हजरत खुवाजा फरिदुद्दीन वली कैसे बने
अतार अतारी की दुकान किया करते थे एक रोज आप अपनी दुकान मे एक रोज आप अपनी दुकान मे तसरीफ फरमा थे कारोबार चल रहा था लोग आ जा रहे थे आपने एक फकीर को देखा जो मुसलसल कई घंटो से उनकी दुकान के सामने खड़ा दुकान के साजो सामान और आराइश को गौर से देख रहा था खुवाजा अतार ने कई मर्तबा उसको नजर अंदाज किया मगर फिर आपका ख्याल उसकी तरफ चला ही गया फकीर भी टिकटिकी बांधे दुकान की तरफ देख रहा था आखिर खुवाजा साहब से ना रहा गया और उन्होंने उस फकीर को मुख़ातिब करके कहा आये खुदा के बन्दे तुम मुसलसल कई घंटों से यहाँ खड़े अपना वक़्त जाया कर रहे हो,
अगर तुम्हें कोई काम है तो बताओ कोई चीज खरीदनी है तो खरीदो नहीं तो अपना रास्ता लो फकीर ने मुस्कुरा कर खुवाजा अतार की तरफ देखा और बोला तुम मेरी फिक्र ना करो मेरा वक़्त इतना कीमती नहीं जितना तुम्हारा है इसलिये अपना वक़्त जाया होने से बचाओ रही बात मेरे जाने की तो वोह कोई मुश्किल काम नहीं मैं अभी चला जाता हू ये कहकर वोह फकीर खुवाजा अतार की दुकान के सामने ही लेट गया कुछ देर तो खुवाजा साहब इन्तेजार करते रहे कि अभी उठ खड़ा होगा मगर जब काफी देर वोह ना उठा तो आपको तस्वीश हुई आपने उसे हिलाया झूलाया मगर वोह तो रही अदम हो चुका था अब खुवाजा साहब को उसकी बातों की समझ आई जिनमे मुआर्फ़त और विलायत के राज छुपे थे आप उसकी बातों से इस कदर मुतासिर हुऐ कि उसी रोज से इबादत वा रियाजत मे मसरूफ हों गये,
खुवाजा अतार फरमाते हैँ अल्लाह ताला का फरमान है कि दरे बख्शिश हर वक़्त खुला है जो चाहे आये और अपने लिये सामान आख़िरत हासिल करे इस जमन मे एक वाक़्या बयान करते हैँ कि एक मर्तबा एक मस्त नशा के जोर मे मस्जिद मे घुस गया और रो रोकर पुकारने लगा कि आये खुदा वन्द मुझको बहिस्त मे लेजा मोज्जिन ने जब उसे देखा तो उसका गरेबान पकड़ कर कहा मस्जिद मे तेरा किया काम तूने कोनसा अच्छा अमल किया है जिसकी बिना पर तुम्हें बहिस्त का दावा है मस्त रो पड़ा और बोला आये मोज्जिन आपको खुदा के लुत्फ़ अमम से ताज्जुब मालूम होता है कि एक गुनेहगार उसकी मगफिरत का उम्मीदवार हो मैंने मगफिरत की खुवाहिश तो आपसे नहीं की तौबा का दर हर वक़्त खुला है और खुदा दस्तगीर है मुझको तो शरम आती है कि खुदा के अफू के मुकाबले मे अपने गुनाह को ज़ियादा समझू इस वाक़्या से ये बात वाजेह हो जाती है कि अल्लाह ताला के दरबार मे कोई तखसीस नहीं हर शख्स को वहाँ जाकर तौबा अस्तगफार करने वा खैर वा बख्शिश मागने की इजाजत है कियोकि खुदा रहीम वा करीम और गफूरुर्रहीम है और वाक़ई बन्दों के गुनाहो के मुकाबला मे उसकी बख्शिश और अफू वा दरगुजर कहीं ज़ियादा है,,,
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Thanks for reading: हजरत खुवाजा फरिदुद्दीन वली कैसे बने , Sorry, my Hindi is bad:)