सूफी और बुजुर्गी किया है हजरत अबु रोयम
एक मर्तबा का वाक़्या है कि हजरत शैख़ अबु रोयम से एक सूफी ने दरियाफ्ट किया हजरत इस वादिये तसूफ मे घूमते फिरते उमर गुजर गई लेकिन हाल अब भी बुरा है अगर कोई हम से पूछे कि तसूफ किया है तो हमारे पास इसका कोई शाफी वा काफी जवाब नहीं है आपही इसकी वजाहत फरमा दें तो हमारे इल्म मे इजाफा हो जायेगा और हम आपके शुक्र गुजार होंगे आपने त्वक्कुफ फरमाया और कुछ सुकून के बाद जवाब दिया सुन, सूफी वोह है जो ना तो खुद किसी चीज का मालिक हो और ना उसका कोई मालिक हो और तसूफ ये है दो चीजों मे जियादती अफरात का पहलू तर्क कर दिया जाये एक दीन एक जाहिर बें, और मादा प्रस्त हजरत रोयम से मिला और गुस्ताखाना लहजे मे पूछा रोयम किया आप सूफी हैँ आपने जवाब दिया मैं इतना बड़ा दावा किस तरह कर सकता हू मैं अल्लाह का हकीर तरीन बन्दा हू उस शख्स ने कहा आप खुदको हकीर तरीन ना कहें आपतो हमारे मुआशरा के बहुत खास तरीन हैँ आपका लिबास कपड़ा आपकी नशिस्त बर्खास्त का शाहाना अंदाज आपका गाओ तकिया आपकी हर चीज शानदार है फिर आप ऐसी बात कियों करते हैँ,
हजरत अबु रोयम सूफी नहीं शख्त इल्जाम
आपने फरमाया आये शख्स मैं जिस माहौल मे रहता हू वहाँ सूफी से ज़ियादा काजी बनकर रहना पड़ता है वरना मेरा जी चाहता है कि मैं अपना पैताबा सर से बांध लूँ और उसी होलिये मे बाजार जाऊ अदना से अदना लिबास पहन सकता हू लेकिन मैंने जो कह दिया कि काजी हूँ और मेरा काजी होना बहुतों के काम आता है मैं उन्हें सही इंसाफ देता हूँ मैं मखलूक की खिदमत करता हूँ फिर तुझको इसपर ऐतराज कियों? वोह खामोश हो गया, कुछ दिनों के बाद उस शख्स को किसी झूठे इल्जाम मे कैद कर दिया गया उसके खिलाफ जो मुकदमा कायम किया गया था वोह फर्जी था और लोग उसे सजा दिलवाने मे बड़ी दिलचशबी ले रहे थे आपने उसे अपने रूबरू देखा तो बड़ी हैरत हुई उससे पूछा तुझपर जो इल्जाम लगाया गया है किया वोह सही है? उसने जवाब दिया कि वोह बिल्कुल गलत है और झूठ है लेकिन जिन लोगों ने इल्जाम लगाया था वोह कह रहे थे कि वोह खताकार है रोयम ने गुस्से के आलम मे उन लोगों की तरफ देखा और पूछा किया तुम उसको गुनाह गार कर लोगे? उन्होंने जवाब दिया कियों नहीं,
आपने उन्हें धमकी दी कि अगर तुम साबित ना कर सके तो मैं तुमपर जुल्म इबतेहाम मे मुकदमा चलाऊंगा और सजा दूंगा ये लोग ड़र गये और मुकदमा की पैरवी मे कमजोरी दिखाई आखिर मे उन्होंने कबूल कर लिया कि इसपर झूठा मुकदमा तैयार किया था और आपसे माफ़ी मांगी आपने फरमाया मैं तुम्हें किस तरह मुआफ कर सकता हूँ तुम इस शख्स के मुजरिम हो ये चाहे तो मुआफ करदे और ना मुआफ करना चाहे तो सजा भी दिलवा सकता है और मैं इसकी बात मानूंगा वोह शख्स रोने लगा और बोला मुझे जितना जलील होना था हो चुका और ऐसा कियों हुआ मैं जानता हूँ इस लिये मैं इन लोगों को मुआफ़ कर देना चाहता हूँ आपने फरमाया ये बेहतर है कियोकि तू चाहे तो बदला ले ले लेकिन तेरी अजमत और बड़ाई इसी मे है तू उन्हें मुआफ़ करदे चुनानचे उस शख्स ने उन्हें मुआफ़ कर दिया आप उसे अपने साथ ले गये और फरमाया आये शख्स तूने देख लिया याद रख जो शख्स सुफियों मे उठे बैठे और उन कामों की जिनकी ये तहकीक कर चुके हों उनकी मुख़ाल्फत करे तो अल्लाह उसके दिल से ईमान का नूर निकाल लेता है वोह शख्स बेहद शर्मिंदा था आपने फरमाया आये अजीज तुझको मोमिनो की अबस बातों मे दिलचस्पी नहीं होनी चाहिये तू नहीं जानता कि इसमें सुफियों को अपनी रूह खर्च करनी पड़ती है उस शख्स ने तोबा करते हुऐ कहा हजरत जो होना था हों चुका मैं अपनी जघा बेहद शर्मिंदा हूँ उसके बाद वोह शख्स आपही के पास अपना ज़ियादा वक़्त गुजारने लगा,,,
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Thanks for reading: सूफी और बुजुर्गी किया है हजरत अबु रोयम, Sorry, my Hindi is bad:)