दुआये हिजबुल बहर की बरकत का वाक़्या

दुआये हिजबुल बहर की बरकत का वाक़्या
Sakoonedil

 दुआये हिजबुल बहर की बरकत का वाक़्या


दुआये हिजबुल बहर की बरकत का वाक़्या


हजरत अबुल हसन शाजली मिस्र के शहर काहरा मे कयाम पजीर थे कि हज के दिन करीब आगये अपने दोस्तों से शैख़ अबुल हसन ने फरमाया कि मुझे अल्लाह ताला ने इस साल हज करने का हुक्म दिया है इसलिये जहाज का कोई इन्तेजाम किया जाये ताकि हम सब बा जमात हज के लिये रवाना हो सकें काफी कोशिश के बहजूद जहाज का कोई इन्तेजाम ना हो सका मगर शैख़ अबुल हसन का हज पर जाने का प्रोग्राम बा दस्तूर रहा एक रोज उनके दोस्तों ने आकर कहा कि एक बूढ़े ईसाई के जहाज के सिवा और कोई जहाज मिलना मुमकिन नहीं हजरत ने उसी जहाज मे रवाना होने का फैसला कर लिया अभी जहाज कहिरा की आबादी से बाहर निकला ही था कि मुख़ालिफ़ हवाये चलना शुरू हो गई जिनकी बदौलत कई रोज तक जहाज काहरा के कुर्ब ज्वार मे ठहरा रहा जहाज मे सवार ईसाई लोगों ने,



हजरत अबुल हसन साजली का मजाक उड़ाना शुरू करदिया कि हजरत को तो अल्लाह ने हज का हुक्म दिया था तो फिर उसने ये रुकावटे कियों खड़ी करदी जबकि हज के अय्याम करीब आने वाले हैँ और जहाज जहाँ से चला है वहीं पर खड़ा है हजरत अबुल हसन ऐसी तंजिया बातें सुनकर बहुत गमगीन हो गये मगर सब्र से काम लिया उसी कश्मकश और बेचैनी मे एक रोज हजरत अबुल हसन की आँख दूपहर के वक़्त लग गई हालते खुवाब मे आपको दुआये हिजबुल बहर पढ़ाई गई और उसका बा कशरत विर्द करने का हुकुम दिया गया जब आप बेदार हुऐ तो आपने जहाज के अफसर को बुलाया और फरमाया कि खुदा का नाम लेकर बादबान उठा दे उसने जवाब दिया कि बादबान उठाने को तो मैं तैयार हू मगर मुख़ालिफ़ हवा हमारा मुँह फेर देगी और हम दुबारा कहिरा पहुंच जायेंगे,



शैख़ ने फरमाया कि तू दिल मे पकड़ धकड़ मत कर और जो कुछ हम कहते हैँ उसपर अमल कर और खुदा की अजीब महेरबानी देख चुनानचे जैसे ही बादबान उठाया गया वही मुख़ालिफ़ हवा जोर शोर से चलने लगी यहाँ तक कि जिस रस्सी के साथ जहाज को मेख से बांध रखा था वोह भी खोल ना सके ना चार उसको काटना पड़ा और बड़ी जल्दी अमन वा सलामती के साथ जहाज अपनी मुबारक मंजिल ताक पहुंच गया ईसाई जहाज वाले के दोनों बेटे हजरत अबुल हसन साजली से इस कदर मुतासिर हुऐ कि फौरन ईमान ले आये इस बात का जहाज रान को बड़ा दुख हुआ उसी रात खुवाब मे उसने देखा कि हजरत अबुल हसन एक बड़ी जमात के साथ बहिश्त मे तशरीफ फरमा हैँ और उसके बेटे भी हजरत के साथ बैठे हैँ ईसाई बूढ़े ने अपने बेटों से मिलना चाहा तो फरिश्तो ने उसे झड़का कि तू उनलोगों के दीन वालों मेसे नहीं है लेहाजा तू उनके साथ नहीं रह सकता अगली सुबह वोह जागा तो खुदा की हिदायत उसकी मददगार हुई और उसने कलमा तौहीद पढ़ लिया और रफ्ता रफ्ता उसका मर्तबा यहाँ ताक पंहुचा कि वोह बड़े बड़े बातनी मुकामात वाला हो गया उस तरफ के लोग उसके नजदीकी और सोहबत के तालिब होने लगे,,,

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Thanks for reading: दुआये हिजबुल बहर की बरकत का वाक़्या, Sorry, my Hindi is bad:)

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