बुलंद आवाज़ से जिकरे इलाही
हजरत अबुल हसन नूरी इबादत वा रियाजत के इबतेदाई दिनों मे इन्तहाई बुलंद आवाज़ मे खुदा का जिक्र किया करते थे एक रोज कुछ लोग हजरत जुनेद के पास आये और उन्होंने फरमाया कि गुजिस्ता तीन रोज से हजरत नूरी एक पथ्थर पर बैठ कर बा आवाज़ बुलंद अल्लाह ताला का जिक्र कर रहे हैँ उन्हें और किसी चीज का होश नहीं हत्ता कि उन्होंने खाने से भी मुँह मोड़ रखा है मगर नमाज अपने वक़्त पर अदा कर लेते हैँ हमें ड़र है कि इस भूक पियास की हालत मे बा आवाज़ बुलंद जिकरे इलाही करने से कहीं उनको नुकसान ना पहुचे लेहाजा आप वहाँ तसरीफ लेजाकर उन्हें कुछ हिदायत फरमाये वहाँ पर मौजूद एक और इरादत मन्द ने कहा कि हजरत ये तो फनायत की दलील नहीं बल्कि होशियारी की अलामत है कियोकि फानी को किसी तौर पर नमाज का होश नहीं रहता उन लोगों की बातें सुनकर हजरत जुनेद ने फरमाया लोगों बात वोह नहीं है जो तुम तमाम समझ रहे हो बल्कि इस वक़्त नूरी पर जजब की कैफियत तारी है और जो साहबे वजद होता है खुदा उनकी हिफाजत करता है
उसके बाद हजरत जुनेद उस मुकाम पर पहुचे जहाँ हजरत नूरी एक पथ्थर पर बैठे जोर शोर से अल्लाह अल्लाह का विर्द कर रहे थे आपने हजरत नूरी से कहा कि अगर अल्लाह ताला की रजा पसंद है तो फिर आप शोर कियों करते हैँ ये सुनकर हजरत नूरी ने अवाज बुलंद करते हुऐ कहा आये जुनेद आप मेरे बहतरी उस्ताद हैँ,
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Thanks for reading: बुलंद आवाज़ से जिकरे इलाही, Sorry, my Hindi is bad:)