अल्लाह के हुजूर हजरत यहया बिन मुआज की इलतेजा

अल्लाह के हुजूर हजरत यहया बिन मुआज की इलतेजा hazrat yahya bin muaaz ki allah se dua
Sakoonedil

 अल्लाह के हुजूर हजरत यहया बिन मुआज की इलतेजा

अल्लाह के हुजूर हजरत यहया बिन मुआज की इलतेजा


आप अपनी दुआ इस तरह से शुरू करते थे कि आये अल्लाह अगर चे मैं बहुत गुनेहगार हू फिर भी तुमसे मगफिरत की उम्मीद रखता हू कियोकि मैं सर तापा मइसत और तू मुजस्सम अफु है आये अल्लाह तूने फिरोन के खुदाई दावे पर हजरत मूसा और हजरत हारून को नरमी का हुक्म दिया लेहाजा जब तू, अना रब्बुकुमुल आला, कहने वाले पर करम फरमा सकता है तो जो बन्दे सुब्हान रब्बीयल आला कहते हैँ उनपर भला तेरे लुफ्त वा करम का कौन अंदाजा कर सकता है आये अल्लाह मेरी मिल्कीयत एक कम्बल के सिवा और कुछ नहीं लेकिन ये भी अगर कोई तलब करे तो मैं उसे देने पर तैयार हू आये अल्लाह तेरा इरशाद है कि नेकी करने वालों को उनकी नेकी के बदौलत बेहतर सिला दिया जाता है और मैं तुझपर ईमान रखता हू जिससे अफजल दुनियां मे कोई नेकी नहीं है लेहाजा इसके सिला मे तू मुझे अपने दीदार से नवाज दे ल, आप अक्सर फरमाते कि आये अल्लाह जिस तरह तू किसी से मुसाबा नहीं उसी तरह तेरे उमूर भी दूसरों से गैर मुसाबा हैँ और जब ये दस्तूर हो कि तालिब अपने मतलूब को राहते पहुँचाता है तो फिर ये कैसे मुमकिन है कि तू अपने बन्दों को आजाब मे मुबतिला करदेगा इस लिये कि तुझसे ज़ियादा मेहबूब रखने वाला भला और कौन हो सकता है, एक मर्तबा आपने दुआ की कि आये बारी ताला चुंकी तू गुनाह बख्शने वाला है और मैं गुनेहगार हू इस लिये तुझसे तालिबे मगफिरत हू लेहाजा तेरी गफ्फारी और अपनी कमजोरी की बिना पर इरतेकाब मइसत करता हू इस लिये मुझे अपनी गफ्फारी या मेरी कमजोरी के पेशे नजर बख्स दें,


पाक बाज रहने की बातें


हजरत यहया बिन मुआज एक पाक बाज इन्सान थे मुआशर्ति बुराइयों और बे हयाईयो से आप कोसो दूर रहते थे एक मर्तबा आपने अपने एक इरादत मन्द को लिखा कि मैं काफी दिनों से इस मसले पर सोच विचार कर रहा हू कि मुझे अमरा ख्वातीन और दर्वेशो को किस नजर से देखना चाहिए अपने खत मे आपने और लिखा ख्वातीन से मुराद मेरी औरत हैँ वोह औरत जो मर्द की कमजोरी है और मर्द उससे हमेशा एक जैसी उम्मीद रखता है आपने और लिखा कि इस दौर मे औरत को सहूत की नजरों से और दर्वेश को गुरुर वा तकब्बूर की नजरों से देखा जाता है लेकिन मैंने एक अरसा के गौर वा खौज के बाद इस अंदाज मे तब्दीली करदी है मैं अमरा को हसद के बजाये इबरत वा नसीहत की नजरों से देखता हू औरत को सहूत के बजाए शफकत की नजरों से देखता हू रहे दर्वेश तो मैं उन्हें गुरुर वा तकब्बूर के बजाये त्वज्जा की निगाहों से देखता हू याद रखो मैंने तुझे जो कुछ भी लिखा है ये महज नजरों का ही जिक्र नहीं बल्कि दानिश मन्दी की तीन अलामते हैँ सिर्फ ऐसे लोगों के लिये जिन्हे अल्लाह ने अकले सलीम अता फरमाइ हो और जिनमे कुछ जानने और समझने की जुस्तजू हो

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Thanks for reading: अल्लाह के हुजूर हजरत यहया बिन मुआज की इलतेजा, Sorry, my Hindi is bad:)

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