सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां की शहादत

सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां की शहादत gazi sarkar ki shahadat ka waqya
Sakoonedil

 सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां की शहादत


शहादत है मतलूब मकसूद मोमिन

न माले गनीमत न किश्वर कुशाई।


गजनी से सफर करने वाला मुजाहिद यूं तो अमनशान्ति का पैगाम और धर्म प्रचार का इरादा लेकर निकला था लेकिन बातिल परस्त ताकतों को उसका पैगामेअमन व शान्ति और तबलीगी मिशन एक आंख न भाया और हर बार हर स्थान उसके बढ़ते हुए कदमों को रोकने की कोशिशें की गई। कदम कदम पर हौसला शिकन हालात पैदा होते रहे कोई साधारण और कम हिम्मत वाला होता तो भाग खड़ा होता मगर कुर्बान जाइये इस मर्दे मुजाहिद की साबित कदमी बुलंद हौंसले आली हिम्मती और बहादुरी पर कि मुखालिफ लहरों से टकराते हुए आगे बढ़ता रहा । हर महाज पर फतह व नुसरत के झण्डे लहराते हुऐ अपनी आखिरी मंन्जिल बहराइच तक पहुंचा जहां रहमते खुदा वन्दि अपने आगोश में लेने के लिए मुन्तजिर थी और उरुसे शहादत गले लगाने के लिए बेचैन थी आज की तारीख में आपकी शहादत मुकददर हो चुकी थी।


नमाजे जोहर और शोहदा की नमाजें जनाजा अदा फरमाने के बाद सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां अपनी बची कुची फौज को समेट कर एक शेर दिल बहादुर की तरह दुश्मन की फौज पर जो चट्टान की तरह जमी हुई थी इतना जोरदार हमला किया कि दुश्मन के होश उड़ गये और उनकी फौज के अन्दर अफरा तफरी मच गयी इससे पहले सैफुददीन सुरखुरू सालार रहमत उल्लाह अलैह दूसरे सरदारों के हाथों बहुत से बड़े राजाओं को मौत के घाट उतार चुके थे इसके बाद आपने भी बहुतों को अपनी तलवार से मौत की नींद सुला दिया शत्रु सेना जो बड़ी तेजी से आगे चढ़ रही थी। आपने उसे अपने तूफानी हमले से पीछे कदम हटाने पर मजबूर कर दिया यहाँ तक कि उसे अपनी सरहद ही पर जाकर ठहरना पड़ा। आप भी मोहलत पाकर अपनी जगह पर खड़े हुए अजीब कयामत खेज मन्जर निगाहों के सामने था पूरा मैदाने जंग लाशों से भरा पड़ा था ऐसा महसूस होता था कि गोया जमीन ने लाशों की फसल उगा दी हो कितने नीमजां (अधमरे) तड़प रहे थे। जख्मियों की चीख पुकार से पूरा मैदान गूज रहा था। कितने जांकनी की हालत में जिन्दगी की आखिरी हिचकियां ले रहे थे जो जिन्दा व सलागत थे वो भी अजीब कश्मकश का शिकार थे।


रायशहर देव और राय बहरदेव और कई नौजवान के अकसर साथी शहीद हो चुके है अब केवल चन्द लोग रह गये हैं इस अवसर का फायदा उठाते हुऐ अपनी अपनी सैनिक टुकड़ियों को लेकर के आप पर घेरा करते हुए निकट पहुंचे और चारों ओर से तीर बरसाना शुरु किया बेतावाना हालत देखकर आपके साथी पूरी बहदुरी हिम्मत के साथ सीना सिपर होकर तीरों की बारिश को अपने ऊपर रोकने लगे कि आप तक कोई तीर पहुंचने न पाये लेकिन ये चन्द दीवाने तीरों की बौछार से कब तक बचते हर दीवाना तीरों के जख्म से चूर चूर हो चुका था और हजरत गाजी अलैहिर्रहमां भी जख्मों से निढाल हो चुके थे मगर हजारों जख्म खाने के बावजूद आप जख्मी शेर की तरह शत्रुसेना में तहलका मचाते रहे आपका हर वार शत्रु को मौत के मुह में पहुंचा देता। आपकी तलवार बिजली बनकर दुश्मनों पर गिरती और वह जमीन पर ढेर हो जाता जब तक दममें दम रहा बहादुराना शान से मुकाबला करते रहें आसमान ने रूए जमीन पर शुजाअत और बहादुरी के पैसे मनाजिर (दृश्य) कम ही देखे होंगे जंग का सिलसिला जारी था। नमाजे असर का समय हो चला था दुश्मनों का सरदार सहर देव टीलों की आड़ में छिपता हुआ आप के बहुत निकट पहुंच कर एक नपा तुला तीर इस तरह मारा कि वह आप के गुलूए मुबारक में जा लगा गले पर तीर लगते ही खून के फव्वारे जारी हो गए पूरा शरीर खून से तर बतर हो गया आप अपनी वफादार घोड़ी (अस्पे नीली) पर सवार थे। खून काफी बह जाने की वजह से आप पर बेहोशी छाने लगी आपकी गिरफ्त ढीली पड़ गई। घोड़ी की पीठ से आपका जिस्म लुढ़कने ही चला था कि सिकन्दर दिवाना ने बढ़कर आपको संभाला और घोड़ी से उतार कर सूर्य कुण्ड के निकट महुवे के वृक्ष के नीचे लिटा कर आपका सरे मुबारक अपने जानों पर रखा और जोरो कतार रोने लगे। यह वही सिकन्दर दीवना है जिसे दुनिया ब्राहना शाह बाबा कहती है। आप हजरत इब्राहीम अदहम रह० के तरीके पर नंगे सर, नंगे पैर रहा करते थे और फकीरों में मुमताज मुकाम हासिल था। हाथ में एक सांडा लिए हुए हमेशा हजरज गाजी अलैहिर्रहमा के लश्कर में पैदल चला करते थे। हजरज गाजी अलैहिर्रहमा से इन्हे बेपनाह मुहब्बत थी। जिसकी वजह से उन्हें बारगाहे गाजी में सूर्यत हासिल थी। जिस पर दूसरे लोगों को रश्क आता था।


आज उस दीवाने पर कयामत टूट पड़ी थी क्योंकि वोह महबूबे दिल नयाज जिसके वजूद से दिल की दुनिया आबाद थी वहीं न रहा आज उनका सही जब्त जवाब दे रहा था। रोते-रोते हिचकियां बंध गई थी। सिसकने की आहट से हजरत गाजी अलैहिर्रहमा ने थोड़ी देर के लिए आंखे खोल दी होठों पर मुस्कुराहट और जबान पर नगम-ए-तौहीद जारी था।


14 रजब 424 हिजरी मुताबिक 1033 ई० को जब कि आपकी उम्र के 19 साल पूरे होने में अभी 1 हफ्ता बाकी था। बरोज इतवार असर व मगरिब के दरमियान आपने आशिके जार सिकन्दर दीवाने के जानों पर सर रखे हुए उनकी रूह परवाज कर गई। आप हमेशा के लिए जिन्दा व जावेद बन गये।


क्योंकि कुरआन में अल्लाह ने फरमाया है कि जो अल्लाह की राह में शहीद हुए उन्हें कतई मुर्दा न कहो। बल्कि यह जिन्दा हैं। अपने रब से रिज्क पाते हैं लेकिन तुम्हें शऊर नहीं।


सालारे कारवां हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमा की शहादत के बाद यह चन्द साथी जो जिन्दा बच गये थे आपके बाद जिन्दा रहने पर मौत को तर्जीह दे रहे थे सौ-सौ जान से कुर्बान होने का जज्बा उनके सीने में मचल रहा था। और इस ख्याल से कि जब हमारा सालार ही दुनिया में नहीं रहा जिसके लिए हमने मां-बाप, भाई-बहन, अजीज व अकारिब (रिश्तेदारों) को छोड़ा अपना प्यारा वतन माल जायदाद ऐश व आराम सब कुछ छोड़ कर यहां आये थे अब उसके बगैर हमें जिन्दगी का मजा ही क्या। लेहाजा हमें भी उनकी डगर पर चलकर अपनी जानें राहे मौला में कुर्बान करके वफादारी और जांनिसारी का तमगा हासिल कर लेना चाहिए। चुनांचे हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमा के यह चन्द दिवाने अपनी जानों की पर्वाह किये बगैर दुश्मन पर टूट पड़े दुश्मन चारों तरफ से घेरा डालकर तीरों की बारिश शुरू कर दी। यह बचे कुचे चन्द लोग भी तीरों का शिकार होकर शहीद हो गये। मगरिब तक मसऊदी लश्कर का एक व्यक्ति भी जिन्दा बाकी न बचा।


तमाम शोहदा की लाशों के बीच हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमा की लाश इस तरह पड़ी थी जैसे चांद के गिर्द तारे टिमटिमा रहे हों। सिकन्दर दिवाना सरकारे गाजी का सरे मुबारक अपने जानों पर लिए हुए बैठे थे तीरों के वार होते रहे जख्म पे जख्म सहते रहे मगर आपकी मुहब्बत ने जरा भी जुम्बिश की इजाजत न दी। और इसी हालत में अपने महबूब के कदमे नाज पर जान कुर्बान कर दी। किसी कवि ने ठीक ही लिखा है।


सर बवंक्ते जिबाह अपना उसके जेरे पाये हैं।


यह नसीब अल्लाह अल्लाह लूटने की जाय है।।


असपे नीली गाजी अलैहिर्रहमा की वफादार और महबूब सवारी थी। उसे भी अपने आका से बेपनाह मुहब्बत थी आपकी लाशे मुबारक के करीब सोगवार खड़ी रही तीरों से लहुलुहान होकर उसने भी अपने आका के कदमों में जान दे दी।


यह खूनी मन्जर देख कर सूरज ने पश्चिम और अपना मुंह छुपा लिया अब अंधेरा हो चला था एक जांबाज सालार और उसके चन्द जांनिसारों की लाशें बेगौरो कफन पड़ी हुई हैं बजाहिर तो यही नजर आता है कि चन्द शोहदा जिनका जीवन से अब कोई रिश्ता नहीं रहा और उनकी बेगौरा कफन लाशें अपनी बेबसी व बेकसी का मन्जर पेश कर रही हैं।


लेकिन कुरआन उनकी हकीकत से पर्दा उठाते हुए कहता है कि वह लोग जो अल्लाह की राह में शहीद हुए उन्हें मुर्दा न क हो बल्कि वोह जिन्दा हैं और अपने रब के पास से रिज्क पाते हैं लेकिन तुम्हें शऊर नहीं।


रात का अंधेरा हो जाने के बाद शहर देव और उसके साथी बाग के अन्दर घुस आये वह लोग सालार मसऊद की लाश को तलाश रहे थे अल्लाह ताआला ने आपकी लाश को दुश्मनों के नापाक हाथों से बचाये रखा और अंधेरे में वह उसे न पा सके शहर देव मैदान जंग ही में रात गुजारना चाहता था किन्तु उसके दूसरे साथियों ने कहा कि जहां पे मुसलमानों का खून गिरा हो वहां पर हमारा ठहरना हरगिज मुनासिय नहीं। अब हमें लौट चलना चाहिए और अपने लश्कर की भी खबर लेनी चाहिए कि कितने लोग मारे गये कितने जिन्दा बचे कितने घायल और जख्मी है कुछ उनके दवा इलाज मरहम प‌ट्टी की भी फिक्र करनी चाहिए कल फिर दिन के उजाले में यहां आयेंगे। शहर देव ने अपने साथियों की बात मान ली और सबको लेकर अपने डेरे पर लौट गया।


मुसलमान शोहदा की लाशों के बीच में दो तीन जख्मी मुजाहिदीन गशी की हालत में मुर्दों की तरह पड़े थे लेकिन जब उन्हें कुछ होश आया और आंखे खुली तो देखा कि मैदान दुश्मनों से खाली है

किसी तरह लड़खड़ाते लड़खड़ाते बहराइच उस डेरे की तरफ चले जहां दुश्मनों की हिफाजत की गरज से जंग में जाने से पहले हजरत गाजी अलैहिर्रहमा ने सैय्यद मीर इब्राहीम रह० को एक हिफाजती दस्ता देकर देखभाल के लिए नियुक्त किया था। कि दुश्मनों पर नजर रखें। अब बाग में सिवाये शहीदों की लाशों के कोई जीवित न बचा था। केवल आपका वफादार कुत्ता संगे सांगल आपकी लाश के निकट खड़ा रहा और रात भर दरिदों और जंगली जानवरों से लाशों की हिफाजत करता रहा। भौंक-भौंक कर उन्हें दूर भगाता रहा यह कुत्ता गोया असहाबे कहफ के कुत्ते के सामान था।


इधर जख्मी मुजाहिदीन मौका पाकर मैदाने जंग से उतठ कर गिरते पड़ते किसी तरह बहराइच पहुंचे और हजरत सैय्यद इब्राहीम अलैहिर्रहमा को हजरत गाजी अलैहिर्रहमा के शहीद हो जाने की दर्दनाक खबर सुनाई। कैम्प के अन्दर कोहराम मच गया हिफाजती दस्ते के सारे लोग जोरो कतार रोने लगे। हजरत सैय्यद इब्राहीम रह० हजरत गाजी अलैहिर्रहमा के हम मजाक मह ख्याल मुख्लिस और बेतकल्लुफ दोस्त थे। दोनों का मिजाज एक जैसा था दोनों हजरात एक दूसरे से बहुत करीब थे शहादत की खबर सुनते ही आपके दिल पर गम का पहाड़ टूट पड़ा मारे गम के होशो हवाश बजां न रहे। सदमा बर्दाश्त न कर सके बेहोश हो गये कुछ समय बाद जब थोड़ा आराम हुआ और दिल पे काबू पाया फौरन सवारी का मुतालबा किया लोगों ने अंधेरी रात और जंगल की खतरात की वजह कुछ टालमटोल किया तो आपने फरमाया तुम लोग मेरा साथ दो या न दो मुझे एक पल की भी देरी गवारा नहीं। जिन जालिमों ने हमारे सालार को शहीद किया है मैं उनसे बदला लिये बगैर इतमिनान से नहीं बैठ सकता चाहे इसके लिए अपनी जान भी गवानी पड़े। सोचो तो सही जिसकी उल्फत व मुहब्बत खून बनकर हमारे रगो रेशे में दौड़ रही है और जिसके वजूद के बदौलत हमारी जिन्दगी में बहार थी और दिल की दुनिया आबाद थी अब उसके बगैर हमारे लिए जीना दुश्वार और जिन्दगी बेमजा है।


सुबह के इन्तिजार में बैठ कर रात काटना मेरे लिए कयामत की रात काटना है।


लोगों ने समझाया कि हुजूर हम आपके कदम ब कदम चलकर राहे मौला में कुर्बान होने के लिए हर वक्त तैयार हैं आपके इशारे पर मर मिटना हमारी जिन्दगी का मकसद है हम आपको तनहा छोड़ दें ऐसा हमसे कभी भी न हो सकता हम तो आपके हुक्मों की तामील करने वाले हैं लेकिन जरा सबरो जब्त से काम लीजिए और सोचिए जंग का भयानक माहौल रात का सन्नाटा घटा टोप अंधेरा हर तरफ जंगल और वीराना चारों तरफ हू का आलम दरिंदे भी शिकार की तलाश में निकल पड़े होंगे। हमारा जानी दुश्मन भी घात लगाये बैठा होगा। ऐसे खतरनाक माहौल में हमारे लिए निकलना हरगिज मुनासिब नहीं रात गुजर जाने दीजिए सुबह आपके हम रकाब होंगे। हम बुजदिल नहीं हम बहादुरों की संतान हैं। सरकार गाजी का खून हमारी जान से ज्यादा कीमती है। इसका बदला लिए बगैर हम चैन से नहीं बैठ सकते। हजरत गाजी से हमारी मुहब्बत दीवानगी की हद को पहुंची हुई है। हम तो उनके नाम पर मर मिटने का हौसला लेकर ही घर से निकले हैं। इन बातों से हजरत सैय्यद इब्राहीम रह० के बेचैन दिल को कुछ इतमिनान हुआ और रात में निकलने के फैसले को सुबह के लिए मुल्तवी कर दिया। लेकिन सच्चे आशिक के लिए रात काटना बड़ा दुश्वार काम है। इसके लिए बस एक ही सूरत थी कि यादे इलाही में मशगूल हो जायें। अतः आप एक गौशे में बैठ कर अल्लाह की इबादत में मशगूल हो गये और रात भर दुआयें मांगते रहे।

हजरत इब्राहीम रह० सुबह के इन्तिजार में इबादत में मशगूल

थे रात के पिछले पहर जब ठण्डी हवा के झोंके चलने लगे। कुछ थकावट का भी असर था आपकी आंख लग गई आंख लगते ही क्या देखते हैं कि एक बहुत पुरबहार हरे-भरे शादाब और खूबसूरत स्थान पर एक बड़ा सुन्दर नूरानी तख्त बिछा हुआ है जिस पर हजरत गाजी अलैहिर्रहमा शाही लिबास में पूरी शान व शौकत के साथ जलवा अफरोज हैं और मसऊदी लश्कर के तमाम शोहदा आपके चारों तरफ घेरा बनाऐ बैठे हैं। ये खूबसूरत मन्जर देखने के बाद हजरत सैय्यद इब्राहीम रह० उस नूरानी मजलिश में शरीक होने के लिए कोशिश करते हैं कदम बढ़ाते हैं लेकिन कदम नहीं उठते घबरा कर हजरत गाजी अलैहिर्रहमा को आवाज देते हैं जवाब मिलता है अभी तुम्हें इस मजलिस में आने के लिए इन्तिजार करना होगा मजलिस बर्खास्त हो गई और सरकार गाजी अलैहिर्रहमा घोड़ी पर सवार होकर किसी तरफ जाने लगे। हजरत सैय्यद इब्राहीम पुकारते हैं और पूछते हैं कि बन्दे के लिए क्या हुक्म है। हुक्म होता कि मेरा जाहिरी जिस्म सूरज कुण्ड के बाग में महुये के नीचे चबूतरे पर है वहीं दफन कर दो सिकन्दर दिवाने को भी मेरे पश्चिम जानिब दफन कर देना। और मेरी घोड़ी जिस स्थान पड़ी है उसे वहीं दफन कर देना। फिर फरमाया कि मेरा कातिल शहर देव तुम्हारे मुकाबले में जरूर आयेगा तुम उसे कत्ल कर देना। तुम्हारे हाथों कत्ल होना उसका मुक‌द्दर हो चुका है। अन्त में तुम्हें भी जामे सहादत नौश करके हमारे पास आना है। इतना सुनना था कि आंख खुल गई ख्वाब का मन्जर निगाहों में नाच रहा था। हजरत गाजी अलैहिर्रहमा के हुक्म की तामील के लिए बेचैन हो गये। फौरन गुस्ल करके कपड़े बदले और हिफाजती दस्ता देकर बाग में पहुंचे हजरत मसऊद गाजी की लाश मुबारक को महुवे के पेड़ के नीचे चबूतरे पर दफन किया और सिकन्दर दीवाने की लास को पश्चिम जानिब दफन किया


और बाकी शहीदों की लाशों को सूरज कुण्ड में दफन कर ऊपर से मिट्टी डाल दी ताकि किसी दुश्मन को शहीदों की लाश के साथ गुस्ताखी और बेहुर्मती का मौका न मिले।


चूंकि खुवाब में आपको अपनी शहादत की बशारत मिल चुकी थी इस लिए सिकन्दर दीवाना की कब्र के बगल में पहले ही अपने लिए भी तैयार कराई शहर देव लश्करे मसऊदी के कड़ी नजर रखे हुए था जब उसे सूचना मिली कि लश्कर मसऊदी के कुछ लोग अभी जिन्दा है हो सांप की तरह बल खाते हुए अब बड़ी तेजी से अपना फौजी दस्ता लेकर मैदान जंग में आ पहुंचा और इधर से हजरत सैय्यद इब्राहीम रह० मुहाबले के लिए आगे बढ़े और मर्दै मैदां बनकर पूरे अज्मों हिम्मत के साथ जग में उतर पड़े और शहर देव पर तलवार से ऐसा जोरदार वार किया कि शहर देव का सर तन से जुदा हो गया और पूरा जिस्म जमीन पर तड़पते तड़पते ढेर हो गया। जंग चलती रही यहां तक कि आप भी लड़ते लड़ते दुश्मन के हाथों 15 रजब 424 हिजरी मुताबिक 1033 ई० बरोज दोशम्बा (सोमवार) को शहीद हो गये। साथियों ने वसीयत के मुताबिक पहले से तैयार की गई कब्र में दफन किया और फिर सबके सब एक एक करके सहीद हो गये कोई जिन्दा व सलामत न बचा सिर्फ दो-तीन खादिम जो मैदाने जंग में जख्मी पड़े रह गये थे उन्हीं अच्छे होने पर आपकी मजार की खिदमत व हिफाजत में लग गये और अपनी सारी उम्र यहां गुजारी।


फिर कुछ दिनों के बाद हाजी सैय्यद अहमद व हाजी सैय्यद मुहम्मद जो हजरत गाजी अलैहिर्रंहमा के साथियों में थे और सतरिख में ठहरे हुए थे आपका गैबी इशारा पाकर बहराइच आये और पूरी अकीदत वा मोहब्बत के साथ आपके असताने की खिदमत में मसरूफ हो गये उन दोनों पे आपकी खास नजरे करम रहती उन दोनों हाजरात ने बा कमाले मोहब्बत पूरी जिंदगी आस्ताने गाजी की खिदमत में लगे रहे। झाडू देते और शाम को चिराग बत्ती करते करते।

Gazi sarkar Ki Shahadat 

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Thanks for reading: सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां की शहादत, Sorry, my Hindi is bad:)

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