चारों तरफ मुसलमानों की बस्तियां बसाई गई। लेकिन मिनहाज सिराज ने शहजादे के जो हालात लिखे हैं उनमें सालार मसऊद का कोई ज़िक्र नहीं मिलता उनका बयान है कि- सालार मसऊद की मजार पर पक्की इमारत सबसे पहले नसीरूद्दीन महमूद ने तामीर कराई थी और मोहम्मद बिन तुगलक 725 हिजरी मुताबिक 1345 ई0 ता० 752 हिजरी मुताबिक 1351 दिल्ली का पहला सुल्तान था जो सालार मसऊद की मजार की ज्यारत के लिए आया था। फिरोज शाह तुगलक भी ज्यारत के लिए 776 हिजरी मुताबिक 1374 ई० में बहराइच आया था। वह यहां के रूहानी माहौल से इतना प्रभावित हुआ कि उसने दर्वेशों की तरह सर मुण्डवाया और आखिरत के ख्याल में मग्न रहने लगा।


तारीखे फिरोज शाही अफीफ पृष्ठ संख्या 372 यही बयान किया जाता है कि उसने कई इमारतें कुंए कब्रस्तान और बरामदे तामीर कराये थे। भारत में सालार मसऊद का मकबरा एक मकबूल तरीन ज़्यारत गाह है। हर साल लाखों हिन्दू और मुसलमान यहां ज़्यारत के लिए आते हैं। गाजी मियां जो बाले मियां और बाला पीर हठीलापीर वगैरह नामों से मशहूर हैं। उत्तरी भारत की कहानियों सकाफती जिन्दगी विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के देहातों में एक विशेष स्थान रखती है जनता में उनके संबन्ध में बहुत से लायानी किस्से मशहूर है। लोगों का मानना है कि उनकी शहादत उस समय हुई जब उनकी शादी की तक्रीबात हो रही थी इसलिए इस वाक्या ने दोहरे उर्स की शक्ल अख्तियार कर ली है उनकी याद में कई स्थानों पर जेठ के महीने में मई जून की पहली इतवार को झण्डों या निशान के साथ उरूसी जुलूस निकाले जाते हैं चूंकि इस त्योहार में बहुत सी गलत रस्में शामिल हो गई थीं इसलिए सिकन्दर लोधी 894 हिजरी मुताबिक 1489 ई० ता० 923 हिजरी मुताबिक 1517 ई0 में इसको बन्द कर दिया। लेकिन बाद में फिर होनें लगा। एक दफा शहंशाह अकबर ने आगरा के आस पास इस त्योहार को मनाते देखा था। गाजी मियां की शहादत का हर दिन हर साल बारहवीं तेरहवीं और चौदहवीं रजब की तारीखों में मनाया जाता है।


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Thanks for reading: मसूद गाजी के दर पर सुलतानों व बादशाहों सवाली बनकर आना , Sorry, my Hindi is bad:)

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