सालार शाहू का सतरिख आने का मुख्य कारण
एक शरीफ और पाकीजा सिफात धर्म पत्नी का उनके जीवन में ही साथ छोड़ कर चल बसना एक पति के लिए कितना कष्ट दायी हुआ होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है। इस असहनीय सदमे और गम को भुलाने के लिए अपने प्रिय-पुत्र के पास सतरिख आने का ख्याल पैदा हुआ होगा। लेकिन इसी के साथ साथ यह बात सोचनी गलत न होगी कि सालार शाहू, चूंकि महमूदी पार्टी के आदमी थे। और महमूद के आखरी दौर में बेटों के बीच इक़्तेदार की जंग छिड़ चुकी थी। फिर सुल्तान महमूद अहमद बिन हसन मेमन्दी को जिसे हज़रत सालार शाहू और हज़रत सैय्यद सालार मसऊद गाजी से हसद और पुरानी अदावत थी। मंत्री पद से हटा कर कैद कर दिया था मसऊद महमूद गजनवी का बेटा जब तख्त पर बैठा तो उसे पुनः मंत्री पद पर बहाल कर दिया। बहुत मुमकिन है कि उन्ही हालात ने सालार शाहू को काहिलर छोड़ने पर मजबूर किऐ हो। और सालार शाहू अपने इकलौते बेटे से मिलने सतरिख आए हों। सालार शाहू काहिलर का प्रबंध कुछ परोसे के लायक चुने हुए लोगों को सुपुर्द कर के एक विशेष सैनिक टुकी लेकर हिन्दुस्तान के लिए रवाना हुए। जब सतरिख के पास पहुंचे तो सैय्यद सालार मसऊद गाज़ी ने आगे बढ़ कर अपने पूज्य पिता का सम्मान किया। और अपने साथ उन्हें क्याम गाह पर लाये आप के आने की खुशी में तीन दिन तक जश्न मनाया गया । तमाम लशकरों और सरहदी अमीरों में खुशी की लहर दौड़ गई उनके हौसले बढ़ गए इस्लामी लश्कर की ताकत में इज़ाफा हो गया। आस-पास के राजा महाराजा जो सैय्यद सालार मसऊद गाज़ी के वजूद को बर्दाश्त नहीं करते थे अब सालार शाहू के आ जाने से बहुत घबरा गए। चन्द दिन के बाद मलिक फिरोज़ उमर जिन्हें सरयू नदी के तट पर इस लिए लगाया गया था कि जो गल्ला उन तक पहुंचे वह बहराइच हज़रत सैफउद्दीन सुरखुरू सालार रहमातुल्लाह अलैह के पास भेजते जाएँ। इसी बीच उन्हें तीन ऐसे व्यक्ति मिले जिन पर दुश्मन के जासूस होने का शक हुआ उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
जब यकीन हो गया कि वाकई यह लोग जासूस ही है तो उन्हें सतरिख भेज दिया गया। खादिमों ने उन्हें पहचान लिया कि उनमें दो जासूस वो है जो कटरा और मानिक पुर के राजाओं की ओर से जीन और लगाम लाए थे और एक वो नाई है जो जहर में बुझी हुई नहरनी लाया था हजरत सालार शाहू ने उनके फितने की वजह से गुस्से में भरकर फरमाया कि तीनों को फांसी दे दी जाए। लेकिन हजरत सालार मसूद ने फरमाया कि इन तीनों को कतल करने से किया फायदा ? छोड़ दीजिये हजरत सालार साहू ने फरमाया कि इन दोनों ब्राह्मणों को तो मैं अपने फर्जन्द अजीज की वजा से रिहा करता हूँ मगर इस हजाम को हरगिज ना छोड़ूँगा सालार साहू के हुकुम से हजाम को मौत के घाट उतार दिया गया बाद क्षमादान देते हुए केवल नाई को फांसी दे दी गयी। उनके पास से ये खुतूत मिले जो कटरा और मानिक पुर के राजाओं ने बहराइच के आस पास के राजाओं के नाम लिखे थे। उनमें तहरीर था कि विदेशियों का लश्कर हमारे तुम्हारे मुल्क में आकर बे खौफ व खतर जमा हुआ है कभी भी हमें उनसे खतरा हो सकता है। मुतमईन होकर खामोश रहना अकलमंदी नहीं है।
अतः इससे पहले कि वह हम पर चढ़ाई करें इधर से तुम चलो और हम उधर से बढ़कर उनको घेर लें। और उनका सफाया कर दें। खुतूत पढ़कर जब उन राजाओं के नापाक इरादों की जानकारी हुई सालार साहू रहमतुल्लाह अलैह ने गुस्से में आकर फरमाया कि दुश्मनों के नापाक इरादों को हम खाक में मिला देगे अतः , उसी समय कटरा और मनिक पुर के राजाओं की नकलो हरकत की जानकारी के लिए उनके पीछे दो मुखबिरों को लगाया जासूसो ने वापस आकर बताया कि दोनों राजा इस समय लड़के और लड़कियों के विवाह समारोह में लगे हुए है।सालार शाहू, रहमतुल्लाह बड़े यूद्ध कौशल थे आपकी फौजी महारत के सबूत के लिए बड़ी बया कम है कि आप सुल्तान महमूद गजनवी जैसे फातेह आजम की सेना के एक सफल सिपा सालार थे। जंगी हिकमते अमली से खूब वाकिफ थे आपने तुरन्त युद्ध का नक्कारा बजवा दिया अपने पुत्र सैय्यद सालार को सतरिख में छोड़कर खुद सवार हुऐ और एक बड़ी सैनिक टुकड़ी लेकर कटरा और मानिक पुर की ओर चल पड़े। मानिक पुर अब जिला प्रतापगढ़ में है और कटरा जो दरिया के उस पार है जिला इलाहाबाद में शामिल है।
कटरा और मानिकपुर की फतह
सालार शाहू अलैहिर्रहमां ने करीब पहुंचकर अपनीसेना को दो। भागों में बांट दिया। फौज का एक दस्ता कटरा की ओर और दूसरा दस्ता मानिकपुर की ओर रवाना किया। दोनों दस्ते अपने-अपने स्थान पर पहुंचकर युद्ध के लिए तैयार थे दुश्मन की सेना भी अपनी पूरी तैयारी के साथ मुकाबले में आई घोर युद्ध हुआ इसलामी सेना ने अपनी बहादुरी के जौहर दिखाए दुश्मन के हजारों लोग मारे गये इस्लामी सेना विजयी हुई देवनारायण और भोजनेर को जिन्दा गिरफ्तार करके सालार शाहू अलैहिर्रहमां की सेवा में हाजिर किया आपने उसी समय बेड़ियां डालकर उन्हें सतरिख भेज दिया सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां को लिखा कि इन कैदियों को सख्त निगरानी में रखा जाए। हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां ने उन्हें हजरत सैफुददीन सुरखुरु सालार अलैहिर्रहमां के पास बहराइच भेज दिया।
सालार शाहू रहमातुल्लाह अलैह ने उन दोनों इलाकों पर पूर्ण रूप से कब्जा जमाने के बाद मलिक अब्दुल्लाह को कुछ फौज देकर कटरा की निगरानी सुपुर्द कर दी और मानिकपुर प्रबंध मलिक कुतुब हैदर को सौप कर खुद शान व शौकत के साथ सतरिख वापस आए।
डालमऊ रायबरेली की फतह
डिस्ट्रिक्ट गजेटियर रायबरेली के अनुसार सालार साहू ने डालमऊ जिला रायबरेली को भी फतह करके मलिक अब्दुल्लाह की मातहती में दिया। शायद कटरा मानिकपुर से वापसी पर वह इस तरफ तशरीफ लाए होंगे इस्लाम की तबलीगी टुकड़ियां दूसरे स्थानों पर भी भेजी गयीं जैसे देवो एचोली महेन्द्र जिला बाराबंकी कि जिनकी बाबत स्थानीय रवायते जिला बाराबंकी के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ने दर्ज की हैं।
कटरा और मानिकपुर में आप के साथियों के मजारात
उन स्थानों पर दूसरे स्थानों की तरह से सैय्यद सालार मसऊद ग़ाज़ी अलैहिर्रहमां के बारे में बहुत सी स्थानीय रवायतें हैं जिनका वर्णन अब्दुल्ला खां अलवी ने अपनी पुस्तक तारीखे कटरा में मौजूद हैं जिनमें से एक बुजुर्ग का नाम हाजी जमाल था। मानिकपुर में एक स्थानीय रवायत ये है कि सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां की शहादत के बाद यहां के राजा ने जो भड़ जाति का था आपके एक साथी मलिक इमामउद्दीन के साथ गुस्ताखी करनी चाही तो उनकी दुआ से जमीन फट गई। मलिक इमामउद्दीन और उनकी लड़की उसके अन्दर समा गए और उसी समय से लोग उस कब्र पर नज्र-ओ नियाज़ पेश करते हैं। उसी पुस्तक में यह भी लिखा है कि अब्दुल्ला खां अलवी उस मज़ार की मरम्मत के बाद बादशाह देहली ने कराई।
Rate This Article
Thanks for reading: सालार शाहू का सतरिख आने का मुख्य कारण, Sorry, my Hindi is bad:)