हदीष पड़ने से अल्लाह के रसूल की जियारत
मशहूर बुजुर्ग हजरत अबुल हसन खुरकानी का वाक़्या है कि एक मर्तबा आपके एक मुरीद को हदीष और फिकह की तालीम हासिल करने का बेहद शौख था उसने आपसे इजाजत तलब की और अर्ज की मैं हदीष और फिकह की तालीम के हुसूल के लिये किसी दूसरी जघा जाना चाहता हूँ आपने फरमाया बाहर जाने की जरुरत नहीं तुम ये तालीम मुझसे भी हासिल कर सकते हो वोह शख्स हैरान होकर बोला आप तो बुनियादी तालीम से भी ना आसना हैँ तो हदीष कैसे पढ़ाएंगे आपने फरमाया ये कैसे का लफ्ज मत इस्तेमाल करो और हदीष की किताब लेकर मेरे पास आजाओ जब आपने हदीष पढ़ाना शुरू की तो वोह शख्स हैरान रह गया,
कि इस तरह जामा तरिके से कोई शख्स भी नहीं पढ़ा सकता था जिस तरह आपने पढ़ाया आप हदीष पढ़ाते हुऐ जिस हदीष को वजई ख्याल करते फौरन बता देते आपके सागिर्द मुरीद ने आपसे पूछा कि ये वजई हदीष का आपको कैसे पता चल जाता है आपने फरमाया जब मैं हदीष पढ़ा रहा होता हूँ तो आप हजरत सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम का रुहे मुबारक मेरे सामने होता है अगर हदीष सच्ची होतो आपका चेहरा बड़ा सगफ्ता हो जाता है और अगर हदीष वजई हो तो आपका चेहरा शिकन आलूद हो जाता है और इस तरह मुझे पता चल जाता है कि इस हदीष का हुजूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम से कोई ताल्लुक नहीं है मुरीद ने आपसे मुआफ़ी मांगी कि मैंने आपको तालीम याफ्ता ना समझने की गुस्ताखी की है आपने उसको मुआफ कर दिया,
अकीदत की वजाहत
एक मर्तबा शैख़ अबु सईद हजरत अबुल हसन की खिदमत मे हाजिर हुऐ और अर्ज की कि हजरत मैंने जब तक आपसे मुलाक़ात ना की थी मेरी हालत एक पत्थर की सी थी मगर आपने मुझे गोहर आबदार बना दिया है और आपका ये फैजान है कि मैंने अपनी रूहानियत मे बड़ी शानदार तब्दीली महसूस की है हजरत अबुल हसन ने ख़ुश होकर जवाब दिया अबु सईद मैं सोचता था कि अल्लाह ताला मुझे एक बेटा दे देता तो जो हकीकत मे मेरा हमराज होता आज अल्लाह ताला ने मेरी ये दुआ भी कबूल करली और आपकी शकल मे मुझे एक बेटा अता कर दिया जब शैख़ अबु सईद ने ये बात सुनी तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा और खुशी मे उन्होंने हजरत के खानकाह का एक पत्थर उठाया और अपनी खानकाह के मेहराब मे लगवा दिया,
मगर अगले रोज देखा तो हैरान रह गये कि वोह पत्थर मेहराब से गायब था और दुबारा हजरत अबुल हसन की खानकाह मे जाकर लग गया था आपने दो तीन मर्तबा पत्थर हजरत की खानकाह से उठाया और अपनी खानकाह की महराब मे लगवाया मगर पत्थर हर मर्तबा अपनी जघा से हट कर हजरत अबुल हसन की खानकाह मे पहुंच जाता था आखिर कार शैख़ अबु सईद ने ये पत्थर लगवाने की कोशिश तर्क करदी जब ये बात उन्होंने हजरत अबुल हसन से अर्ज की तो उन्होंने जवाब दिया तुमने पत्थर को अकीदत से मेरी खानकाह से उठाया और अपनी खानकाह मे लगवाया था ऐसी अकीदत जो तुमने पत्थर के साथ की ये बुत प्रस्ती के जुमरे मे आती थी मैंने उसको खतम करने के लिये पत्थर को वहाँ लगने की इजाजत नहीं दी शैख़ अबु सईद ने ये बात सुनी तो खामोश हो गये
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Thanks for reading: हदीष पड़ने से अल्लाह के रसूल की जियारत , Sorry, my Hindi is bad:)