मसूद गाजी और तीसरा आखरी जंगे अजीम

मसूद गाजी और तीसरा आखरी जंगे अजीम Gazi Sarkar Stories Hindi Waqya Islamic Story
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 मसूद गाजी और तीसरा आखरी जंगे अजीम 

सय्यद सालार मसूद गाजी ki akhri jung


मुठठी भर निहत्थे मुसलमान जो केवल अल्लाह के दीन के प्रचार व प्रसार के लिए गज़नी से चलकर भारत आए और वहां से चलकर बहराइच पहुंचे यहां के तख्त व ताज पर अधिकार जमाना उनका उद्देश्य न था। बहराइच की ओर प्रस्थान तो केवल सैर व शिकार के लिए था इस जंगली भू-भाग ने उन्हे अपनी ओर आकर्षित किया था। किन्तु शक्ति और संख्या के नशे में चूर बहराइच के राजा महाराजा अम्न पसंद और सुलह शान्ति का संदेश देने वाले मुसलमानों को अपने यहां ठहरना बदर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। जबकि मुसलमान केवल यहां दीन के प्रसार व प्रचार में लगे थे। और समय पाकर सैर व शिकार भी कर लिया करते थे फिर भी मुसलमानों को बहराइच से चले जाने की धमकी देते मुसलमानों ने अपनी सुरक्षा में दो जंगें लड़ी और दोनों युद्धों में सफलता प्राप्त की। एक ओर भारत के नामी गिरामी राजाओं का संगठन और उनमें एक से बढ़कर एक युद्ध कुशल लड़ाके भारी सैन्य शक्ति और इसपर कदम-कदम पर पूरे देश से उन्हेंसहायता भी मिल रही थी उनके पास मजबूत किले सुरक्षित ठिकाने और भरपूर सैनिक साजो सामान उनसे मुकाबला करना कोई आसान काम न था।


दूसरी ओर मुठठी भर निहत्थे मुसलमान अपने वतन से बहुत दूर कहीं से सहायता मिलने की कोई आश नहीं। कि कोई किला और कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं किसी बादशाह और राजा की पुष्त पनाही भी हासिल नहीं उनका कमाण्डर एक उन्नीस साला नौजवान जिसकी कम उमरी का देखते हुए ये भी नही कहा जा सकता कि उसे बहुत अधिक जंगी तजुर्बा था और अपनी किसी जंगी चाल से सफलता प्राप्त करता है हकीकत यह है कि जो लोग अल्लाह के दीन के प्रचार व प्रसार के लिए


लिए निकलते हैं अल्लाह तआला ऐसे लोगों की सहायता स्वंय फरमाता हैं।


लगातार दो यूद्धों में हार का मूंह देखने से हिन्दु राजाओं की नींदें हराम हो गई। शर्मिन्दी व निदामत का तौप उनकी गर्दनों में पड़ चुका था अपनी हार को सोच सोचकर दांतों तले उंगलियां दबाते थे। बदले की भावना की आग उनके सीनों में भड़क रही थी इन्हीं सब कारणों से तीसरे युद्ध के बादल मण्डराने लगे।


दो युद्धों से लगातार हारे हुए राजाओं से मदद की अपील करके भारी सैन्य जमा कर लिया। और अपने अपने राज्यों में ये ऐलान कर दिया कि हर घर के दस आदमियों में से नौ को युद्ध के मैदान में जाना जरूरी है। क्योंकि हमारा देश और स्वंय हम लोग एक बड़े खतरे से झूझ रहे हैं। अगर इस बार हमने हिम्मत व बहादुरी से काम नहीं लिया तो हमारा देश हमेशा के लिए मुसलमानों का गुलाम हो जायेगा। और हमारी गर्दने झुकी की झुकी रह जायेंगी। इस ऐलान के बाद देश भर से बेशुमार फौजी का सैलाब उमट पड़ा नेपाल की सीमा से लेकर दर्याये घाघरा तक फौज ही फौज नजर आ रही थी।


हजरत सैय्यद सालार गाजी का अपने लोगों को इकठा करके आखिरी भाषण देना


हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी को जब ये सूचना मिली कि शत्रु हमें निस्त व नाबूद कर देने की कसम खाकर बहुत बडी संख्या में और भरपूर जंगी तैयारी के साथ हम पर आक्रमण करने वाले हैं जबकि पिछली जंगों में आपके अधिकांश साथी शहीद हो चुके थे। शेष बची कुची फौज भारतीय राजाओं की टिड्डी दल फौज के मुकाबले में बहुत कम और न काफी थी। फिर भी ऐ मर्दे मुजाहिद (मुसलिम लड़ाके) पूरी हिम्मत के साथ डटे रहे और इतनी बड़ी सैन्य शक्ति से मुकाबले के बावजूद हिम्मत नहीं हारे जैसे ही सैय्यद सालार मसऊद गाजी का हुक्म होता है सारे सरदार और फौजी एक स्थान पर जमा हो जाते हैं फिर आप उनके बीच जाकर एक पुरजॉश खुत्बा देते हैं कि ऐ मेरे जांनिसार


दोस्तों यकीनन तुम्हारी जांनिसार और अहदे वफादारी बेमिसाल है। तुम सबका मेरे ऊपर बड़ा एहसान है। कि गजनी से लेकर हिनदुसतान तक तुम लोगों ने मेरा साथ दिया। तरह- तरह के कष्ट उठाए और बड़ी वीरता से शत्रुओं का मुकाबला किया। अल्लाह तअला का हम पर यह खास फ‌जलो फरम रहा है कि हमने कभी हार का मुंह न देखा और बड़े से बड़े दुश्मन के मुकाबले में हमेशा फतह पायी। लेकिन आज हम एक ऐसे नाजुक मोड़ पर पहुंचे हैं कि हमारी संख्या बहुत थोड़ी है और सत्रु एक बड़ी सेना के साथ हमें संसार से मिटा देने की कसम खाकर हमारे सर पर खड़ा है। अब आगे हमारी किस्मत में क्या लिखा है खुदा ही जाने। मगर दोस्तों इस लम्बी मुद्दत तक साथ साथ रहने के दौरान मुझसे तुम्हें कष्ट भी पहुंचा होगा। मुझसे कुछ कोताही भी हुई हो गी और कभी मेरे मुंह से ऐसी कोई बात भी निकली होगी जिससे तुम्हारे दिलों को ठेस लगी होगी। लिहाजा तुम में से जिस किसी को मुझसे तकलीफ पहुंची हो खुदारा माफ कर दे हम में से जो कोई भी वतन लौटना चाहता है वह बखुशी जा सकता है मुझे उसके जाने पर कोई तकलीफ नहीं होगी और न एतराज होगा।


कुदरत ने मुझे वह हिम्मत और हौसला बख्शा है कि बड़े से बड़ी ताकत मुझे डरा नहीं सकती और पुरखे कभी युद्ध से मुंह नही मोड़ते थे। अतः हम अपनी बात पर अड़े रहेंगे मगर हम किसी को मजबूर भी नहीं करते कि वह युद्ध में हर हाल में हमारा साथ दे हज़रत सालार गाज़ी की यह तहरीर इतनी प्रभावशाली थी कि पत्थर दिल इंसान भी मोम हो जाए। आप के साथी जो जो अपने अहद के (कौल) के पक्के और सच्चे वफादार थे कैसे न प्रभावित होते आप को छोड़ कर जाना उन्हें कब गवारा हो सकता था यह लोग तो अपनी जानों को हथेली पर रखकर और सर पर कफन बांध कर ही घर से निकले थे। यह शेर (कविता) इस बात की अक्कासी करता है कि-

मेरी ज़िन्दगी का मकसद तेरे दीं की सरफराज़ी

 मैं इस लिए मुसलमां, और इसीलिए हूं ग़ाज़ी।



सभी साथियों ने एक ज़बान हो कर कहा कि ऐ हमारे सालारे आज़म हम बुज़दिल नहीं जो आपको तने तनहा छोड़कर अपनी जान बचा कर कहीं और लौट जाए हम आपके ज़ेरे कमान रहकर बहादुरी के जौहर दिखाना चाहते हैं। कि शत्रु भी हमारी तारीफ किए बगैर न रह सकेगा हम अपने शरीर के खून का एक-एक कतरा इसलाम के लिए बहा देंगे हमें घर का ऐशो आराम नहीं बल्कि तीर व तलवार की छांद रास आती है। फिर भला क्यों कर हम आपका साथ छोड़ सकते हैं।


हज़रत सैय्यद सालार मसऊद गाज़ी की तकरीर सुन कर हर लश्करी का दिल जां निसारी से लबरेज़ था और आंखों में आंसू छलक आए आपने सारे लोगों का शुक्रिया अदा किया और दुआएँ दी। फिर आपके पास जो कुछ था वह सब फौज को दे दिया और एक दस्ते को बतौर हरावल के नियुक्त करके आज्ञा दी कि वह बहराइच की दो कोस की दूरी पर फौजी की चौकी कायम करें और स्वंय इबादते इलाही में मशगूल हो गये। उसी समय से आपने खाना पीना छोड़ दिया केवल पान खाते और इत्र का बा कसरत इस्तेमाल करते और ज्यू -ज्यू समय गुजरता आपका जौके शहादत बढ़ता जाता।


13 रजब 424 हिजरी सन् 1033 ई० को प्रातः काल शत्रुओं ने अपनी पूरी शक्ति के साथ मुसलमानों की उत्त फौजी चौकी पर जो बहराइच से दो कोच की दूरी पर थी जहां मुसलमानों का हरावल दस्ता तैनात था हमला कर दिया। मुसलमान जज़्बए शहादत से सरशार खड़े थे मुकाबले में डट गये घमासान की लड़ाई होने लगी जब सालार मसऊद को इस जंग की खबर मिली तो आपने फौरन नक्कारए जंग बजवा दिया तमाग सरदार अपने अपने असलहो से लैश होकर लशकर के साथ हाज़िर हो गये। आपने सालार सैफुददीन सुरखुरू अलैहिर्रहमां को चौकी की दसते की मदद को भेजा और स्वंय गुस्ल करके कपड़े बदले इत्र लगाया फज्र की नमाज अदा की तलवार बांधी लेकिन आज खिलाफे आदत अपना जिसमानी सुरक्षा कवच पहने बिना अपनी विशेष सवारी अस्पे नीली घोड़ी (घोड़ी का नाम) पे सवार होकर अपनी विशेष


टुकड़ी को लेकर शहर से बाहर निकले लश्कर को मुकदमा मैमना मैसरा अकब में तरतीब देकर रवाना हुए। सूरज कुण्ड पर अपने लगाए हुए बाग में पहुंचे तो बे पनाह खुश हुए आपको अपने मदफन (दफ्न होने का स्थान)का गैबी इशारा हो चुका था अतः जब भी महुवे के वृक्ष के पास पहुंचते बहुत खुश होते और वहां थोड़ी देर अवश्य ठहरते। हमेशा की तरह इस बार भी उसी महुवे के वृक्ष के नीचे आकर ठहरे आपके साथी दुश्मनों पर बाज की तरह झपट पड़े मुसलमान मुजाहिदीन जान से बे परवाह होकर सर पर कफन बांधकर बड़ी बहादुरी के साथ लड़ रहे थे उनकी तलवारों की काट ऐसी थी कि जो सामने आया दो टुकड़े हुए। हिन्दुस्तान के राजाओं की संगठित सेना के मुकाबले में अगरचे मुसलमान दाल में नमक की तरह थे लेकिन हक के प्रस्तार रज़ाए इलाही के तलबगार हजरत गाजी अलैहिर्रहमां के जानिसार सुब्हान अल्लाह । अल्लाह की सद हजार रहमतें हों उन पर काबिले सद आफरी था उनका मुजाहिदाना किरदार पूरे जोशे जिहाद के साथ बड़ी बेजिगरी के साथ लड़ रहे थे शत्रु पक्ष की कमान शहरदेव और बहरदेव के हाथ में थी जिन्हें अपनी बढ़ी सेना पर गर्व था। मुठठी भर मुसलमानों की बहादुरी का मन्जर देखकर अचम्भित रह गये। शाम तक घमासान जंग का सिलसिला जारी रहा दोनों ओर के बहुत से लोग जंग में काम आये मगर कोई फैसला न हो सका आखिर रात हो गई फिर भी दोनों लस्कर मैदान में ही पड़े रहे कोई मैदान खाली करके नहीं हटा।


हिन्दु फौज की तादाद इस बार बहुत ज्यादा थी उनके मुकाबले में मुसलमानों की तादाद बहुत थोड़ी थी सुबह का उजाला फैलते ही जंग का नक्कारा बजा दोनों ओर की फौजों में नक्लो हरकत शुरू हो गई युद्ध छिड़ गया मुसलमान लड़ाके अपने सर धड़ की बाजी लगा रहे थे बढ़ बढ़ कर हमले कर रहे थे उनकी तलवारे बिजली बनकर दुश्मनों पर गिर रही थीं इतनी बड़ी सेना का मुकाबला कोई आसान काम न था। हिन्दुराजाओं की संगठित सेना भी पहाड़ की तरह मैदाने जंग में जमी रही दोपहर तक दो तिहीई मुसलमान शहीद हो गये जिनमें सालार


सैफुददीन सुरखुरू अलैहिर्रहमां सालार मसऊद के मशवरे खास (विशेष सलाहकार) और राजदा थे उनकी तलवारों से हजारों कुफ्फार जहन्नुम रसीद हुए अर्थात (नर्क) में पहुंच गए इसके पश्चात आपने भी शहादत का जाम नौश फरमा लिया। हजरत गाजी अलैहिर्रहमां पर क्या गुजरी होगी इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता फिर भी अपने हिम्मत नहीं हारी और बराबर डटे रहे।


हजरत सैफुददीन सुरखुरू सालार रहमत उल्लाह अलैह के मजारे मुकददस पर लाखों लोग जियारत के लिए हाजरी देते हैं ये बड़ा ही बा फैज़ आस्ताना है पुराने तर्ज का गुम्बद बना हुआ है। शहर बहराइच से 10 फरलांग उत्तर जानिब रेलवे गुमटी के उस पार और दरगाह शरीफ से छः सात फरलांग दक्षिण पश्चिम में हैं। हजरत गाजी अलैहिर्रहमां की छोटी सी फौज ने दुश्मनों के दांत खटटे कर दिए। लेकिन पूरे हिन्दुस्तान से लाखों की संख्या में आई हुई सेना का मुकाबला कब तक करते लशकरे मसऊदी का हर सरदार बड़ी बहादुरी से लड़ रहा था और जख्मों की लज्जत समेटकर शहीद होता जाता रहा था।


अमीर नसर उल्लाह, अमीर खिज्र सैय्यद अहमद व सैय्यद मोहम्मद बलखी, व सुलतान फतह उददीन, व अमीर वैरम, व अबी नस्रूल्लाह, व अमीर बहाउददीन, अमीर याकूब, अमीर नसीरूददीन, मबारिज, अमीर तुरकान, अमीर बलाती, अमीर सईद, अमीर रजब वगैरह ने राहे मौला में अपनी जानें कुर्बान कर दीं तो हजरत गाजी अलैहिर्रहमां ने अपनी आंखों में आंसू भरकर अल्हमदुलिललाह का विर्दे फरमाया कहा ये मेरे जानिसार साथी अपने मकसद में कामयाब हो गये अब उनके बगैर जिन्दगी का मजा जाता रहा। इंशा अल्लाह मैं भी जलद ही उनके पास पहुंचूंगाइसके बाद फरमाया कि सालार सैफुददीन और उनके तमाम साथियों को जो भी सूरत बन आए दफन किया जाए खादिमों नें उन्हें किसी न किसी तरह दफन करके अर्ज किया कि हुजूर दुश्मन बहुत गालिब आ चुके हैं और मुसलमान बहुत बड़ी संख्या में शहीद को चुके हैं अब फरमाइये कि हम जंग करें कि शहीदों को दफन करने की चिन्ता


करें बड़े नाजुक हालात दरपेश हैं चूंकि चारों तरफ से दुश्मन उनको घेरे हुए थे इतना समय न था कि कबरें खोदकर उनको उन्हें दफन किया जाये। आपने फरमाया कि शहीदों की लाशों को सूरज कुण्ड में बतौर दफन डाल दो इंशा अल्लाह उनकी शहादत की बरकत से इस स्थान से कुफ्र व शिर्क का अंधकार कयामत तक के लिए दूर हो जायेगा हुक्म की तामील की गई जब सूरज कुण्ड लाशों से भर गया तो आपने बाकी बचे शहीदों की लाशों को गारों और कुओं में दफ्न करा दिया ताकि उनके पाक जिस्मों को काफिरों के नजिस हाथ न लगे और बे हुरमती व अपमान न करें इसके पश्चात् आपने घोड़ी से उतर कर ताजा वुजू करके नमाजें जुहर अदा किया और तमाम शोहदा की नमाजें जनाजा पढ़कर उनकी रूहों पर फातिहा पढ़ी।

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Thanks for reading: मसूद गाजी और तीसरा आखरी जंगे अजीम, Sorry, my Hindi is bad:)

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